बीमारी है शक्ल भूलना
२८ नवम्बर २०१३रिसर्च की दुनिया में हर रोज नई बातें सामने आती रहती हैं जिनसे से पता चलता है कि इंसान की कई बीमारियों का बड़ा संबंध उसकी मनोवैज्ञानिक हालत से है. ऐसी ही एक बीमारी है फेस ब्लाइंडनेस यानि देखे हुए चेहरे भी अजनबी लगते हैं. कई ऐसी और बीमारियों के बारे में भी धीरे धीरे पता चल रहा है जिनका सीधा संबंध हमारी मानसिक हालत से है.
फेस ब्लाइंडनेस से जूझ रहे लोगों को अक्सर उन चेहरों को पहचानने में दिक्कत होती है जिन्हें वे पहले कई बार देख चुके होते हैं. मनोचिकित्सकीय भाषा में इसे प्रोसोपैग्नोसी कहते हैं.
चेहरों को पहचानने की क्षमता में कमी या परेशानी का अंदाजा कोई फिल्म या थिएटर देखते समय लगाया जा सकता है. इस तरह के मरीजों को फिल्म का एक सीन निकल जाने के बाद अगले ही सीन में हीरो की शक्ल याद नहीं रहती. कई बार ऐसी स्थिति मरीज के लिए शर्मिंदगी की वजह हो सकती है. मरीज के साथ कई बार उसके आसपास के लोग भी असहज महसूस करते हैं.
जर्मनी की सिल्विया टिपमान बायो इंफॉर्मेटिक्स की जानकार हैं. वह भी भूलने की इस खास तरह की बीमारी से परेशान हैं. वह कहती हैं इसकी वजह से उन्हें बहुत शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है क्योंकि कई बार वह अपने करीबी लोगों के चेहरे भी नहीं पहचान पाती हैं. उन्होंने बताया उनकी इस परेशानी की वजह से अक्सर लोग उन पर नाराज भी हो जाते हैं. उनकी प्रतिक्रिया सिल्विया के लिए कड़वी हो जाती है. उन्होंने कहा, "यह भी हुआ है कि जब मैं लोगों को नहीं पहचान पाती हूं तो लोग इसे मेरी बीमारी समझने के बजाय मुझे घमंडी समझने लगते हैं."
कई कारण
स्विट्जरलैंड की बैरन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और दृष्टि से संबंधित मनोवैज्ञानिक बीमारियों के जानकार यानेक लोबमायेर कहते हैं कि लोगों का ऐसी स्थिति में खराब प्रतिक्रिया देना स्वभाविक है. वह इस बीमारी पर रिसर्च भी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि यह बीमारी जन्मजात भी हो सकती है. सदमे से या कई बार सिर में चोट लगने से भी इस तरह की बीमारी हो सकती है.
जब एक स्वस्थ इंसान किसी चेहरे को देखता है तो मस्तिष्क के एक खास हिस्से में उसकी बनावट की तस्वीर उभरती है. मस्तिष्क का एक दूसरा हिस्सा उसकी बाकी की बनावट और हाव भाव के बारे में जानकारी इकट्ठा कर लेता है और तीसरा हिस्सा इस बात का पता लगाता है कि इंसान ने वह चेहरा पहले देखा है या नहीं.
किसी चेहरे को देख कर पहचानने में दिमाग के ये तीनों हिस्से एक साथ काम करते हैं. प्रोफेसर लोबमायेर मस्तिष्क की तुलना ऑर्केस्ट्रा से करते हैं, जिसमें अलग अलग वाद्य यंत्र बजा रहे सभी लोगों के बीच समन्वय जरूरी है. लोबमायेर के अनुसार 100 में से तीन लोग चेहरा पहचानने में दिक्कत या ऐसी किसी दूसरी मनोवैज्ञानिक बीमारी का शिकार होते हैं. इनमें उन लोगों को शामिल नहीं किया गया है जिन्हें पता ही नहीं होता कि वे बीमार हैं.
रिपोर्ट: मिषाएल हार्टलेप/ एसएफ
संपादन: एन रंजन