चेयरमैन को हटाए बिना क्या नहीं बचाई जा सकती थी जेट एयरवेज
२७ मार्च २०१९जेट एयरवेज पिछले कई साल तक भारत की टॉप एयरलाइन कंपनियों में बनी रही. लेकिन अब कंपनी को बचाने के लिए इसके संस्थापक और चेयरमैन नरेश गोयल को इस्तीफा देना पड़ा है. जेट एयरवेज को बचाने के लिए बैंकों और निवेशकों ने मदद देने का एलान किया है. जानिए कैसे बनी जेट एयरवेज और कहां से शुरू हुई इसकी मुश्किलें.
कब बनी जेट एयरवेज
90 के दशक में सरकारी प्रभुत्व को टक्कर देते हुए 1993 में पंजाब से आने वाले नरेश गोयल ने जेट एयरवेज की नींव रखी. बचपन में ही उनके ज्वैलरी कारोबारी पिता का निधन हो गया. परिवार की मदद के लिए गोयल ने अपने चाचा की ट्रैवल एजेंसी में टिकट बेचने का काम किया. आज की कीमत मुताबिक उस वक्त वह बमुश्किल 2,300 रुपये कमा पाते थे. इसके बाद गोयल ने 70 के दशक आते-आते इराकी एयरवेज, रॉयल जॉर्डेनियन एयरलाइंस और फिलिपींस एयरलाइंस में काम किया. उस वक्त तक भारत में दो सरकारी एयरलाइन कंपनियां ही थी, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस. लेकिन 90 के दशक में जब बाजार खोले गए तो नरेश गोयल ने 1993 में जेट एयरवेज की स्थापना की.
कब शुरू हुई मुश्किलें
साल 2000 में भारत की एविशयन इंडस्ट्री में बजट एयरलाइंस की भरमार हो गई. बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी तो जेट एयरवेज जैसी कंपनी ने भी लागत से कम कीमत पर टिकट देना शुरू कर दिया. इसके बाद ईंधन की बढ़ती कीमतों ने इस समस्या को और बढ़ा दिया. उस वक्त जेट एयरवेज की फ्लाइटों में मनोरंजन और प्रीमियम सुविधाएं देने वाली पहली कंपनी थी. वहीं किफायत पर जोर देने वाले भारतीय यात्रियों ने प्रीमियम सर्विसेज के लिए भुगतान करने से मना कर दिया. लेकिन बजट ऑपरेटरों के उलट जेट एयरवेज कंपनी ये सारी सुविधाएं फ्री में देती रही.
इंडस्ट्री विश्लेषक अमृत पादुरंगी मानते हैं कि गोयल ने भारत के विमानन क्षेत्र में अग्रणी काम किया है लेकिन कंपनी समय के साथ खुद को ढालने में विफल रही. बेंगलुरू एविशयन वेबसाइट के एडिटर देवेश अग्रवाल कहते हैं, "जब जेट के प्रतिस्पर्धी सस्ते दामों पर पुराने बोइंग विमान खरीद रहे थे उस वक्त भी गोयल की कंपनी ने आधुनिक और नए विमान खरीदे."
पिछले नौ सालों से नुकसान
कंपनी को पिछले 11 साल में से नौ साल लगातार नुकसान हुआ है. वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट मुताबिक कंपनी पर 73 अरब रुपये का शुद्ध ऋण है. वहीं कंपनी के खजाने में पिछले साल तक महज 3.55 अरब रुपये थे. नतीजतन जेट एयरवेज 31 दिसंबर को कर्ज की किश्त चुकाने में असफल रही. साथ ही साथ अन्य कर्ज दाताओं समेत अपने कर्मचारियों का भुगतान करने में भी इसे देरी हुई.
साल 2005 में फोर्ब्स ने गोयल की कुल संपत्ति को 2 अरब डॉलर का बताया था और उन्हें भारत का 16वां सबसे अमीर व्यक्ति घोषित किया था. लेकिन समय के साथ यह रुतबा ढलता रहा. कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि साल 2006 में एयर सहारा में 50 करोड़ डॉलर की नगद खरीद ने जेट की वित्तीय हालत को खराब कर दिया. कहा जाता है कि उस वक्त गोयल ने सलाहकारों का मशविरा नहीं माना जो उस डील को बहुत महंगा कह रहे थे.
जेटलाइट ब्रांड
इसके बाद जेट एयरवेज के बजट कैरियर की बतौर जेटलाइट रीब्रांडिंग की गई लेकिन इसने भी कंपनी का खूब पैसा डुबोया. साल 2015 आते-आते जेट को इसे अपने खाते में से हटाना पड़ा. उस वक्त जेट को संयुक्त अरब अमीरात की एतिहाद एयरवेज का सहारा मिला जिसने कंपनी में 60 करोड़ डॉलर का पूंजी निवेश किया. इसके चलते कंपनी बजट एयरलाइन मसलन इंडिगो, गोएयर और स्पाइसजेट को टक्कर दे रही थी. पादुरंगी कहते हैं, "जब सस्ती और बजट एयरलाइंस इंडस्ट्री में स्थापित हो गई तब भी जेट अपनी फुल सर्विस लाइन पर ऑपरेट करता रहा. यह कहना गलत नहीं होगा कि गोयल विमानन उद्योग की बदलती कारोबारी परिस्थितियों को नहीं समझ सके."
नया निवेश
कंपनी को बचाने के लिए बैंकों ने बेल आउट पैकेज की घोषणा की है. वहीं जेट एयरवेज भी एतिहाद और टाटा समूह से बातचीत कर रहा है. स्थानीय मीडिया कह रहा है कि संभव है कि सरकार द्वारा संचालित नेशनल इनवेस्टमेंट और इंफ्रास्टक्चर फंड भी इसमें एक निवेशक बने. वहीं स्टेट ऑफ इंडिया ने कहा है कि उसका लक्ष्य 31 मई तक नए निवेशकों को लाने का है. वहीं तुंरत राहत देते हुए कंपनी को बतौर कर्ज 15 अरब रुपये का फंड दिया जाएगा.
गोयल का इस्तीफा
सूत्रों के मुताबिक कंपनी के संस्थापक और चेयरमैन नरेश गोयल कंपनी के प्रबंधन पर हावी न रहे इस लिए एतिहाद और टाटा समूह जैसे संभावित निवेशकों ने उनके पद छोड़ने की मांग की थी. जेट एयरवेज पिछले सात सालों में चार प्रमुख कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) को बदल चुकी है. अब नए निवेशकों के आने के बाद नरेश गोयल की कंपनी में हिस्सेदारी 50 फीसदी से घटकर महज 25.5 फीसदी रह गई है. निवेशकों को उम्मीद है कि नए घटनाक्रम बाजार में जेट एयरवेज की बाजार हिस्सेदारी को बचाए रखेंगे लेकिन संस्थापक की भूमिका भी सीमित हो जाएगी.
वहीं जेट को बचाना सरकार के लिए भी सकारात्मक हो सकता है. दरअसल आम चुनावों में केंद्र की मोदी सरकार बेरोजगारी जैसे मुद्दे पर कड़ी आलोचना झेल रही है. वहीं अगर कंपनी खत्म होती है तो इसके 23,000 कर्मचारियों के सामने नौकरी की समस्या होगी ही साथ ही विमानन क्षेत्र से जेट की विदाई हवाई टिकटों को महंगा कर सकती है.
एए/ओएसजे (एएफपी)