छंटनी से डरे ओपेल कर्मचारियों का प्रदर्शन
६ नवम्बर २००९फ्रैंकफ़र्ट के पास रुसेल्सहाइम में ओपल का कारखाना काफ़ी दूर तक फैला हुआ है. बरसात के बावजूद वहां कोई 10 हज़ार कर्मचारी काम छोड़ कर हाथों में तख़्तियां और बैनर लिए जमा हुए और उन्होंने जनरल मोटर्स के विरुद्ध नारे लगाए. उनका सबसे बड़ा डर यही था कि जनरल मोटर्स के प्रबंधक ओपल के कर्मचारियों की भारी छंटनी करेंगे. एक कर्मचारी ने कहा, "हमें कम से कम अपने पंजे दिखाने होंगे कि हम बिना लड़े मैदान नहीं छोड़ेंगे." एक और कर्मचारी के मुताबिक़, "वे केवल तीन कारख़ाने ही नहीं बंद करेंगे. अभी ऐसा कहते हैं पर बाद में और भी कारख़ाने बंद करेंगे. सरकार और कर्मचारियों को धौंस में लेने का यही उनके पास मौक़ा है."
रुसल्सेहाइम के कर्मचारियों के साथ अपनी सहानुभूति दिखाने के लिए हेसे राज्य के मुख्यमंत्री रोलांड कोख़ भी पहुंचे. रेलवे स्टेशन के पास के बड़े चौक पर जमा भीड़ के सामने उन्होंने कहा, "राज्यसत्ता होने के नाते हम हाथ बांधे खड़े नहीं रहेंगे, मानो ओपल से हमें कुछ लेना-देना ही नहीं है. हम चाहते हैं कि मैनेजमेंट, जो यह कहता है कि हम अकेले ही सब कुछ संभाल लेंगे, हमें बताए कि वह अकेले क्या करने जा रहा है. कौन सी युक्ति अब उसके पास है, जो पहले नहीं थी."
जर्मनी में रुसेल्सहाइम की तरह ही आइज़ेनाख़ और काइज़र्सलाउटर्न के ओपल कारख़ानों में भी कर्मचारियों ने आकस्मिक हड़ताल की और बाहर निकल कर प्रदर्शन किया. इस बीच पता चला है कि जनरल मोटर्स ओपल के 10 हज़ार कर्मचारियों की छंटनी करना चाहता है. ओपल को ख़रीदने की इच्छुक ऑस्ट्रियन-कनैडियन कंपनी मैगना भी इतने ही लोगों की छंटनी करना चाहती थी. शुक्रवार और शनिवार को यूरोप में अन्य जगहों के ओपल कारख़ानों में भी हड़ताल और प्रदर्शन होने वाले हैं.
लेकिन जानकार यह भी कहते हैं कि यह सारा रोष और क्षोभ अपनी भड़ास निकालने से अधिक महत्व नहीं रखता. होगा वही, जो जनरल मोटर्स की मर्ज़ी होगी. नेता लोग तब भी अपनी राजनैतिक रोटी सेंक रहे थे, जब ओपल कार कंपनी बिकाऊ थी और अब भी अपनी रोटी सेंक रहे हैं, जब वह बिकाऊ नहीं रही. अंतर इतना ही है कि इससे पहले सितंबर में जर्मन संसद के चुनाव होने थे, अब चुनाव हो चुके हैं.
रिपोर्ट- राम यादव
संपादन- अनवर जमाल