जान पर खेल कर रिपोर्टिंग
६ अगस्त २०१२स्पेन की रिपोर्टर माइटे करासको का कहना है, "हम ऐसा काम कर रहे हैं, जो आने वाले दिनों में लुप्त हो सकता है, वॉर रिपोर्टिंग." करासको एक फ्रीलांसर हैं. वह उन दर्जन भर पत्रकारों और फोटोग्राफरों की दल में चुनी गई हैं, जिन्हें चुपके से सीरिया में खिसका दिया गया है, ताकि वहां की खबरें सामने आ सकें. सीरिया में पिछले 17 महीने से संघर्ष चल रहा है.
इन पत्रकारों को गैरकानूनी तरह से सीरिया में घुसना पड़ा और इस काम में उत्तर के विद्रोहियों ने उनकी मदद की. अगर वे वीजा लेकर वहां जाते, तो उन्हें हर वक्त सरकार की मीडिया गाइड के हिसाब से काम करना पड़ता. इस वजह से उन्हें ज्यादा जगह जाने की अनुमति नहीं मिलती.
इस तरह के पत्रकार अपने दम पर काम करते हैं और इसके लिए पैसे के अलावा साहस और जज्बा ही सब कुछ होता है. उनके पीछे हर वक्त पकड़े जाने या मारे जाने का खतरा मंडरा रहा होता है. पूरे मिशन में इन्हें एक ही चीज सहायता करती है, किस्मत.
मध्य पूर्व में बरसों तक संघर्ष की रिपोर्टिंग करने वाली अर्जेंटीना की कारेन मारोन का कहना है, "फ्रीलांसर को इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसे अपना खर्च खुद उठाना पड़ता है. उसके पास कोई मेडिकल बीमा नहीं होता और न ही वह किसी बड़े मीडिया हाउस से एक्रीडेटेड होता है. वह अकेला होता है, बिलकुल अकेला. लेकिन यह उसी का फैसला होता है."
लेकिन इन पत्रकारों को पता है कि ऐसे किसी मिशन में सफल होने के बाद उनका करियर बिलकुल बदल सकता है. इटली के जूलियो पिसिटेली का कहना है, "पिछले साल मैं लीबिया नहीं जा पाया, जिसका मुझे अफसोस है. लेकिन मुझे उम्मीद है कि सीरिया का अनुभव मेरे करियर के लिए बहुत बड़ा साबित होगा." पहली बार वॉर रिपोर्टिंग कर रहे पिसिटेली का कहना है, "बड़ी एजेंसियां अपनी जरूरत के हिसाब से लोगों को नहीं भेज पातीं. इसकी वजह से मेरी पूछ बढ़ती है."
स्पेन के वीडियो पत्रकार रोबर्तो फ्राइले का कहना है कि इसके बावजूद हमारा शोषण होता है, "हम हमेशा संकट में रहते हैं. बहुत से पत्रकारों के पास सुरक्षा कवच या हेलमेट भी नहीं है, बहुत कम लोगों के पास सैटेलाइट फोन है. हमारे पास नकद पैसे भी नहीं होते." स्पेन के ही फोटो पत्रकार अलबर्तो प्रियतो भी उनकी बात को सही बताते हैं, "मुझे नहीं लगता कि मैं जिस मीडिया के लिए काम करता हूं, वह मेरी कद्र करता है. कभी कभी तो वे मेरे ईमेल का जवाब भी नहीं देते और मेरी तस्वीरें भी नहीं छापते. और अगर लेते भी हैं, तो कम पैसा देना चाहते हैं."
पर ऐसे काम पैसों के लिए कौन करता है. पिसिटेली का कहना है, "मुझे अपना काम पसंद है और मुझे लगता है कि हम जो कर रहे हैं वह बहुत जरूरी है."
अर्जेंटीनी मारोन कहती हैं, "इंसानी नजर से देखें, तो कभी कभी जीना भी मुहाल हो जाता है. फ्रीलांसर गजब का काम करता है और उसे इसकी शाबाशी भी मिलती है. लेकिन इसके बाद कभी ऐसे दिन भी आते हैं, जब बिना किसी वजह से उसे किनारे कर दिया जाता है." फ्रीलांसर पत्रकार और मीडिया ग्रुपों में कोई लिखित कांट्रैक्ट नहीं होता. यह आपसी रिश्तों पर निर्भर करता है कि उनसे कितना काम लिया जाएगा और इसकी क्या कीमत मिलेगी.
ब्रिटेन के वीडियो पत्रकार जॉन रॉबर्ट्स का कहना है कि उन्होंने बहुत सोच समझ कर अपनी मर्जी से फ्रीलांस पत्रकार बनने का फैसला किया, "जाहिर है मुझे भी जीवन चलाने के लिए कमाना है. मैं अपने साथियों से मिलने वाली प्रशंसा का कायल रहता हूं लेकिन इससे अलग बात यह है कि मैंने अपनी पसंद से यह काम चुना है."
फ्रीलांसर पत्रकारों को पता है कि वॉर रिपोर्टिंग में खतरे कितने बड़े हैं और यहां तक की जान की भी कोई गारंटी नहीं है. उन्हें पता है कि पैसे और शोहरत भी नहीं मिलने वाली. फिर भी जुनून के आगे इन बातों की भला कौन फिक्र करता है.
एजेए/एमजी (एएफपी)