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ग्लोबल वॉर्मिंग ने खोले जहाज के रास्ते

१० दिसम्बर २०१२

मौसमी बदलाव ने भले ही दुनिया की सेहत खराब कर दी हो लेकिन आर्कटिक क्षेत्र में यह जहाज उद्योग के लिए वरदान साबित हो सकता है. यहां बर्फ की जो मोटी तहें पिघल रही हैं, उनसे जहाजों के लिए यूरोप से नए रास्ते खुल सकते हैं.

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तस्वीर: AP

इससे न सिर्फ जहाजों के रास्ते खुल सकते हैं, बल्कि आर्थिक ताकत का भी नया समीकरण बन सकता है क्योंकि अगर नॉर्वे और रूस के बीच इधर से जहाजें चलने लगें, तो तेल और प्राकृतिक गैस के परिवहन में नया आयाम जुड़ सकता है.

आर्कटिक क्षेत्र की बर्फ गलने के आंकड़े दोहा में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जारी किए गए. विश्व मौसम संस्थान ने जो आंकड़े दिए हैं, वह बताता है कि इस साल सितंबर तक 34 लाख वर्ग किलोमीटर तक बर्फ पिघल गई है, जो 2007 के बाद सबसे ज्यादा है. पर्यावरणविदों का कहना है कि इस तेजी से पिघल रही बर्फ से दुनिया भर के मौसम पर बुरा असर पड़ सकता है लेकिन आर्थिक फायदा देखने वाले इसे जहाज उद्योग के लिए एक मौके के तौर पर देख रहे हैं.

नॉर्वे पोलर रिसर्च इंस्टीट्यूड के सलाहकार गुनर सांडर का कहना है, "मैं देख रहा हूं कि जहाज पूर्व की ओर बढ़ चले हैं. पूर्व में ही बाजार है." नॉर्वे का स्नो व्हाइट नेचुरल गैस फील्ड पहले अमेरिका को भारी मात्रा में तेल निर्यात करता था लेकिन हाल में अमेरिकी मांग कम हुई है. हालांकि कुल मिला कर ऊर्जा के लिए प्राकृतिक तेल की मांग बढ़ी है.

NOAA Forschungsstation in Barrow Alaska
तस्वीर: NOAA

2011 में जापान में आई सूनामी की वजह से देश के कई परमाणु बिजलीघरों को बंद करना पड़ा. सांडर का कहना है, "इसके बाद प्राकृतिक तेल की ऊर्जा के ज्यादा इस्तेमाल की मांग बढ़ी है."

अब ओब नदी के रास्ते तेल के टैंकर जापान की ओर भेजने की कोशिश कामयाब होती जा रही है. डायनागैस ने नवंबर में कुछ टैंकर जापान भेजे. उसका कहना है कि रास्ते में 30 से 40 सेंटीमीटर बर्फ थी लेकिन इसका ज्यादा असर नहीं हुआ. जहाज का रास्ता आसान बनाने के लिए कई जगह रूस के परमाणु ताकत वाले विशेष बर्फ काटने की मशीनों को इस्तेमाल किए जाने की योजना है. इसमें खर्च तो जरूर लगेगा लेकिन 20 दिन का समय बचेगा. दूसरा रास्ता स्वेज नहर से होकर है, जो लंबा और खर्चीला है.

Schmelzendes Eis in der Arktik
बर्फ पिघलने से मिला नया रास्तातस्वीर: picture alliance/Everett Collection

2010 में इस नए रास्ते से चार यात्राएं की गईं, 2011 में 34 और इस साल अब तक 46 यात्राएं हो चुकी हैं. सांडर ने बताया, "पिछले साल जो 34 जहाज भेजे गए, उनमें से सिर्फ 10 लंबी दूरी के थे. बाकी रूस तक के लिए थे." पिछले साल स्वेज नहर के रास्ते 18,000 बार जहाज भेजे गए.

पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि इसकी वजह से इलाके के पानी में तेल फैल सकता है. दूसरी चुनौती रास्ते में आपात मदद की है. रूस ने इस रास्ते में 10 जगह पर मदद सेंटर बनाने की घोषणा की है, जिनमें से तीन की शुरुआत हो चुकी है.

हालांकि जानकारों का कहना है कि यह संख्या पर्याप्त नहीं है. प्रकृति की सुरक्षा पर नॉर्वे की राष्ट्रीय समिति ने भी कहा है कि इस तरह के आर्थिक लाभ का नुकसान उठाना पड़ सकता है.

एजेए/एनआर (डीपीए)