जर्मनी में अब चीन से ज्यादा भारत के छात्र पढ़ने आ रहे हैं
९ मई २०२४भारतीय छात्रों का रुझान हमेशा से अंग्रेजी-भाषी देशों की तरफ ज्यादा रहा है. उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया उनके पसंदीदा ठिकाने रहे हैं. हालांकि इन देशों में ऊंची फीस और बाकी खर्च ज्यादा होने के साथ ही वीजा मिलने की दिक्कत उन्हें हतोत्साहित भी करती है.
इन सब के बीच जर्मनी की ओर भारतीय छात्रों का आकर्षण बढ़ा है. सिर्फ पांच साल के अंतराल में ही यहां पढ़ाई के लिए आने वाले छात्रों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है. जर्मन एकेडमिक एक्सचेंज सर्विस (डीएएडी) के मुताबिक, 2022 में भारत से जर्मनी आने वाले छात्रों की संख्या 42, 997 तक पहुंच गई जो बीते कई वर्षों में सबसे ज्यादा है. एक साल पहले से ही अगर तुलना करें तो यह करीब 26 फीसदी ज्यादा है. 2021 में 34,134 छात्रों ने जर्मनी का रुख किया था.
जर्मनी में घरों की किल्लत से बहुत परेशान हैं विदेशी छात्र
भारतीय छात्रों के पसंदीदा विषय
आंकड़े बताते हैं कि 2018 में 20,810 छात्र थे जो 2022 तक 43,000 के करीब पहुंच गए यानी लगभग दोगुने से भी ज्यादा. इनमें 70 फीसदी लड़के और 30 फीसदी लड़कियां हैं. ज्यादातर भारतीय छात्र तकनीकी शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं. लगभग 60 फीसदी छात्रों ने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया जबकि कानून, प्रबंधन और सामाजिक विज्ञान में 22 फीसदी छात्रों ने रुचि दिखाई. 14 फीसदी छात्रों ने गणित और प्राकृतिक विज्ञान को चुना.
कई सालों से जर्मनी आने वाले छात्रों में सबसे बड़ी संख्या चीनी स्टूडेंट्स की होती थी. 2022 में यह संख्या 39,132 रही और भारतीय छात्र संख्या बल में उनसे आगे निकल गए. भारतीय छात्रों का समुदाय अब जर्मनी में सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय समुदाय है.
बॉन यूनिवर्सिटी से न्यूरोसाइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने झारखंड के रांची से जर्मनी आईं निहारिका कश्यप बताती हैं कि उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी उनकी पहली पसंद था. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने इसकी कई वजहें बताईं, "विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में रिसर्च करने वालों के लिए मेरी ही क्या पूरी दुनिया की पहली पसंद जर्मनी है." इसका श्रेय वह जर्मन यूनिवर्सिटियों में पढ़ाई और रिसर्च के उच्च स्तर को देती हैं.
जर्मनी ने खोले दरवाजे
विदेशी छात्रों की जर्मनी में दिलचस्पी बढ़ने के कई कारण है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में रोजगार के भी पर्याप्त मौके मौजूद हैं. वास्तव में यहां कुशल कामगारों की भारी कमी है. बहुत से छात्र पढ़ाई के बाद उसी देश में नौकरी भी चाहते हैं, और इस लिहाज से जर्मनी आना बहुत फायदेमंद रहता है.
इसके अलावा जर्मनी की ज्यादातर यूनिवर्सिटियों में ट्यूशन फी या तो होती नहीं या फिर बहुत मामूली होती है. ऐसे में छात्रों को सिर्फ अपने खर्चों के लिए ही पैसे की जरूरत पड़ती है. कश्यप ने बताया, "एक साल पढ़ाई का खर्च यहां लगभग 11 लाख रुपये है जिसमें सेमस्टर फी के नाम पर पूरे दो साल में सिर्फ 127,000 रुपये ही देने हैं. बाकी का पैसा रहने खाने का खर्च है."
छात्रों को यहां पढ़ाई के दौरान हफ्ते में 8-20 घंटे तक काम करने की भी छूट मिलती है. इसलिए वह अपने जेब खर्च या फिर दूसरी चीजों के लिए कुछ पैसा भी आसानी से कमा लेते हैं.
जर्मनी ने वीजा नियमों में कई सुधार कर छात्रों के लिए यहां आना आसान बनाया है. अब तो कई भारतीय डिग्रियों को मान्यता मिलने लगी है और उनकी पहले से जांच कराना भी जरूरी नहीं रह गया है. इसके अलावा वीजा की शर्तें भी आसान बनाई गई हैं. छात्रों को पढ़ाई के बाद नौकरी खोजने के लिए भी वीजा मिल रहा है. यानी पढ़ाई पूरी होने पर तुरंत नौकरी नहीं मिली तो भी छात्र कुछ समय तक यहां रह कर नौकरी खोज सकते हैं.
जर्मनी में बढ़ रहे हैं भारतीय छात्र
जर्मन सांख्यिकी विभाग के आंकड़े दिखाते हैं कि 2012 से 2017 के बीच रेजिडेंस परमिट हासिल करने वाले लोगों में से 83 फीसदी ने पांच साल की अवधि बीत जाने के बाद भी जर्मनी में ही रुकने का फैसला किया. इन पांच सालों के दौरान 68,900 लोगों को जर्मनी में ब्लू कार्ड मिला. इनमें सबसे ज्यादा यानी 22.4 फीसदी लोग भारतीय थे. चीन का हिस्सा इनमें 8.7 फीसदी जबकि रूस का 7.5 फीसदी था. दूसरे देश से आ कर जर्मनी रह जाने वालों में सबसे ज्यादा संख्या पूर्व अंतरराष्ट्रीय छात्रों की है. 55 फीसदी छात्र पांच साल का रेजिडेंट परमिट खत्म हो जाने के बाद भी जर्मनी में ही रुक जाते हैं. हालांकि जर्मनी में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या बीते दस सालों में 19.6 फीसदी घटी है.
जर्मनी आने की मुश्किलें
भारतीय छात्रों का जर्मनी आना बढ़ा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सारी दिक्कतें खत्म हो गई हैं. जर्मन भाषा की मुश्किल आज भी उनके लिए सबसे बड़ी है. जो छात्र पहले से जर्मन भाषा नहीं जानते उन्हें यहां कई तरह की परेशानी से जूझना पड़ता है. यह मुश्किल एयरपोर्ट पर उतरने के साथ ही शुरू हो जाती है.
निहारिका कश्यप ने डीडब्ल्यू से कहा, "बहुभाषी देश से आने के बावजूद जर्मनी में भाषा की वजह से रोजमर्रा के कामों में बड़ी दिक्कत होती है.डॉक्टर की सलाह से लेकर बस स्टॉप का नाम सुनने और बोलने में बड़ी परेशानी होती है. राशन खरीदना, या किसी से कुछ पूछना भी मुश्किल ही है. अंग्रेजी भाषी देशों में कम से कम यह दिक्कत नहीं है."
बहुत से कोर्सों में दाखिले के लिए जर्मन भाषा का ज्ञान जरूरी है. हालांकि पोस्ट ग्रेजुएशन के स्तर पर बहुत सारे कोर्स अब अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भी किए जा सकते हैं. जर्मनी छात्रों को जर्मनी आ कर भाषा सीखने के लिए भी वीजा देता है जो उनके लिए फायदेमंद हो सकता है.
बीते कुछ वर्षों में छात्रों को किराये पर घर लेने और इस तरह की दूसरी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा है. इसके अलावा यहां मनपसंद भोजन का नहीं मिलना और घर के सारे काम खुद करने की दिक्कत भी है. भारत से आने वाले छात्र यह देख कर हैरान रह जाते हैं कि यहां घर साफ करने से लेकर कपड़े धोने और खाना बनाने या बाजार से खरीदारी तक का सारा काम खुद करना होता है.
भारत के सामान्य मध्मवर्गीय परिवारों में इसकी जरूरत आमतौर पर कम लोगों को पड़ती है. हालांकि यह छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद भी करता है. कश्यप कहती हैं यह मुश्किल तो भारत के बाहर सभी देशों में है, जर्मनी ही अकेला ऐसा नहीं है.