जर्मन सेना का नाजी भूत से पीछा छुड़ाने की कोशिश
११ मई २०१७जर्मन सेना में कट्टर दक्षिणपंथियों की मौजूदगी और उन पर लगे राष्ट्रविरोधी साजिशें रचने के आरोपों के कारण रक्षा मंत्रालय में हलचल मची है. ऐसे दो सैनिकों और एक आम नागरिक को गिरफ्तार किया गया है, जिन पर शरणार्थी-समर्थक नेताओं को जान से मारने की साजिश रचने और सीरियाई शरणार्थी पर उसका दोष मढ़ने की तैयारी करने का आरोप है. एक सैनिक ने खुद शरणार्थी बन कर नकली पहचान पत्र भी हासिल कर लिया था.
रक्षा मंत्री उर्सुला फॉन डेय लाएन ने इस कांड के सामने आने के बाद सेना में सुधारों की एक श्रृखंला शुरु करने की घोषणा की है. सन 1982 में जारी की गयी "परंपराओं पर अध्यादेश" पर भी फिर से विचार किया जाएगा, जिसमें नाजी काल की सेना के प्रतीकों का प्रदर्शन करने की अनुमति थी. आज भी जर्मनी के कई आर्मी बैरकों में नाजी काल के स्टील के हेलमेट, हथियार और तस्वीरों का खुलेआम प्रदर्शन होता है.
दूसरे विश्व युद्ध के ठीक बाद जर्मनी को सेना रखने की अनुमति नहीं थी. 1955 में जाकर पश्चिम जर्मनी में बुंडेसवेयर की नींव पड़ी. फिर पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण के बाद बुंडेसवेयर में पूर्वी जर्मनी के 20,000 सैनिकों की भर्ती हुई. 1999 में पहली बार बुंडेसवेयर को कोसोवो युद्ध के अंतरराष्ट्रीय विवाद में हिस्सा लेने का मौका मिला. इसके पहले उन्हें केवल शांति मिशन में भेजा जाता था. डेय लाएन ने कहा है कि आज नाटो के सदस्य देश जर्मनी की सेना के मौजूदा नियमों में "कई अच्छी बातें हैं लेकिन कई मामलों में पीछे के दरवाजे भी खुले हैं."
जर्मन सेना को लेकर विवादों में फंसी रक्षा मंत्री ने किसी भी तरह के अतिवाद को दिखाने वाली चीजों पर पूरी तरह रोक लगाने का प्रण लिया है. हाल ही में गिरफ्तार हए जर्मन लेफ्टिनेंट 28 साल के फ्रांको ए. ने पहले भी नस्लभेदी रवैया दिखाया था लेकिन उसे नजरअंदाज किया गया. रक्षा मंत्री चाहती हैं कि सेना में सुधार लाकर ऐसी घटनाओं के भविष्य में दोहराव से बचा जाए. जर्मनी के बुंडेसवेयर में थल, जल और वायु सेना - तीनों शामिल हैं और इस समय करीब 180,000 सक्रिय सैन्यकर्मी हैं. फ्रांस के बाद पूरे यूरोपीय संघ में सबसे बड़ी सेना जर्मनी की ही है.
जर्मनी में 2015 से ही 10 लाख से ज्यादा शरणार्थी पहुंचे हैं. जिनमें से ज्यादातर सीरिया, इराक और अफगानिस्तान से हैं. शुरुआत में चली स्वागत की लहर के बाद कई जगहों पर विदेश-विरोधी स्वर धीरे धीरे मजबूत होते गये और नस्लभेदी हमलों की भी खबरें आने लगी हैं.
आरपी/एमजे (एएफपी)