तालिबान से बात करने को तैयार अफ़ग़ानिस्तान
११ मार्च २०१०अफग़ान राष्ट्रपति करज़ई ने कहा कि वह शांति की ख़ातिर संविधान के दायरे में रह कर हर अफ़ग़ान नागरिक से बात करने को तैयार हैं. इसमें तालिबान भी शामिल है. पाकिस्तान दौरे पर गए राष्ट्रपति करज़ई ने कहा कि अगर तालिबान से बातचीत पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को कोई समस्या है तो वह आए और अपनी चिंताएं स्पष्ट करे. अफ़ग़ानिस्तान के ग़ज़नी प्रांत में आर्थिक मामलों, विकास और खेती के लिए बनी समिति के अध्यक्ष दाऊद सुल्तानज़ई का कहना है कि गांवो में अफ़ग़ानी सेना और पुलिस पर विश्वास कम है.
"गांवों में लोग सहयोग नहीं कर रहे. पुलिस और सेना तभी सफल हो सकते हैं अगर देश की जनता उनके साथ हो. अगर ऐसा नहीं है तो न तो सेना और न ही पुलिस प्रभावशाली हो सकती है."- दाऊद सुल्तानज़ई
करज़ई की पाकिस्तान यात्रा का उद्देश्य भी तालिबान और दूसरे उग्रवादी गुटों के साथ समझौता करने के बारे में बातचीत करना है. वह पाकिस्तान के साथ अपनी योजना साझा कर उसका समर्थन हासिल करना चाहते हैं. तालिबान नेताओं पर पाकिस्तान का बहुत असर माना जाता है. 2001 से पहले अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के साथ पाकिस्तान के अच्छे रिश्ते रहे हैं.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी के साथ साझा प्रेस कांफ्रेस में अफ़ग़ान राष्ट्रपति ने कहा कि पाकिस्तान की भूमिका इसमें बहुत महत्वपूर्ण है और अफ़ग़ानिस्तान उसका स्वागत करता है. वहीं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने हर संभव मदद का वादा किया. हालांकि कुछ जानकार मान रहे हैं कि पिछले महीने कराची में अफ़ग़ान तालिबान के नंबर दो नेता मुल्ला बिरादर की गिरफ़्तारी तालिबान से बातचीत में बाधा बन सकती है.
ब्रिटिश सरकार ने तालिबान से होने वाली बातचीत पर पाकिस्तानी की मध्यस्था की पैरवी की है. यही लंदन में हुए अफ़ग़ानिस्तान सम्मेलन में भी तय किया गया था. उधर अमेरिका का कहना है कि वह निचले स्तर के तालिबान लड़ाकों से बात करने का समर्थन करता है, ख़ासकर वो तालिबान लड़ाके जो अफ़ग़ानिस्तान के सरहदी इलाक़ों में छिपे हैं. अमेरिका मुल्लाह उमर जैसे बड़े तालिबानी नेताओं से बात करने के पक्ष में नहीं है.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा मोंढे
संपादनः ए कुमार