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जर्मनी में रेफरियों की ट्रेनिंग

१४ फ़रवरी २०१३

जर्मनी में फुटबॉल बेहद लोकप्रिय है. लेकिन व्यवसायीकरण के कारण यह तेज और जटिल होता जा रहा है. रेफरी पर भी दबाव लगातार बढ़ रहा है. इसलिए उनकी नियमित ट्रेनिंग जरूरी है.

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तस्वीर: picture alliance/DeFodi

रेड कार्ड या येलो कार्ड, हैंड बॉल या ऑफसाइड? रेफरी का फैसला अंतिम होता है. उन्हें पल भर में फैसला करना होता है. स्थिति का आकलन करना पड़ता था, पहले क्या हुआ, फाउल या ऑफसाइड? हाथ बॉल की ओर गया या खिलाड़ी ने नाटक किया या उसके साथ फाउल हुआ? टेलीविजन के पर्दे पर जिसे तीसरे रिपीट में साफ तौर पर पेनल्टी के रूप में देखा जा सकता है, उसे मैदान पर रेफरी ने सिर्फ एक बार देखा है और वह भी दौड़ते हुए आंखों के कोने से.

जरूरत पड़ने पर उसकी मदद के लिए सहायक होते हैं, जिन्हें बोलने का अधिकार भी होता है. लेकिन वायरलेस पर होने वाली बातचीत को कम से कम रखा जाता है. फीफा के लिए रेफरी का काम कर चुके हेल्मुट क्रूग कहते हैं, "खिलाड़ी के विपरीत रेफरी के पास गलती सुधारने का मौका नहीं होता." क्रूग जर्मन फुटबॉल लीग में रेफरियों के विशेषज्ञ हैं. वे उन्हें प्रशिक्षण देते हैं और उन पर नजर रखने वाले पर्यवेक्षकों को भी ट्रेनिंग देते हैं. खेल के दौरान गलत फैसलों को कम करने के लिए जर्मनी में साल में चार बार रेफरियों की परीक्षा होती है.

क्रूग बताते हैं, "हर खेल में रेफरी के लिए औसतन 220 बार फैसले के मौके आते हैं, इनमें 90 फीसदी फैसले सही होते हैं." रेफरी के करियर को चरित्र बनाने वाला और व्यक्तित्व को निखारने वाला बताते हुए क्रूग कहते हैं कि मुश्किल मौकों पर रेफरी को छोटी सजाओं का सहारा लेना चाहिए. उनका कहना है कि फुटबॉल स्टेडियम में 60,000 दर्शकों की धिक्कार का सामना करना आसान नहीं होता.

Fußball Bundesliga 16. Spieltag Borussia Dortmund VfL Wolfsburg
तस्वीर: picture-alliance/dpa

बढ़ती धक्कामुक्की

फिर भी अक्सर कुछ मामलों की भारी चर्चा होती है. विशेषज्ञों के बीच भी. इसलिए बुंडेसलीगा के रेफरियों को खिलाड़ियों की ही तरह खेल में अपने प्रदर्शन को बार बार देखना पड़ता है. उसमें बॉल में हाथ लगने को उसी तरह ध्यान से देखा जाता है जैसे दूसरी गलतियों और विवादित कदमों को. यदि कोई खिलाड़ी हाथ उठाकर या साइड में ले जाकर अपने शरीर का इलाका बढ़ाता है तो इसे हाथ का प्रतिबंधित खेल माना जाता है.

जर्मन फुटबॉल लीग बुंडेसलीगा के मौजूदा सीजन के पहले चरण पर निगाह डालते हुए अंपायरिंग विशेषज्ञ को खासकर खिलाड़ियों के बीच द्वंद्व में कोहनी के इस्तेमाल की बात खराब लगी है. अक्सर खिलाड़ी कोहनी उठाकर दूसरे खिलाड़ी के ऊपर कूदते हैं, दौड़ते हुए पीछे कोहनी मारते हैं या बांह का इस्तेमाल हथियार के तौर पर करते हैं. जर्मन फुटबॉल संघ में अंपायरिंग विशेषज्ञ हर्बर्ट फांडेल कहते हैं, "जो बांह बाहर कर प्रतिद्वंद्वी के चेहरे पर वार करता है, उसे मैदान के बाहर जाना होगा. और जो कोहनी या बांह से अपने प्रतिद्वंद्वी के चेहरे पर चोट करता है, उसे भी बाहर जाना होगा."

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तस्वीर: Timur Emek/dapd

युवा रेफरियों की कमी

फांडेल और क्रूग इस समय रेफरियों की कमी का रोना रो रहे हैं. रेफरी बनने की चाह वाले युवाओं की कमी है. क्रूग कहते हैं, "इसका निश्चित तौर पर इस बात से लेना देना है कि बहुत से युवा लोग अब इस इलाके में तंग होने को तैयार नहीं हैं." वे कहते हैं कि स्वाभाविक रूप से यहां या वहां रेफरियों पर होने वाले हमले भी युवा लोगों की उदासीनता के लिए जिम्मेदार हैं. "रेफरियों पर हमला मददगार नहीं है. हमें युवा रेफरियों को सक्रिय तौर पर मदद देने की जरूरत है, और जहां ऐसे लोग हैं वहां हम अच्छा अनुभव हासिल कर रहे हैं."

कुल मिलाकर क्रूग बुंडेसलीगा के पहले चरण में हुए खेलों का और रेफरियों के प्रदर्शन का सकारात्मक मूल्यांकन करते हैं. वे कहते हैं, "हम रेफरियों के प्रदर्शन को जनमत की अपेक्षा ज्यादा सकारात्मक तौर पर देखते हैं. साथ ही अंतरराष्ट्रीय गतिविधियां भी हमें सही साबित करती हैं. इस समय हमारे छह रेफरी प्रमुख यूरोपीय रेफरियों की सूची में हैं." किसी और देश के इतने ज्यादा रेफरी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय नहीं हैं. बुंडेसलीगा के दूसरे चरण के पहले हुआ वर्कशॉप अत्यंत सफल रहा. क्रूग कहते हैं, "हमारा लक्ष्य हमेशा यह होता है कि रेफरियों को पूरी तैयारी के साथ सीजन में भेजा जाए ताकि उन्हें पता हो कि उन्हें कहां हस्तक्षेप करना है और वे कहां खेल को प्रबावित कर सकते हैं."

रिपोर्ट: ओलिविया फ्रित्स/एमजे

संपादन: ए जमाल

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