जर्मन कंपनियों के लिए अहम है एशिया
३१ अक्टूबर २०१२भूमंडलीकरण होता या नहीं होता, जर्मन कंपनियां यूं भी अपना ज्यादा कारोबार पड़ोसी यूरोपीय देशों के साथ करती हैं. जर्मनी के आयात और निर्यात का 70 फीसदी यूरोप में होता है. अभी भी विदेश व्यापार का सिर्फ 20 फीसदी एशियाई देशों के साथ होता है. इसके बावजूद जर्मन अर्थव्यवस्था के एशिया प्रशांत आयोग के प्रमुख फ्रीडोलीन श्ट्राक कहते हैं कि एशिया अच्छे भविष्य वाला कारोबारी इलाका है. "वह इसलिए इतना महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले सालों में तेज विकास खासकर एशिया में हुआ है, चीन से शुरू होकर." जर्मनी की प्रमुख औद्योगिक कंपनियों की बिक्री एशियाई देशों में तेजी से बढ़ रही हैं. श्ट्राक कहते हैं, "चीन इस बीच मशीनरी और संयंत्र बनाने वाली कंपनियों के लिए सर्वोपरि बाजार बन गया है."
नीदरलैंड या चीन
चीन एकमात्र ऐसा एशियाई देश है, जो पिछले सालों में जर्मनी के चोटी के दस कारोबारी सहयोगियों में शामिल था. जर्मनी के कुल आयात-निर्यात के मामले में चीन तीसरे नंबर पर है, जापान बड़े अंतर के साथ 14वें स्थान पर है जबकि दक्षिण कोरिया 21वें और भारत 24वें नंबर पर है. तेज आर्थिक विकास वाले एशिया के महत्व और व्यापार के आंकड़ों के बीच अजीब सा असंतुलन दिखता है. नीदरलैंड की आबादी करीब उतनी ही है जितनी चीनी शहर शंघाई की, लेकिन फिर भी छोटा पड़ोसी देश अभी भी जर्मन विदेश व्यापार के लिए दुनिया के सबसे बड़े देश से ज्यादा महत्वपूर्ण है.
पूरे बेल्जियम में भारत की राजधानी दिल्ली से कम लोग रहते हैं, लेकिन बेल्जियम के साथ जर्मनी का व्यापार भारत के साथ उसके व्यापार का पांच गुना है. फ्रीडोलीन श्ट्राक कहते हैं, "इसका मतलब है कि हमारे लिए वहां अभी और संभावना है, हम वहां और ज्यादा कर सकते हैं, वहां और ज्यादा उपस्थित रह सकते हैं." कुल मिलाकर अभी भी जर्मन उद्यम यूरोप केंद्रित हैं लेकिन कुछेक कंपनियां ऐसी भी हैं जिनका 40-50 फीसदी कारोबार एशिया के साथ होता है. जर्मन उद्योग जगत उन्हें ट्रेंडसेटर के रूप में देखता है.
एशियाई रसायन उद्योग
एशिया की अर्थव्यवस्था का विकास कुल मिलाकर यूरोप के मुकाबले ज्यादा तेजी से हो रहा है. यह एशियाई देशों को जर्मन निर्यात में भी झलकता है. उसमें 2009 से 2011 के बीच 50 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि यूरो क्षेत्र में निर्यात में सिर्फ 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. जल्द ही जर्मन कंपनियों के महत्वपूर्ण सहयोगियों की सूची में एशियाई कंपनियों का बोलबाला होगा. रसायन उद्योग में तो यह कब का हो चुका है. करीब आधा कारोबार इस बीच एशिया में हो रहा है, सिर्फ एक चौथाई कारोबार यूरोपीय देशों में होता है.
कंसल्टेंसी कंपनी एटी कार्नी का कहना है कि जल्द ही एशियाई कंपनियां यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ देंगी. कार्नी के एक सर्वे के अनुसार 2030 तक रसायन उद्योग का दो तिहाई कारोबार एशिया में होगा और हर दूसरा रासायनिक उद्यम एशिया का होगा. इस सर्वे के एक लेखक ऑटो शुल्त्स का कहना है कि जर्मन कंपनियों पर इसका असर होगा. "खरीद और विकास के फैसले एशिया में हो रहे हैं, इसलिए मैदान में बने रहना और एशिया में डिस्ट्रीब्यूशन और डेवलपमेंट क्षमता बनाना जरूरी है." शुल्त्स का कहना है कि इसके अलावा यूरोपीय बाजार का बचाव भी जरूरी है, जिसके लिए ग्राहकों का ख्याल रखना होगा.
एशिया व्यापार में जर्मन कमजोरियां
बीएएसएफ और लैंक्सेस जैसे जर्मन रासायनिक उद्यम चीन में रासायनिक उत्पाद बेचकर और वहीं उनका उत्पादन कर काफी कमाई कर रहे हैं. पश्चिम एशिया के देशों में संयंत्र लगाए जा रहे हैं और उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा रही है ताकि एशियाई देशों की मांगों को पूरा किया जा सके. ऑटो शुल्त्स कहते हैं कि कभी न कभी चीन आयात पर निर्भर नहीं रहेगा. "तब हम यूरोप में चीन से और पश्चिम एशियाई देशों से आयात देखेंगे. अब तक निर्यात करने वाला बाजार रहा यूरोप आयात करने वाला बाजार बन जाएगा."
अंतरराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में यह विकास कारोबारी आंकड़ों को पूरी तरह बदल देगा. निर्यात के चैंपियन जर्मनी का व्यापार संतुलन इस समय भी एशियाई देशों के पक्ष में है. भले ही ये देश तेज आर्थिक विकास के कारण जर्मनी से मशीनरी और कारखानों का आयात कर रहे हैं, लेकिन जर्मनी उनसे ज्यादा सामान खरीदता है. आने वाले सालों में संतुलन बनाना और मुश्किल होता जाएगा.
रिपोर्टः आंद्रेयास बेकर/एमजे
संपादनः एन रंजन