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चुनावी मैदान में खून के आरोपी

१० जुलाई २०१३

पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के पहले दौर में 11 जुलाई को राज्य के माओवादी असर वाले तीन जिलों, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा व पुरुलिया में वोट डाले जाएंगे. मैदान में कई पूर्व माओवादी हैं, जिन पर संगीन से संगीन आरोप हैं.

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तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

इन इलाकों को जंगलमहल भी कहा जाता है. दिलचस्प बात यह है कि इन इलाकों में तृणमूल कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दलों ने पूर्व माओवादियों को मैदान में उतारा है. इलाके की कई सीटों पर ऐसे सैकड़ों उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध चुने जा चुके हैं. ऐसे सबसे ज्यादा लोगों को टिकट तृणमूल ने दिया है. जंगलमहल इलाके के लगभग दस हजार मतदान केंद्रों में से लगभग सभी को उच्च-संवेदनशील या संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है. माओवादी हिंसा की आशंका से पहले दौर के मतदान के लिए सुरक्षा का जबरदस्त इंतजाम किया गया है. लेकिन जब माओवादी ही चुनावी शतरंज पर मोहरे बने हों तो शह और मात से भला कौन डरेगा.

तृणमूल के उम्मीदवार

हत्या के कई मामलों में गिरफ्तार माओवादी हेमलेट मरांडी दिसंबर 2011 में गिरफ्तारी के बाद आठ महीने जेल में बिता चुका है. अब वह पश्चिम मेदिनीपुर जिले के बीनपुर-2 ब्लॉक में तृणमूल का पंचायत समिति उम्मीदवार है. वह कहता है, "पहले मैंने जो रास्ता चुना था वह गलत था. लेकिन अब मैं कानूनी तरीके से इलाके के विकास के लिए काम करूंगा." वर्ष 2008 में लालगढ़ में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्ट्चार्य के काफिले पर हमले के सिलसिले में हिरासत में लिया गया क्षमानंद महतो अब तृणमूल के टिकट पर जिला परिषद का चुनाव लड़ रहा है. एक अन्य माओवादी असित सरकार की पत्नी सुमित्रा सरकार भी मैदान में है. पार्टी ने जंगलमहल के माओवादी दस्ते के प्रमुख सदस्य दिलीप महतो की पत्नी टुलूरानी महतो को बीनपुर-1 पंचायत समिति में अपना उम्मीदवार बनाया है. इसी तरह हत्या, अपहरण और जबरन उगाही के कई मामलों का अभियुक्त ज्योति प्रसाद महतो सालबनी पंचायत समिति का चुनाव लड़ रहा है. शीर्ष माओवादी नेता किशनजी की नजदीकी सहयोगी सुचित्रा महतो का पति प्रबीर गराई भी बांकुड़ा जिले में जिला परिषद चुनाव में किस्मत आजमा रहा है.

Westbengalen Wahlen
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

दूसरे दल भी पीछे नहीं

पूर्व माओवादियों को टिकट देने में अगर तृणमूल कांग्रेस सबसे आगे है तो दूसरे दल भी पीछे नहीं हैं. उन राजनीतिक पार्टियों की दलील है कि जंगलमहल इलाके में दूसरा उम्मीदवार मिलना मुश्किल था. बेलपहाड़ी पंचायत समिति का कांग्रेस उम्मीदवार निखिल महतो दो साल जेल में रह चुका है. उसके खिलाफ 35 मामले हैं. महतो कहता है, "यह इलाका कांग्रेस का गढ़ है. इलाके के लोग चाहते थे कि मैं चुनाव लड़ूं. लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं चुनाव मैदान में हूं." जामबनी इलाके में सीपीएम के ग्राम पंचायत उम्मीदवार लक्ष्मण सिट पर स्थानीय पंचायत प्रधान व उनके सहयोगियों की हत्या का मामला चल रहा है. लेकिन लक्ष्मण कहता है, "विपक्ष के आरोपों की मुझे कोई परवाह नहीं है. मुझ पर झूठे आरोप लगाए गए हैं. लेकिन इलाके के लोग मेरे साथ हैं."

निर्विरोध जीते

माओवादियों का सबसे मजबूत गढ़ कहे जाने वाले गोविंदबल्लभपुर के खरबंदी इलाके में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार 10 में से नौ सीटों पर निर्विरोध चुने जा चुके हैं. इनमें से ज्यादातर माओवादी हैं. बालीपाल सीट से निर्विरोध चुने गए दुलाल मांडी पर तीन हत्याओं के अलावा अपहरण के कई मामले हैं. वह कहता है, "अपने परिवार की सुरक्षा के लिए मैंने माओवादी संगठन में शामिल होने का फैसला किया था. लेकिन अब मुख्यधारा में वापस आने का प्रयास कर रहा हूं." ग्राम पंचायत सीट जीतने वाले प्रबीर जाना कहता है, "ममता बनर्जी सरकार के सत्ता में आने के बाद मैं तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गया था." उसके खिलाफ हत्या के दो मामले हैं.

माओवादियों का बचाव

गोपीबल्लभपुर के तृणमूल कांग्रेस विधायक चूड़ामणि हांसदा पूर्व माओवादियों को टिकट देने का बचाव करते हुए कहते हैं, "उन लोगों को जबरन संगठन में शामिल किया गया था. अब ऐसे लोग जीत के बाद सतर्कता बरतें तो इलाके में माओवादी दोबारा पैर नहीं जमा सकते." इसी तरह बीनपुर के तृणमूल विधायक श्रीकांत महतो कहते हैं, "सीपीएम के शासन के दौरान जंगलमहल इलाके के युवा मजबूरन माओवादी दस्ते में शामिल हुए थे. अब वह मुख्यधारा में वापस आना चाहते हैं. उनकी सहायता करना हमारा नैतिक दायित्व है." दूसरी ओर, सीपीएम ने इतनी बड़ी तादाद में माओवादियों को टिकट देने के लिए तृणमूल कांग्रेस की आलोचना की है. पार्टी के पश्चिम मेदिनीपुर जिला सचिव दीपक सरकार कहते हैं, "तृणमूल ने पूर्व माओवादियों को टिकट देकर इलाके में आतंक फैला दिया है. कई जगह दूसरे लोग डर के मारे चुनाव नहीं लड़ रहे हैं." वह कहते हैं कि तृणमूल ने माओवादियों के खिलाफ दायर मामलों को वापस लेने का भरोसा देकर उनको अपने पाले में कर लिया है.

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तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

केंद्र की चेतावनी

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 20 जून को ही राज्य सरकार को भेजे एक पत्र में चेताया था कि ओडीशा व महाराष्ट्र की तरह बंगाल में माओवादी वोटरों को डरा धमका कर कई सीटों पर जीत दर्ज कर सकते हैं. पत्र में सरकार से चुनाव के दौरान खासकर जंगलमहल इलाके में सुरक्षा के मजबूत इंतजाम करने को कहा गया था कि ताकि वोटरों और दूसरे दलों के उम्मीदवारों को डराने धमकाने के मामलों पर अंकुश लगाया जा सके. लेकिन जंगलमहल के तीनों जिलों की सैकड़ों सीटों पर पूर्व माओवादियों के निर्विरोध चुने जाने से साफ है कि केंद्र की यह चेतावनी अनसुनी ही रह गई है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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