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तूफान के बाद जीने की चुनौती

१४ अक्टूबर २०१३

पाइलिन तूफान के गुजर जाने के बाद ओडीशा और आंध्रप्रदेश ने निश्चित ही राहत की सांस ली, लेकिन परीक्षा अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. तूफान के कारण कई शहरों में बारिश जारी है.

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तस्वीर: Asit Kumar/AFP/Getty Images

चौदह साल बाद भारत में आए सबसे बड़े तूफान में लोगों को सुरक्षित रखने के बाद सबसे बड़ी चुनौती है, उनका पुनर्वास. तूफान के बाद तटीय इलाकों के निवासी घरों की ओर लौट रहे हैं. ओडीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का कहना है कि इन लोगों को फिर से बसाना एक बड़ी चुनौती है. शनिवार तूफान से बचने के लिए करीब 10 लाख लोगों को सुरक्षित जगहों पर जाना पड़ा. 200 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार वाली हवाओं के साथ आए इस तूफान ने सामान्य जनजीवन को उनके घरों से उखाड़ फेंका.

अब गिरे घरों, पेड़ों के बीच लोग बच्चों और सामान के साथ लौट रहे हैं. ओडीशा के सबसे ज्यादा प्रभावित गोपालपुर में नारियल बेचने वाले भगवान कहते हैं, "मैं अपना सब कुछ छोड़ गया था. अब यहां कुछ नहीं है."

तटीय इलाकों में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले लोगों में गरीब तबके के मछुआरे हैं. जनार्दन बताते हैं, "मेरा घर और छोटी दुकान, सब कुछ मैंने खो दिया." बिना छत की दीवारों के बीच वो और उनकी पत्नी ने सफाई का काम शुरू किया. वहीं एक भोजनालय चलाने वाले मिहिर रंजन स्वेन भी नुकसान के बारे में सोच रहे हैं, "एक रात की अफरातफरी में मुझे दो लाख रुपये का नुकसान हो गया. सारे नुकसान की भरपाई और सुधार में मुझे करीब दो महीने लग जाएंगे. कम से कम यहां से सब लोग तो सुरक्षित हैं."´

Indien Zyklon Phailin
तस्वीर: Reuters

ओडीशा में तूफान के कारण 17 लोगों की जान गई और आंध्रपदेश में एक की. सोमवार को उन 18 नाविकों को भी बचा लिया गया, जिनका जहाज पाइलिन के कारण उलट गया था.

भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मृतकों के प्रति दुख जताया. लेकिन राहत कर्मचारियों को बढ़िया काम की बधाई भी दी. जिसके कारण मृतकों की संख्या में कमी आई.

तूफान के बाद उखड़े बिजली के खंबों, भारी बारिश के कारण उफन रही नालियों और मूलभूत सुविधाओं को फिर से सामान्य करने के लिए सेना और राहत कर्मचारियों को अभी काफी काम और करना है. इतना ही नहीं नदियों में समंदर के पानी के मिलने के कारण जो समस्याएं पैदा होंगी, उन्हें भी देखने की जरूरत है. खेती और मछलीपालन उद्योग पर भी इसका असर हो सकता है.

तूफान के पांच दिन पहले से ही लोगों के लिए कई अस्थाई सुरक्षित ठिकाने बनाए गए. इसके बाद लोगों को इलाके से हटाने का काम शुरू हुआ. ओडीशा और आंध्रप्रदेश के तटीय इलाकों में करीब 10 लाख लोगों ने इन अस्थाई शिविरों में रात बिताई. इस बड़े ऑपरेशन में न केवल भारतीय सेना बल्कि मौसम विभाग की भी बड़ी भूमिका रही, जिसने सटीक और सतत जानकारी उपलब्ध कराई.

अधिकारियों की दशहरे की छुट्टियां रद्द कर दी गईं और आपदा से निबटने वाली टीमों को लगाया गया. साथ ही भारी उपकरणों, हेलीकॉप्टरों और राहत के कामों के लिए कई नावें भी दी गई. साइक्लोन वाले इलाकों में रेडक्रॉस ने भी अपने सैकड़ों लोगों को भेजा. ड्रिल्स आयोजित की गईं, ताकि लोगों को सूचना दी जा सके. इसी कारण लोग अपने घरों को ताले लगा कर, जरूरी सामान के साथ जा सके.

Indien Zyklon Phailin
तस्वीर: Reuters

चिल्ड्रेन्स चैरिटी प्लान इंटरनेशनल में आपदा राहत प्रमुख उन्नी कृष्णन बताते हैं, "1999 का चक्रवात भारत के लिए चेतावनी था. यह वो समय था, जब आर्थिक विकास दर ऊंचा था और भारत तेजी से विकास करता नजर आ रहा था. यह बहुत ही शर्म की बात थी कि वह इतनी तेजी से विकास करने के बावजूद अपने लोगों की सुरक्षा नहीं कर सका."

रविवार को मंदिर में हुई भगदड़, और बारिश में केदारनाथ में भूस्खलन के कारण करीब छह हजार लोगों का मारा जाना बार बार याद दिलाता है कि भारत को अच्छे आपदा प्रबंधन के साथ तेज और प्रभावी राहत की कितनी जरूरत है.

जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होने वाले खतरों में भारी बारिश और लगातार खतरनाक होते जाने वाले चक्रवाती तूफान शामिल हैं. भारी जनसंख्या वाले भारत में तेज प्रबंधन और अच्छी योजनाएं ही इससे निबट सकती हैं.

एएम/एनआर (एएफपी, पीटीआई)

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