"चाह कर भी नहीं होता इलाज"
५ अप्रैल २०१३डॉक्टर सिंह 1992 से जर्मनी में रह रहे हैं, लेकिन उनके लिए यहां आने और रहने की शुरुआत आसान नहीं थी. जर्मनी आने से पहले डॉक्टर सिंह ने भारत में नौ साल तक एक फार्मेसी में काम किया. 1990 में वह डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए आखेन आए. पर पत्नी और बच्चों के बिना नए देश में उनका मन नहीं लगा. कुछ ही दिन में वह वापस भारत लौट गए.
फिर लौटे जर्मनी
1992 में बड़े भाई के समझाने पर उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने का फैसला किया और आखेन विश्वविद्यालय में आवेदन डाल दिया. चुने जाने पर वह जर्मनी पहुंचे. हाथ में कोई छात्रवृत्ति नहीं थी. ऐसे में वह पढाई के साथ साथ कुछ छोटा मोटा काम भी करते रहे. फिर हृदय रोग में विशेषज्ञता हासिल की. आज वह एक कामयाब डॉक्टर हैं. उनके साथ इनका परिवार भी जर्मनी के कोलोन शहर में रहता है. इतने साल यहां रहने के बाद उन्हें यही अपना देश लगता है. डॉक्टर सिंह ने बताया कि जब वह भारत में थे तब पटियाला के एक हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुधीर वर्मा ने उन्हें बहुत हिम्मत दी और जर्मनी आकर पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया.
समय बर्बाद नहीं होता
डॉक्टर सिंह को जर्मनी के बारे में जो बात सबसे ज्यादा पसंद है वह यह कि यहां उन्हें कहीं समय बर्बाद नहीं करना पड़ता. सभी दफ्तर दिए गए समय के मुताबिक चलते हैं. किसी भी काम के लिए कहीं जा कर इंतजार नहीं करना पड़ता. सब लोग अनुशासन का पालन करते हैं. साफ सफाई का भी खयाल रखा जाता है. लोग अपने अपने काम को समझते हैं और जिम्मेदारी से निभाते हैं.
जर्मनी में इलाज आसान
जर्मनी में हर व्यक्ति का स्वास्थ्य बीमा जरूरी है. ऐसे में जब डॉक्टर के पास मरीज आते हैं तो डॉक्टर को इस बारे में नहीं सोचना पड़ता है कि मरीज इलाज का खर्च उठा पाएगा या नहीं. डॉक्टर सिंह ने बताया कि उन्हें एक डॉक्टर होने के नाते जर्मनी में इलाज करना ज्यादा आसान लगता है. उनका कहना है कि भारत में कई बार आप चाह कर भी मरीज का वह इलाज नहीं कर पाते हैं जिसकी उसको जरूरत है, क्योंकि आपको पता होता है कि वह इलाज का खर्च नहीं उठा पाएगा.
भारत में नहीं थे मौके
जिस समय डॉक्टर सिंह जर्मनी पढ़ने आए, वह नहीं जानते थे कि इतने सालों के लिए यहां बस जाएंगे. उन्होंने बताया कि उस समय भारत में इतने मौके नहीं थे जितने आज हैं. वह मानते हैं कि अगर आप मेहनत करने में विश्वास रखते हैं तो कहीं भी कामयाब हो सकते हैं. कुछ साल बाद वह भारत लौटकर लोगों का मुफ्त इलाज करना चाहते हैं.
इस बार वह मंथन में मोटापे के बुरे असर पर रोशनी डाल रहे हैं. वह बता रहे हैं कि किस तरह वजन को काबू में ना रखने से दिल पर बुरा असर पड़ सकता है और जान भी जा सकती है.
रिपोर्ट: समरा फातिमा
संपादन: ईशा भाटिया