एड्स के साथ पैदा हुए बच्चे भी जी सकते हैं लंबी जिंदगी
२८ नवम्बर २०१९इन बच्चों का पैदा होते ही इलाज शुरू कर लंबे समय के लिए उनके बेहतर स्वास्थ्य की उम्मीदें बढ़ाई जा सकती है. अमेरिकी रिसर्चरों ने अफ्रीका में पीड़ित बच्चों के एक छोटे से समूह पर अध्ययन करने के बाद यह बात कही है. विकासशील देशों में एचआईवी का संक्रमण बच्चों के स्वास्थ्य पर एक बड़ा बोझ बन गया है. एक रिसर्च बताती है कि केवल उप सहारा अफ्रीका में हर दिन करीब 300 से 500 बच्चे एचआईवी से संक्रमित हो रहे हैं.
अफ्रीकी एचआईवी पीड़ित बच्चों पर रिसर्च के सहलेखक डॉ रोजर शापिरो का कहना है, "बिना इलाज के एचआईवी संक्रमित 50 फीसदी बच्चे दो साल में मौत के मुंह में चले जाते हैं." साइंस जर्नल ट्रांसलेशनल मेडिसिन ने इस बारे में रिसर्च रिपोर्ट छापी है. यह रिसर्च एचआईवी पीड़ित उन बच्चों के रिसर्च से आगे जाती है जिन्हें पैदा होने के कुछ ही हफ्तों बाद एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी दी गई और वो इस बीमारी से मुक्त हो गए. पहला ऐसा मामला 2010 में मिसिसिपी में पैदा हुए एक बच्चे का था जिसका इलाज पैदा होने के 30 घंटे के भीतर ही शुरू कर दिया गया और कई महीनों बाद जब वायरस पर नियंत्रण हो गया तो उसका इलाज बंद कर दिया गया.
नई स्टडी में अमेरिकी यूनिवर्सिटी हार्वर्ड और एमआईटी के रिसर्चरों ने बोत्सवाना के 40 एचआईवी पीड़ित बच्चों का जल्दी इलाज शुरू किया. बोत्सवाना में 24 फीसदी गर्भवती महिलाएं एचआईवी वायरस के साथ जी रही हैं जिनकी वजह से एड्स की बीमारी होती है. रिसर्चरों ने बताया है कि पहले 10 बच्चों को पैदा होने के कुछ ही घंटों और दिनों के भीतर एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट दिया गया. 10 दूसरे बच्चों का इलाज पैदा होने के चार महीने बाद किया गया और फिर उनकी तुलना 54 ऐसे बच्चों से की गई जो एचआईवी पीड़ित नहीं थे.
करीब 96 हफ्तों के बाद जब नतीजों की तुलना की गई तो जिन बच्चों का इलाज जल्दी शुरू किया गया था उनमें वायरस का भंडार काफी छोटा था. एचआईवी वायरस इलाज के दौरान इंसान के शरीर में रहते हैं. रिसर्चरों ने देखा कि जिन बच्चों का जल्दी इलाज शुरू हुआ था उनका प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत था, उन बच्चों के मुकाबले भी जो एचआईवी से पीड़ित नहीं थे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मौजूदा दिशानिर्देशों के मुताबिक नवजात बच्चों को एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट पैदा होने के कुछ हफ्तों के भीतर देना शुरु कर दिया जाना चाहिए ताकि वायरस पर लगाम लग सके. अगर ऐसा नहीं होता तो प्रतिरक्षा की कमी बहुत जल्द घातक स्तर पर पहुंच जाती है. शापीरो का कहना है कि शुरूआती इलाज कोई उपचार नहीं है लेकिन दूसरे खोजों के साथ इसे जोड़ कर एचआईवी के रोकथाम को बेहतर बनाया जा सकता है.
रिसर्च टीम का यह भी कहना है कि कुछ बच्चों पर खासतौर से तैयार किए गए रक्षक एंटीबॉडी का परीक्षण किया जा सकता है. ये एंटीबॉडी एचआईवी को बेकार कर देते हैं. इस तरीके से बच्चों में बीमारी को जीवन भर के इलाज के बगैर भी नियंत्रित किया जा सकता है. यह परीक्षण 2020 में शुरू होंगे.
एनआर/आरपी (रॉयटर्स)
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