जर्मन विश्वविद्यालय में खुलेगा इस्लाम विभाग
८ अक्टूबर २०१०इस्लाम विभाग खोलने के लिए हाइडेलबर्ग और फ्राइबुर्ग के विश्वविद्यालय भी दौड़ में थे, लेकिन प्रांतीय सरकार ने फैसला थुइबिंगन विश्वविद्यालय के पक्ष में किया, जहां पहले से न सिर्फ कैथोलिक और इवांजेलिक धर्मशास्त्र के प्रसिद्ध विभाग भी है, बल्कि जहां ओरियंटल स्टडीज के अलावा इस्लाम को समझने के लिए आवश्यक कई भाषाओं के विभाग भी हैं.
जर्मनी में इस समय विदेशियों के जर्मन समाज में घुलने मिलने के मुद्दे पर तीखी बहस चल रही है. जर्मनी में रहने वाले आप्रवासियों का बड़ा हिस्सा तुर्की मूल के मुसलमान निवासियों का है. अब तक मस्जिदों के इमाम तुर्की से आते हैं जो अक्सर जर्मन नहीं जानते. जर्मन राजनीतिज्ञों का आरोप है कि धार्मिक शिक्षा जर्मन संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों से परे होती है.
विश्वविद्यालय के स्तर पर पहली बार इस्लामी धर्मशास्त्र की पढ़ाई शुरू किए जाने के बाद अब मस्जिद के मौलवियों और इस्लाम के शिक्षकों का प्रशिक्षण पारदर्शी तरीके से हो पाएगा. प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध होने पर उन स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा शुरू की जा सकेगी जहां बड़ी संख्या में मुस्लिम छात्र पढ़ते हैं. जर्मन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है और स्कूलों में कैथोलिक तथा इवांजेलिक बच्चों को अपने अपने धर्म की शिक्षा धर्मशास्त्र में प्रशिक्षित शिक्षकों के जरिए दी जाती है.
जनवरी में वैज्ञानिक परिषद ने इमामों और धार्मिक शिक्षकों के प्रशिक्षण का प्रस्ताव दिया था. परिषद सिलेबस बनाने और शिक्षकों के चुनाव में भी शामिल होगी. इस परिषद में प्रमुख मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, मुस्लिम विद्वान और सार्वजनिक जीवन के व्यक्तित्व शामिल होंगे. इस साल के अंत तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी.चार मुस्लिम छतरी संगठनों ने थुइबिंगन विश्वविद्यालय में इस्लाम विभाग खोले जाने का समर्थन किया है.
उसके बाद विभाग के छह प्रोफेसरों की नियुक्ति की जाएगी जो 320 मुस्लिम छात्रों को इस्लामी धर्मशास्त्र पढ़ाएंगे. थुइबिंगन विश्वविद्यालय में ही कैथोलिक गिरजे के वर्तमान पोप योजेफ रात्सिंगर कैथोलिक धर्मशास्त्र पढ़ाते थे. छह में से तीन प्रोफेसरों का वेतन राज्य सरकार देगी जबकि दो का खर्च केंद्र सरकार देगी और एक का खर्च विश्वविद्यालय उठाएगा.
जर्मनी में इस्लामी फेकल्टी बनाने की राह में अब तक सबसे बड़ी बाधा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मुस्लिम धार्मिक संगठनों का अभाव था. धार्मिक रूप से तटस्थ सरकार को धार्मिक शिक्षा के विषयों पर परामर्श के लिए एक सहयोगी की जरूरत थी, क्योंकि वह अकेले इन मुद्दों पर कुछ तय नहीं करना चाहती. इसके विपरीत मुस्लिम संगठनों को जर्मनी के बड़े गिरजों जैसी संरचना बनाने में दिक्कत हो रही थी. इस समस्या का समाधान सहालकारी परिषद बनाकर किया गया है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ए जमाल