थाई सेक्स वर्करों पर दोहरी मार
१८ मई २०१९थाईलैंड के उत्तर में चिआंग माई शहर के 'कैन डू बार' में बैठी सारी महिलाएं सेक्स वर्कर हैं. यहीं वे अपने ग्राहकों से मिलती हैं. वे इस बार की सामूहिक मालकिन भी हैं. आम तौर पर देश की बाकी सेक्स वर्करों को ना मिलने वाली चीजें इन्हें मिलती हैं, जैसे स्वास्थ्य बीमा, काम के तय घंटे और ब्रेक भी.
इस बार की शुरुआत 2006 में हुई थी. बैंकॉक की विश्व प्रसिद्ध रेड लाइट डिस्ट्रिक में इसे स्थापित किया था एक गैरलाभकारी संगठन 'एमपावर फाउंडेशन' ने. मकसद था सेक्स उद्योग से जुड़ी महिलाओं को काम के लिए एक अच्छा माहौल देना.
सेक्स उद्योग से जुड़े हजारों थाई और प्रवासी लोगों ने एमपावर के इस प्रयोग से काफी कुछ सीखा है. जैसे कि बार और मसाज पार्लर मालिकों से अपने काम के लिए सही कीमत के लिए मोलभाव करना, काम के लिए बेहतर नियम बनवाना और सरकार पर इसका दबाव बनाना कि उनके काम को मान्यता मिले जिससे उनकी आय, सुरक्षा और हालात सुधरें.
करीब आठ सालों से सेक्स के पेशे में लगी 30 साल की माई चांता बताती है, "लोग हमें बोलते हैं कि ये काम बंद करके हमें सिलाई कढ़ाई या कुछ खाना पकाने जैसा काम करना चाहिए. लेकिन मैं पूछती हूं कि केवल ऐसे ही काम उचित क्यों माने जाते हैं?" माई कहती है कि "हमने यही काम चुना है और हमें इसमें गर्व है. हमें संतोष है कि हम भी बाकी लोगों की तरह ही काम करते हैं."
दुनिया भर में लाखों महिलाएं सेक्स वर्क से पैसे कमाने का रास्ता चुनती हैं. फिर भी केवल कुछ ही देशों में इसे वैध माना जाता है. ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी, नीदरलैंड्स, सेनेगल और पेरू जैसे गिने चुने देशों के अलावा बाकी सब जगह ये वर्कर तरह तरह के दुर्व्यवहार के शिकार बनते हैं.
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थाईलैंड में इतनी बड़ी सेक्स इंडस्ट्री होने के बावजूद इस काम से जुड़े लोगों के प्रति बहुत दुराग्रह हैं. देह व्यवसाय करना अवैध है और इसके लिए सजा और जुर्माना हो सकती है. कम उम्र की लड़कियों से सेक्स करने वाले ग्राहकों को छह साल तक की जेल हो सकती है.
2014 की यूएनएड्स रिपोर्ट के अनुसार थाईलैंड में करीब सवा लाख सेक्स वर्कर हैं. एडवोकेसी समूहों की मानें तो असली संख्या इसके दोगुनी होगी, जिसमें पड़ोसी देशों म्यांमार, लाओस, कम्बोडिया और वियतनाम से आए हजारों प्रवासी भी शामिल हैं.
थाईलैंड में इस स्तर पर सेक्स इंडस्ट्री तब फैली, जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना ने यहां अपनी मिलिट्री बेस बनाया था. फिर वियतनाम युद्ध के दौरान इसका और विस्तार हुआ, जब अमेरिकी सेनाएं खाली समय में मनोरंजन के लिए बैंकॉक जाने लगीं.
बाद के सालों में थाईलैंड को उसके सेक्स इंडस्ट्री के लिए ही जाना जाने लगा. लोग न्यूनतम आय के दोगुनी से दस गुनी तक कमाई कर पाते हैं. लेकिन 1960 में बने एक कानून के अनुसार यहां सेक्स वर्क अवैध है इसलिए अधिकारियों और पुलिसवालों को पैसे खिलाकर काम चलता आया है.
हाल के सालों में वर्करों को उनके मानवीय, श्रम और नागरिक अधिकार दिलाने के अभियान चलने लगे हैं. 1970 के दशक में कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसे ही अभियान चले थे. इसे वैधता दिला कर सेक्स के पेश से जुड़ी बदनामी को कम करने और इससे जुड़े लोगों के कामकाज की स्थिति सुधारने और मानव तस्करी रोकने की दिशा में बढ़ा जा सकेगा.
कैन डू बार की महिला सेक्स वर्करों को आशा है कि वो दिन आएगा. एमपावर की सदस्य पिंग पॉन्ग कहती हैं, "जब हमने शुरु किया तब कहा गया कि 'तुम सेक्स वर्कर हो - तुम्हें सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल सकती, छुट्टी नहीं मिल सकती' लेकिन हमें मिला." वे बताती हैं कि "हम अपने लिए ये काम करने के लिए किसी और का इंतजार नहीं कर सकते. अब नई सरकार है और हम नए श्रम मंत्री का दरवाजा खटखटाने को तैयार हैं."
आरपी/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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