जर्मनी पहुंचा यूरो संकट
८ नवम्बर २०१२सिर्फ निर्यात ही नहीं जर्मनी के आयात में भी कमी आई है और यह इस बात का साफ संकेत है कि संकट यूरोजोन की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को अच्छा खासा नुकसान पहुंचा रहा है. यूरोप की इस आर्थिक महाशक्ति के कारोबार में कमी की बात का पता चलने से पहले कई और निराश करने वाले आंकड़े सामने आ चुके हैं. कारोबार की भावना कमजोर पड़ रही है, निजी क्षेत्र सिमट रहा है, बेरोजगारी बढ़ रही है और औद्योगिक मांग साल में सबसे तेज गति से नीचे जा रही है.
ग्रीस और स्पेन तो महासंकट से जूझ ही रहे हैं, जहां सरकारें दिवालिया होने की कगार पर हैं और ऐसे में सरकारी खर्चों में भारी कटौती चल रही है. इसके अलावा यूरो जोन के बाकी देशों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है. आज जो हालत इन दोनों देशों की है वैसी ही स्थिति में कुछ और देश भी आ सकते हैं.
डेका बैंक के आंद्रेयास शॉयरले बताते हैं, "कर्ज संकट जर्मनी तक आ पहुंचा है. 2011 की गर्मियों से निवेश में आती जा रही कमी के कारण पैदा हुई अनिश्चितता का बोझ साल 2012 का अंत आते आते विदेशों से कम हुई मांग तक बढ़ गया है." संघीय सांख्यिकी विभाग से गुरुवार को जारी आंकड़े बता रहे हैं कि आयात में 1.6 फीसदी की कमी आई है जबकि निर्यात 2.5 फीसदी कम हुआ है. व्यापार संतुलन का फायदा अगस्त के 18.1 अरब यूरो से घट कर 17.0 यूरो पर आ गया है. अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले वक्त में यह और कम हो कर 16.9 अरब यूरो पर पहुंच जाएगा.
लंबे समय तक जर्मनी की अर्थव्यवस्था यूरोजोन की मुश्किलों से बची हुई थी, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि वह भी उसकी चपेट में आ रही है. कई अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था और सिमटेगी जो चांसलर अंगेला मैर्केल के लिए बड़ी सिरदर्द साबित हो सकती है. अगले साल ही जर्मनी में संघीय चुनाव होने हैं. देश में निर्यात का आंकड़ा अब तक ठीक ही रहा था और बीते नौ महीनों में से केवल चार में ही इसमें कमी आई. इसकी वजह यह थी की एशिया से आई मांग ने यूरोप से कम हुई मांग की भरपाई कर दी. गुरुवार को जारी आंकडों ने यह बता दिया है कि सिर्फ इतने भर से काम नहीं चलेगा और पूरी भरपाई नहीं हो पाएगी.
निर्यात पर निर्भर जर्मन कंपनियों ने घटती मांग के आगे झुकना शुरु कर दिया है. टायर बनाने वाली कंपनी कॉन्टिनेंटल ने कहा है कि वह अपना उत्पादन कम करेगी जबकि स्टील बनाने वाली कंपनी जाल्त्सगिटर ने भी आगे के लक्ष्य को कम करने की बात कही है. बुधवार को जारी यूरोपीय आयोग के पूर्वानुमान से पता चलता है कि अगला साल जर्मन निर्यात के लिए बहुत अच्छा नहीं रहेगा. यूरो जोन की अर्थव्यवस्था शायद ही विकास कर पाए. गुरुवार को ही जारी फ्रांस के आंकड़े बता रहे हैं कि देश का व्यापार घाटा सितंबर में कम हुआ है. फ्रांस को कम हुए ऊर्जा आयात और एयरबस की बिक्री में आई उछाल का फायदा मिला है हालांकि उन्हें भी लगभग सभी तरह के औद्योगिक निर्यात में कमी देखनी पड़ी है.
घरेलू मांग पर यूरो संकट का असर
आयात में कमी रॉयटर्स के कराए पोल में जारी पूर्वानुमान से भी कम रही है और इससे यूरो जोन के संकट के दौरान घरेलू मांग की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं. बेरेनबर्ग बैंक के क्रिश्चियान शुल्स का कहना है कि घरेलू मांग की बुनियाद अभी भी मजबूत है. बेरोजगारी की दर पिछले 20 सालों में सबसे निचले स्तर पर है और कई सालों के बाद वेतन में बढ़ोत्तरी हुई है. इसके अलावा पिछले पांच सालों की तुलना में उपभोक्ताओं का मनोबल नवंबर में सबसे मजबूत है. हालांकि इसके साथ ही शुल्स कहते हैं कि यूरो संकट निजी खपत को घटा रहा है और इसकी वजह से कंपनियां कम समय के लिए निवेश करने से कतरा रही हैं. शुल्स के मुताबिक, "बुनियाद ठीक है, वास्तव में समस्या केवल भरोसे की है जो इस साल संकट के कारण दबाव में आ गई है."
शुल्स का मानना है कि जब तक व्यापार जगत को यह भरोसा नहीं हो जाता कि यूरो संकट का हल हो जाएगा तब तक उनका भरोसा नहीं लौटेगा और बिना भरोसे के विकास की उम्मीद बेमानी है. जर्मन सरकार ने पिछले महीने अगले साल के विकास का अनुमान घटा कर 1.0 फीसदी कर दिया. इसी हफ्ते सरकार के अर्थशास्त्रियों के पैनल ने इसे और घटा कर 0.8 फीसदी कर दिया है.
एनआर/एमजे(रॉयटर्स)