जर्मनी में रोजा रखते खिलाड़ी
२ अगस्त २०१३गेल्जेनकिर्शेन के आर्मिनिया हासेल फील्ड में सुलेमान बैसल फुटबॉल की गेंद के साथ ड्रिबलिंग कर रहे हैं. साफ आसमान से सूरज अपनी चमक दिखा रहा है. लेकिन रमजान की शुरुआत के बाद भी फुटबॉल प्रैक्टिस रुकी नहीं. 15 घंटे से वे बिना खाए पिए रोजे पर हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि बिना पानी और खाए पिए खेलना खतरनाक साबित हो सकता है.
दूसरे मुसलमानों की तरह ही 21 साल के इंग्लिश और दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी बैसल रोजा रख रहे हैं. वे कहते हैं, "मैं हमेशा एक ही वाक्य सुनता हूं, तुम्हें कुछ पीना नहीं है... ऐसा तुम कैसे कर सकते हो." सवाल की तरह ही उनका जवाब भी हमेशा एक ही रहता है, "मुझे अभी पीने के लिए कुछ नहीं चाहिए. सच में नहीं चाहिए."
जर्मनी में करीब 40 लाख मुस्लिम रहते हैं, यह जर्मनी की पांच फीसदी जनसंख्या है. सेंट्रल काउंसिल फॉर मुस्लिम्स के मुताबिक जर्मनी के 94 फीसदी से ज्यादा लोग रोजा रखते हैं. बैसल भी पिछले 10 साल से रोजा रख रहे हैं. खिलाड़ियों के लिए रोजे में खास ध्यान रखना जरूरी है.
क्या हैं फायदे
अपने परिवार के साथ बैसल रात नौ बजे के करीब रोजा खोलते हैं और सुबह तीन बजे का अलार्म लगाते हैं. सूरज उगने से पहले वह एक लीटर पानी पीते हैं. बैसल की टीम वायईजी हासेल के आधे लोग रोजे पर हैं. बैसल नौ खिलाड़ियों वाली टीम और 10 साल के बच्चे के कोच हैं. खिलाड़ी उनकी प्रतिबद्धता का आदर करते हैं.
बैसल का कहना है कि युवा खिलाड़ी अपनी पानी की बोतल उनसे छिपाते हैं ताकि मैं उन्हें पानी पीते हुए नहीं देखूं. मैं उनसे कहता हूं, "तुम लोगों को ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है. पानी पियो. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन वे बहुत ध्यान रखते हैं."
2010 में जर्मन फुटबॉल संघ (डीएफबी), जर्मन फुटबॉल लीग (डीएफएल) और केंद्रीय मुस्लिम परिषद ने घोषणा की थी कि रमजान के दौरान व्यावसायिक फुटबॉल खिलाड़ियों को रोजे से मुक्त रखा जाएगा. लेकिन कुछ ने फिर भी रोजे रखने का फैसला किया. इनमें बायर्न म्यूनिख के फ्रांक रिबेरी शामिल हैं. बैसल उनसे प्रेरणा लेते हैं. "वे खिलाड़ी जो टॉप लीग में हैं, जो काफी पैसे कमाते हैं. हर प्रोफेशनल फुटबॉल प्लेयर की तरह ही व्यवहार करते हैं और वे रोजा भी रखते हैं. दिन में तीन बार ट्रेनिंग के साथ. वे मेरे आदर्श हैं."
खास वर्कआउट प्लान
डुइसबुर्ग वालसुम के विंग त्सुन मार्शल आर्ट्स स्टूडियो में ओगुजान बातार लकड़ी की एक मूर्ति पर वार कर रहे हैं. स्टूडियो उनके पिता की है और 23 साल के ओगुजान यहां मार्शल आर्ट्स सिखाते हैं. उनके लिए रमजान कुछ अलग है. वह अप्रैल में बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले हैं और वह एक भी मसल खोने का जोखिम नहीं उठा सकते. ओगुजान बातार कहते हैं, "ये (प्रतियोगिता) मेरे बचपन का सपना है. इसलिए मैंने तय किया है कि मैं एक साल कोई रोजा नहीं रखूंगा. अभी तक मैंने हमेशा रोजा रखा. और प्रतियोगिता के बाद भी मैं रखूंगा."
स्टूडियो में आने वाले अधिकतर लोग रोजा रखते हैं. इसलिए उन्होंने एक स्पेशल रमजान वर्क आउट डिजाइन किया है. जो ताकत की बजाए तकनीक पर फोकस करता है. रक्त संचार पर कम जोर आता है. यह दिमागी ताकत पर ज्यादा फोकस करता है."
निजी अनुभव के आधार पर बातार जानते हैं कि फिटनेस और रोजे एक साथ रखना बड़ी चुनौती है. "सामान्य स्थिति में आप 80 किलो का वजन 10 से 12 बार उठा लेते हैं लेकिन इस समय 60 किलो हिलाने में भी मुश्किल होती है."
मांसपेशियों को नुकसान
बातार कहते हैं कि रमजान के दौरान मसल्स बनाना नामुमकिन है क्योंकि उपवास या रोजे के दौरान शरीर जमा फैट का इस्तेमाल करता है. जर्मनी में असोसिएशन ऑफ न्यूट्रिशन स्पेशलिस्ट्स के सदस्य डॉ मथियास रीडल कहते हैं, "जो भी उपवास करता है उसके मसल्स कम होते हैं."
रीडल बताते हैं कि शरीर को प्रति किलोग्राम के मुताबिक कम से कम एक ग्राम प्रोटीन लेना ही चाहिए. और यह दिन के तीन खाने में बंटा हुआ होना चाहिए. क्योंकि इतना ज्यादा प्रोटीन आप एक बार में नहीं ले सकते. "बॉडीबिल्डिंग प्रोटीन की खास खुराक पर निर्भर होता है जो एक्सरसाइज से पहले और दो घंटे बाद लिया जाता है."
इसलिए बतार अपने साथियों को सलाह देते हैं कि रोजा खोलने से ठीक पहले वो कसरत करें ताकि डिहाइड्रेशन, सिरदर्द और मांसपेशियों में क्रैंप्स नहीं हों. वे सलाह देते हैं कि वर्क आउट 45 से 60 मिनट का हो. रमजान के साथ ट्रेनिंग को जोड़ना जरूरी है.
खिलाड़ी बैसल रोजे को अच्छा मानते हैं और कहते हैं कि इससे शरीर का जहर खत्म होता जाता है. जबकि डॉ रीडल इसके सख्त आलोचक हैं. वे कहते हैं, "जो लोग कई सप्ताह या दिन उपवास करते हैं वे मांसपेशियों को नुकसान पहुंचाते हैं. रोजे के कोई अच्छे प्रभाव नहीं है."
हालांकि रमजान और रोजे सदियों से चले आ रहे हैं और यह इस्लाम धर्म में अहम है. बातार कहते हैं, "आपको दूसरों की जरूरतों को समझना जरूरी है, कि कुछ नहीं होने का मतलब क्या होता है. और आपके पास जो है आप उसकी कीमत समझें और उसके प्रति कृतज्ञ हों."
फुटबॉलर बैसल को जब भी भूख महसूस होती है वे अपना ध्यान आध्यात्मिक प्रैक्टिस पर लगा देते हैं. "रोजा एक प्रार्थना की तरह है. अगर आप इसे 15-16 घंटे कर रहे हैं तो आप अल्लाह से सीधे 15-16 घंटे जुड़े हुए हैं... सिर्फ ऐसा सोचने से ही एक अजीब तरह का रोमांच होता है. क्योंकि यह बहुत ही शानदार भावना है."
रिपोर्टः लोरी हैर्बर/आभा मोंढे
संपादनः महेश झा