तालिबान के धमाके दिखाते हैं कि अमेरिका कितना मजबूर है
३ सितम्बर २०१९अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के एक रिहाइशी इलाके में शक्तिशाली धमाका हुआ. धमाके में कम से कम 16 लोगों की मौत हो गई. पिछले तीन दिनों में यह तीसरा मौका है जब वॉशिंगटन और तालिबान के बीच जारी वार्ता के साये में हमला हुआ है.
सोमवार को अमेरिका के विशेष दूत जालमाय खलीलजाद काबुल में थे. वह कतर की राजधानी दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच चल रही समझौता वार्ता का ब्योरा अफगान सरकार को देने पहुंचे थे. प्रस्तावित समझौते के तहत अमेरिका अपने 5,600 सैनिक अफगानिस्तान से वापस बुलाएगा. लेकिन इसके बदले तालिबान को सुरक्षा की गारंटी देनी होगी.
स्थानीय टेलिविजन के मुताबिक सोमवार को जिस जगह पर धमाका हुआ वहां एक विशाल गड्ढा हो गया. धमाके ने कुछ इमारतों को ध्वस्त कर दिया. 16 लोग मारे गए और 119 जख्मी हुए. अफगानिस्तान के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता नसरत रहीमी के मुताबिक, "धमाका विस्फोटकों से लदे एक ट्रैक्टर में हुआ. ट्रैक्टर ग्रीन विलेज की दीवार के करीब खड़ा किया गया था." ग्रीन विलेज परिसर में राहत एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के दफ्तर और आवासीय परिसर हैं.
तालिबान एक्सपर्ट रहीमुल्लाह युसुफजई को अंदेशा है कि अफगानिस्तान में ऐसी हिंसा जारी रहेगी. उनके मुताबिक, "तालिबान यह समझ चुका है कि उनकी सैन्य ताकत ने अमेरिका को बातचीत के लिए मजबूर कर दिया है. अमेरिका अब किसी तरह से वहां से निकलना चाह रहा है." युसुफजई कहते हैं, "उनके हाथ में यही हथियार है और वे इसका इस्तेमाल तब तक करेंगे, जब तक वे अपना मकसद हासिल नहीं कर लेते."
धमाके से ग्रीन विलेज के लोग काफी नाराज हैं. यह दूसरा मौका है, जब वहां धमाका हुआ है. स्थानीय लोग अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मौजूदगी को धमाके की वजह मान रहे हैं. ग्रीन विलेज के पास रहने वाले अब्दुल जमील कहते हैं, "हम चाहते हैं कि ये विदेशी हमारे पड़ोस से बाहर निकलें. यह पहला मौका नहीं है जब इनकी वजह से हमें पीड़ा भोगनी पड़ रही है. हम उन्हें यहां बिल्कुल नहीं चाहते."
सुरक्षा इंतजामों से पुख्ता एक दीवार ग्रीन विलेज को आम रिहाइशी इलाके से अलग करती है. इस इलाके में ग्रीन जोन भी है, जहां अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों के दूतावास भी हैं.
सोमवार को हुए धमाके की जिम्मेदारी तालिबान ने ली. अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इसकी निंदा की है. क्या इन बम धमाकों का असर अमेरिकी सेना की वापसी योजना पर पड़ेगा. अब यही सवाल पूछा जा रहा है. अफगानिस्तान में पैदा हुए जालमाय खलीलजाद पिछले एक साल से अमेरिकी दूत के रूप में तालिबान के साथ बातचीत कर रहे हैं. खलीलजाद कहते हैं, "हम इस बात पर सहमत हुए हैं कि अगर समझौते के मुताबिक माहौल आगे बढ़ता है तो, हम 135 दिन के भीतर उन पांच अड्डों को छोड़ देंगे जिनमें अभी हम मौजूद हैं."
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक अफगानिस्तान में इस वक्त 14,000 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. माना जाता है कि असली संख्या इससे कम है. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अब भी कह रहे हैं कि तालिबान के साथ समझौता होने के बावजूद 8,600 सैनिक अफगानिस्तान में बने रहेंगे. इसका मतलब होगा कि 5,400 अमेरिकी सैनिक समझौते के तहत अफगानिस्तान से निकलेंगे. इसके बदले तालिबान को अल कायदा से रिश्ते तोड़ने होंगे, अफगानिस्तान सरकार के साथ संघर्ष विराम को लक्ष्य बनाते हुए बातचीत करनी होगी.
अमेरिका और तालिबान के बीच जारी समझौता वार्ता के बावजूद माना जा रहा है कि तालिबान अफगानिस्तान को फिर से अपने नियंत्रण में लेने के लिए निर्णायक जोर लगा रहा है. शनिवार को तालिबान ने उत्तर में कुदूंज को कब्जे में लेने की कोशिश की. एक दिन बाद बागलान प्रांत के पुल ए खुमरी शहर पर धावा बोला.
11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद अक्टूबर 2001 में अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में दाखिल हुई. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 2001 से मार्च 2019 तक अफगानिस्तान में अमेरिका का कुल सैन्य खर्च 760 अरब डॉलर है. इस युद्ध में अब तक अमेरिका अपने 2,300 सैनिक खो चुका है. करीब 20,500 सैनिक विकलांग होकर अफगानिस्तान से वापस लौट चुके हैं. अमेरिका अल कायदा और तालिबान के शीर्ष नेतृत्व को साफ करने में तो सफल हुआ लेकिन तालिबान के व्यापक नेटवर्क को वह ज्यादा परेशान नहीं कर सका.
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