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डोपिंग की ए बी सी डी

२६ अक्टूबर २०१३

खिलाड़ियों की डोपिंग, ये विवाद आम तौर पर गहराई से समझ में नहीं आता. डोपिंग क्या है, खिलाड़ी किस तरीके से किन प्रतिबंधित चीजों का इस्तेमाल करते हैं और इनके क्या नुकसान होते हैं, इस पर डीडब्ल्यू हिंदी की विशेष रिपोर्ट.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी की अध्यक्ष मार्लेन क्लाइन कहती हैं कि डोपिंग कोई नई बात नहीं है. मुकाबले में दूसरों को हराने के लिए प्राचीन ग्रीक खिलाड़ी भी ऐसा किया करते थे. वह मानती है, खिलाड़ियों के पास जीवन का कुछ ही समय होता है जब वे खूब कामयाब हो सकते हैं. इस दौर में उन्हें मीडिया में छाये रहने और पैसे कमाने का लालच भी हो सकता है. और इस होड़ में वे अक्सर डोपिंग में पड़ जाते हैं.

कानूनी हद

क्लाइन बताती हैं कि दवाइयों के इस्तेमाल की हद दो बातें तय करती हैं, दवाई का असर और उसके इस्तेमाल का कानूनी पहलू. एक बीमार आदमी के लिए दवा जरूरी हो सकती है लेकिन एथलीट जो कर रहे हैं वह डोपिंग कहलाएगी. दर्दनाशक दवाई इबुप्रोफेन काफी हल्की है लेकिन उसी की जगह अगर मॉर्फीन का इस्तेमाल हो तो वह कहीं भारी और नशीली है. उसका इस्तेमाल गैर कानूनी है.

Infografik Negative Nebeneffekte des Dopings Englisch
डोपिंग के नुकसान

डोपिंग में आने वाली दवाओं को पांच श्रेणियों में रखा गया है:

स्टेरॉयड

स्टेरॉयड हमारे शरीर में पहले से ही मौजूद होता है, जैसे टेस्टोस्टेरोन. लेकिन कई बार जब एथलीट सटेरॉयड के इंजेक्शन लेते हैं तो शरीर में इनका संतुलन बिगड़ जाता है. मर्दों में टेस्टोस्टेरोन पौरुष बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है. इसके अलावा यह मासपेशियां भी बढ़ाता है. और पुरुष खिलाड़ी इसीलिए इसका इस्तेमाल करते हैं.

इसके कुछ खतरनाक नुकसान हो सकते हैं, जैसे मर्दों में स्तन उभरना. इसके अलावा इससे उनके हृदय और तंत्रिका तंत्र पर भी असर पड़ सकता है.

उत्तेजक पदार्थ

उत्तेजक पदार्थ शरीर को चुस्त कर देते हैं, दिमाग तेजी से चलने लगता है और चौकन्ना हो जाता है. ये प्रतियोगिता के दौरान प्रतिबंधित हैं लेकिन खिलाड़ी इनका इसतेमाल खेल से पहले करते हैं जिससे शरीर में ज्यादा ऊर्जा का संचार हो.

इसके इस्तेमाल से बाद में शरीर बहुत थका हुआ महसूस करता है. इसे लगातार लंबे समय तक लेते रहने से दिल का दौरा पड़ने की भी संभावना होती है. 1994 में फुटबॉल के विश्व कप के दौरान अर्जेंटीनियाई खिलाड़ी डियागो मैराडोना ऐसा ही उत्तेजक पदार्थ एफेड्रीन के इस्तेमाल के दोषी पाए गए.

पेप्टाइड हार्मोन

स्टेरॉयड की ही तरह हार्मोन भी शरीर में मौजूद होते हैं. इसलिए इनका भी सेवन शरीर में असंतुलन पैदा करता है. इंसुलिन डायबिटीज के मरीज के लिए जीवन रक्षक हार्मोन है. लेकिन क्लाइन बताती हैं, "एक स्वस्थ इंसान को अगर इंसुलिन दिया जाए तो शरीर से वसा घटती है और मासपेशियां बनती हैं, जो कि एथलीटों के लिए फायदे की बात है."

लेकिन इसके ज्यादा इस्तेमाल से शरीर में ग्लूकोज का स्तर बहुत घट जाने की भी संभावना होती है जिसे हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं. ऐसे में शरीर थक जाता है और ज्यादा काम नहीं कर पाता. हार्मोन एक दूसरे से तालमेल बिठा कर चलते हैं और इन्हीं की मदद से मस्तिष्क को पता चलता है कि कब क्या काम होना है. इसलिए इनमें असंतुलन की स्थिति में शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है.

पेप्टाइड कई प्रोटीनों की जटिल संरचना को कहते हैं. जैसे एरिथ्रो प्रोटीन. अमेरिकी साइक्लिस्ट लांस आर्मस्ट्रॉन्ग ने इस साल जनवरी में स्वीकारा था कि उन्होंने इसका इस्तेमाल किया.

Lance Armstrong
मिट्टी में मिली आर्मस्ट्रॉन्ग की शोहरततस्वीर: Reuters

नार्कोटिक्स

नार्कोटिक या मॉर्फीन जैसी दर्दनाशक दवाइयां डोपिंग में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती हैं. क्लाइन बताती हैं, "प्रतियोगिता के दौरान दर्द का अहसास होने पर अक्सर खिलाड़ियों को इन दवाइयों के इस्तेमाल की चाह होती है."

इनके इस्तेमाल से बेचैनी, थकान और नींद जैसे लक्षण हो सकते हैं. सिर दर्द और उलटी भी इनसे होने वाले नुकसान हैं. इनकी लत पड़ने की भी काफी संभावना होती है. दर्द न होने से शरीर को चोट का अहसास होता है. लेकिन कई बार इन दवाइयों के सेवन से यह भी मुमकिन है कि खिलाड़ी खुद को कम दर्द के अहसास में ज्यादा चोटिल कर लें.

डाइयूरेटिक्स

डाइयूरेटिक्स के सेवन से शरीर पानी बाहर निकाल देता है जिससे कुश्ती जैसे खेलों में कम भार वाली श्रेणी में घुसने का मौका मिलता है. डाइयूरेटिक्स का इस्तेमाल हाई ब्लड प्रेशर के इलाज में होता है. क्लाइन कहती हैं, "जब आप शरीर से पानी बाहर निकाल देते हैं तो रक्तचाप भी कम हो जाता है." इसका असर भले कम समय के लिए रहे लेकन ये भारी पड़ सकता है. रक्त संचार तंत्र के सही ढंग से काम न करने की स्थिति में व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है.

ब्लड डोपिंग

ब्लड डोपिंग एक दशक पहले ही पकड़ में आई. हालांकि कुछ शातिर खिलाड़ी 1980 के दशक से इसके इस्तेमाल करते आ रहे थे. आम तौर पर ब्लड कैंसर के मरीजों का खून बदला जाता है. समय समय पर उनके शरीर में समान ब्लड ग्रुप का नया खून डाला जाता है. किसी किशोर का खून ऐसे मरीजों के लिए फायदेमंद होता है. किशोरों के रक्त में लाल रुधिर कणिकाओं की मात्रा ज्यादा होती है. ये कणिकाएं ज्यादा ऑक्सीजन का प्रवाह करती हैं, जिससे शरीर में ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है.

लेकिन कुछ खिलाड़ी प्रदर्शन बेहतर करने के लिए किशोरों का खून चढ़ाते रहे. इसे ही ब्लड डोपिंग कहा जाता है. ऐसा करना प्राणघातक साबित हो सकता है. ब्लड ग्रुप समान होने के बावजूद शरीर के कुछ अंगों पर इसका बुरा असर पड़ सकता है. इस बीच एंटी डोपिंग एजेंसियों ने अब ऐसे तरीके विकसित कर लिए हैं जिनसे इसे भी पकड़ा जा सकता है. कई ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता इस डोपिंग में फंस चुके हैं.

डोपिंग का भविष्य

वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी और जर्मनी की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी, डोपिंग को रोकने के लिए इससे होने वाले नुकसान के बारे में जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं. वे दवाइयों की कंपनियों के साथ इसकी जांच के तरीके निकालने और काला बाजारी पर कानूनी रोकथाम की भी कोशिश कर रही हैं. क्लाइन कहती हैं तंत्र सख्त और मजबूत होता जा रहा है जिससे बच कर निकालना एथलीटों के लिए आसान नहीं होने वाला. जो कि बेहतर भविष्य की ओर इशारा करता है.

रिपोर्ट: सोनिया अंगेलिका डायह्न/ समरा फातिमा

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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