1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
शिक्षा

ऑनलाइन शिक्षा का सीमित दायरा

७ सितम्बर २०२१

धारणा बन गई है कि स्कूलों के बंद रहने के बीच ऑनलाइन पढ़ाई एक अच्छा विकल्प बन गई है, लेकिन असल में ऑनलाइन शिक्षा का दायरा बेहद सीमित है. एक नए सर्वे के अनुसार ग्रामीण इलाकों में सिर्फ आठ फीसदी बच्चे ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं.

https://p.dw.com/p/400D7
Indien | Coronavirus | Schulstart
तस्वीर: Reuters/P. Waydande

इस नए सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि महामारी की वजह से स्कूलों के बंद होने का बच्चों पर 'अनर्थकारी' असर पड़ा है. ग्रामीण इलाकों में यह असर और ज्यादा गंभीर है जहां सिर्फ आठ प्रतिशत बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं. इन इलाकों में 37 प्रतिशत बच्चों की पढ़ाई तो ठप ही हो गई है.

यह सर्वेक्षण जाने माने अर्थशास्त्री ज्याँ द्रेज और रितिका खेड़ा के संचालन में कराया गया. इसमें 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक में पढ़ने वाले 1400 बच्चों और उनके अभिभावकों से बात की गई.

स्मार्टफोन हैं ही नहीं तो पढ़ाई कैसे हो

इन राज्यों में असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. सर्वे में शामिल किये गए परिवारों में से करीब 60 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. इसके अलावा लगभग 60 प्रतिशत परिवार दलित या आदिवासी समुदायों से संबंध रखते हैं.

Indien | Coronavirus | Schulstart
महाराष्ट्र के एक गांव में स्कूल के सबक खुले में लाउडस्पीकर पर सुनते बच्चेतस्वीर: Reuters/P. Waydande

अध्ययन में यह भी पाया गया कि इन इलाकों में भी जो परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा रहे थे, उनमें से एक चौथाई से भी ज्यादा परिवारों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में डाल दिया. ऐसा उन्हें या तो पैसों की दिक्कत की वजह से करना पड़ा या ऑनलाइन शिक्षा ना करा पाने की वजह से.

ऑनलाइन शिक्षा का दायरा इतना सीमित होने की मुख्य वजह कई परिवारों में स्मार्टफोन का ना होना पाई गई. ग्रामीण इलाकों में तो पाया गया कि करीब 50 प्रतिशत परिवारों में स्मार्टफोन नहीं थे. जहां स्मार्टफोन थे भी, उन ग्रामीण इलाकों में भी सिर्फ 15 प्रतिशत बच्चे नियमित ऑनलाइन पढ़ाई कर पाए क्योंकि उन फोनों का इस्तेमाल घर के बड़े करते हैं.

शहरों में भी स्थिति अच्छी नहीं

काम पर जाते समय इन लोगों को फोन साथ में लेकर जाना पड़ता है और ऐसे में फोन बच्चों को नहीं मिल पाता है. ऐसा भी नहीं है कि यह तस्वीर सिर्फ ग्रामीण इलाकों की है. शहरी इलाकों में चिंताजनक स्थिति ही पाई गई.

WS Indien Schüler werden auf dem freien Feld unterrichtet
कश्मीर के तंगमर्ग में खुले में हो रही सामुदिक पढ़ाईतस्वीर: Dar Yasin/AP Photo/picture alliance

मिसाल के तौर पर जहां ग्रामीण इलाकों में नियमित ऑनलाइन शिक्षा पाने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ आठ प्रतिशत पाई है, शहरी इलाकों में यह संख्या सिर्फ 24 प्रतिशत पाई है. यानी शहरों में भी हर 100 में से 76 बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं.

यही हाल स्मार्टफोन होने और ना होने के मोर्चे पर भी है. स्मार्टफोन वाले घरों में भी जहां ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 15 प्रतिशत बच्चे नियमित ऑनलाइन पढ़ पा रहे हैं, शहरों में यह संख्या बस 31 प्रतिशत पाई गई.

बच्चों की क्षमता पर असर

कुल मिला कर इस स्थिति का असर बच्चों की लिखने और पढ़ने की क्षमता पर भी पड़ा है. शहरी इलाकों में 65 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 70 प्रतिशत अभिभावकों को लगता है कि इस अवधि में उनके बच्चों की लिखने और पढ़ने की क्षमता में गिरावट आई है.

Indien Tripura | Unterricht im freien
त्रिपुरा में खुले में पढ़ते बच्चेतस्वीर: DW/P. Tewari

इन कारणों की वजह से ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में 90 प्रतिशत से ज्यादा गरीब और सुविधाहीन अभिभावक चाहते हैं कि अब स्कूलों को खोल दिया जाए.

सर्वे में मध्यम वर्ग और अमीर परिवारों को शामिल नहीं किया गया था, लेकिन कई राज्यों में इन वर्गों के परिवार अभी बच्चों को स्कूल भेजने से डर रहे हैं. भारत में अभी 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण शुरू नहीं हुआ है.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें