जैव विविधता के लिए मुश्किल पैसा जुटाना
९ अक्टूबर २०१२भारतीय शहर हैदराबाद में जैव विविधता पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत हुई है. 193 देशों से प्रतिनिधि दो हफ्ते विलुप्त होती प्रजातियों के बारे में बातचीत कर रहे हैं. यह 11वां जैव विविधता सम्मेलन है. सम्मेलन का उद्देश्य साफ है, जापान के नागोया में दो साल पहले तय की गई योजनाओं पर काम करना और तय लक्ष्य को पाना. उस साल 20 बिंदुओं वाली एक योजना बनाई गई थी ताकि बड़ी संख्या में प्रजातियों के विलुप्त होने को रोका जाए.
सरकारों को अगले दस साल में जैव विविधता की सुरक्षा प्राथमिकता के तौर पर तय करनी थी. लेकिन दो साल में सिर्फ पांच ही देशों ने इस समझौते का समर्थन किया. जैव विविधता सम्मेलन के कार्यकारी सचिव ब्राउलियो फेरेरा डे सोउजा दियास के मुताबिक हैदराबाद की कॉन्फरेंस सही समय पर हो रही है. "प्रकृति की सुरक्षा और जैव विविधता को बढ़ाने के लिए सरकार और समाज की प्रतिबद्धता वैसे तो बढ़ी है लेकिन अभी भी वादे और काम के बीच अंतर दिखाई देता है."
पैसे की मुश्किल
एक दिन की बहस का मुद्दा जैव विविधता को बचाने के लिए पैसे इकट्ठा करने पर रहा. प्रकृति संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ की जेन स्मार्ट का मानना है कि यूरोप इसके लिए पैसे देने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहा है. ऐसे में निजी क्षेत्र के निवेश की जरूरत है. हर देश की सरकार कुछ कर सकती है. "जब आप किसी सरकार के खरीदने की क्षमता देखते हैं, तो वह प्रकृति के लिए फायदेमंद विकल्प पर अगर ज्यादा काम करें तो बहुत बदलाव हो सकता है."
जर्मन सरकार ने भी हैदराबाद में एक प्रतिनिधि मंडल भेजा है. पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि जैव विविधता के लिए धन देना उसका मुख्य फोकस है. सामुद्रिक पर्यावरण में इस विविधता को बचाने के लिए जर्मन सरकार और कोशिशों की तरफदारी करती है. यूं तो जर्मनी के पर्यावरण मंत्री हंस पेटर आल्टमायर इस सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हैं, लेकिन जर्मनी उन 90 देशों में शामिल है जिसने बायोडाइवर्सिटी कन्वेन्शन का समर्थन किया है.
सम्मेलन के पहले प्रकृति संरक्षण संगठनों ने बैठक के संभावित परिणामों पर अविश्वास जताया. प्रकृति संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ की निदेशक जुलिया मार्टोन लेफेव्रे ने कहा, "नागोया में भी हमने बड़ी योजनाएं बनाई थी. जिसके लक्ष्य एकदम जमीन से जुड़े हुए थे. हमें गति बनाए रखनी होगी. जैव विविधता लगातार कम हो रही है और यह सुरक्षित धरती के लिए जरूरी सीमा भी तोड़ चुकी है."
धरती से खत्म हो रही प्रजातियों में 41 फीसदी उभयचर, 33 फीसदी प्रवाल, 25 फीसदी स्तनपायी, 13 प्रतिशत पक्षी और 23 प्रतिशत कोनफर वृक्ष हैं.
रिपोर्टः आंद्रे लेसली/एएम
संपादनः महेश झा