जहरीले सांपों से चलता जीवन
१२ मार्च २०१३वकीरा को लोग उसके इलाके में बॉस कोबरा के नाम से जानते हैं. इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से करीब 200 किलोमीटर दूर केर्तासुरा गांव में वकीरा एक कसाईघर चलाता है. एशिया के कई देशों में सांप का मांस बहुत चाव से खाया जाता है. चीन के अलावा इंडोनेशिया भी सांपों के लिए एक बड़ा बाजार है. कसाईघरों में सांप को मार कर मांस और खाल अलग की जाती है. इस खाल से महंगे पर्स, बेल्ट और जूते बनते हैं. साथ ही दवाएं बनाने के लिए भी इन्हें इस्तेमाल किया जाता है.
48 साल का वकीरा बचपन से ही सांपों के साथ जुड़ा रहा है, "मैं दस साल की उम्र से सांप पकड़ने का काम कर रहा हूं. मैं सांपों को अच्छी तरह समझता हूं, मैं जानता हूं उनके साथ कैसे पेश आना है." वकीरा के पेशे में खतरा है, वह सांपों को जितना भी अच्छी तरह जानता हो, लेकिन नाग के डंक से वह भी बच नहीं पाया है. हर रोज वह अलग अलग प्रजातियों के करीब एक टन सांप जमा करता है. सांपों को पकड़ कर लाने वालों के इस काम के लिए एक किलो के करीब पचास रुपये मिलते हैं.
कोबरा से अजगर तक
वकीरा इन सांपों को एक बड़े से डब्बे में बंद कर देता है. उन्हें वहां तब तक रखा जाता है जब तक वह दम घुट कर मर नहीं जाते, "यह बहुत आसान है और प्रभावशाली भी. उन्हें मरने में बस तीन घंटे लगते हैं." लेकिन अजगर को मारने में यह तरीका काम नहीं आता. उसके सिर पर एक मोटी सी लाठी से वार किया जाता है. इसके बाद काम शुरू होता है खाल उतारने का. अन्य सांपों की खाल हाथ से ही उतार ली जाती है और उसके अंदरूनी हिस्सों को अलग कर दिया जाता है. लेकिन अजगर के मुंह में पाइप डाल कर उसमें पानी भरा जाता है. इस से खाल फूल जाती है और उसे आसानी से खींच कर निकाला जा सकता है.
वकीरा हर महीने करीब 100 कोबरा खरीदता है, लेकिन अजगर की संख्या काफी कम होती है. ये सारा काम वह खुद नहीं करता. इसके लिए उसने कुछ कसाई रखे हुए हैं. सभी कसाइयों को वेतन देने के बाद भी वह हर महीने करीब एक लाख रुपये तक कमा लेता है. गांव में खेती बाडी करने वाले लोगों की तुलना में यह एक बड़ी रकम है, "शुक्र है इस धंधे का कि मैं अपने मां बाप और सास ससुर को हज पर भेज सका."
भारत में भी
दुनिया भर में सांपों की 3,315 प्रजातियां हैं. इनमें सबसे ज्यादा, यानी 128 प्रजातियां इंडोनेशिया में पाई जाती हैं. दूसरे नंबर पर 112 प्रजातियों के साथ भारत है और उसके बाद 54 के साथ चीन. पूर्वी भारत में भी सांप का मांस खाया जाता है. सांप के शिकार के कारण दुनिया भर में इनकी संख्या कम होती जा रही है. जानकारों का मानना है कि हर जीव की तरह सांप भी इकोसिस्टम के लिए जरूरी हैं और उनको भारी संख्या में मारने का सीधा असर हमारी खाद्य श्रृंखला पर पड़ सकता है.
हालांकि वकीरा जैसे कसाइयों के लिए ये बातें मायने नहीं रखतीं. उस जैसे अन्य लोगों को बस इतना ही पता है कि सांपों के कारण वे अपना घर चला पा रहे हैं. लेकिन वह भविष्य में इसे बदलना जरूर चाहते हैं. वकीरा के चार बच्चे हैं जिनमें से दो उसकी कसाईघर में मदद करते हैं. बाकी दोनों अब भी स्कूल में हैं और वकीरा नहीं चाहता कि वे इस काम में आएं, "मैं चाहता हूं की वे यूनिवर्सिटी जा कर पढाई करें, ताकि वे कुछ और बन सकें, वे डॉक्टर बनें, इंजीनियर बनें."
आईबी/एमजी (डीपीए)