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खेलों की रेस में चीन चैंपियन, भारत चित

१४ नवम्बर २०११

चार दशक पहले खेलों की दुनिया में चीन को शायद सिर्फ ब्रूस ली और कुंग फू फाइट या मार्शल आर्ट के लिए जाना जाता था. लेकिन अब चीन खेल जगत का नया बादशाह बन है. वहीं भारत खेलों के मामले में रसातल की ओर जा रहा है.

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बीजिंग ओलंपिकतस्वीर: AP

चीन ने 1952 में हेलसिंकी में ओलंपिक खेलों में पहली बार हिस्सा तो लिया लेकिन करीब 50 खिलाड़ियों के दल में से सिर्फ एक तैराक ही समय पर हेलसिंकी पहुंच सका. जब 70 के दशक में चीन की राजनीति ने थोड़ी करवट बदली तो पहली बार 1974 में चीनी खिलाड़ियों ने एशियन गेम्स में भाग लिया. तेहरान के एशिआई खेलों में चीन ने 32 गोल्ड मेडल लेकर तालिका तीसरा स्थान प्राप्त किया. यह वह समय था जब कम से कम एशिया स्तर पर भारत के खिलाड़ी छाए हुए थे. हॉकी के साथ एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, वेटलिफ्टिंग और कुश्ती में भी भारत का दबदबा था.

लेकिन चार साल बाद बैंकॉक में चीन 51 गोल्ड मेडल के साथ दूसरे स्थान पर पहुंच गया और जब दिल्ली में 1982 में एशियन गेम्स हुए तो 61 गोल्ड मेडल लेकर चीन ने जापान और भारत को पछाड़ अंक तालिका में पहला स्थान हासिल किया. उसके बाद चीन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

Doppeldecker Abschlusszeremonie Olympia China 2008
तस्वीर: AP

चीन की धाक

आज चीन न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत है बल्कि खेलों की दुनिया में किसी से कम नहीं है. चीन के खिलाड़ियों ने तो विश्व स्तर पर धाक जमाई ही है यहां तक कि चीन ने बड़े से बड़े खेल मेले के आयोजन में भी कोई कमी नहीं इसी छोड़ी. चाहे वो 2008 के ओलंपिक खेल हों या 1990 और 2010 के एशियन गेम्स या फिर अन्य कोई अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता.

1982 में में एशियन गेम्स में टॉप पर रहने के बाद चीन ने 1990 में पहली बार एशियन गेम्स की मेजबानी का बीड़ा उठाया. खेलों से एक साल पहले 1989 में तियानानमेन स्क्वायर संहार हुआ. उसको लेकर कई देशों ने खेलों के लिए बीजिंग न जाने का मन भी बना लिया था. लेकिन चीन ने किसी तरह स्थिति को संभाला और सब देशों ने खेलो में भाग भी लिया. बहुत जबरदस्त खेल हुए और विदेशी मेहमानों ने तियानानमेन को भुला कर चीन में हुए खेलों की प्रशंसा की. इससे चीन को भी सबक मिला कि अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाना है तो राजनीतिक रूप से अपने आप को दुनिया के सामने खुले तौर पर रखना होगा. खेल और उसके आयोजनों का फायदा उठाना होगा.

Zuschauer bei Abschlusszeremonie Olympia China 2008
तस्वीर: AP

सफलता की सीढ़ियां

इसका सीधा सा उदहारण था 2008 के बीजिंग ओलंपिक खेल. एक बार फिर दुनिया के खिलाड़ी, अधिकारी और मीडिया बीजिंग पहुंचे. वहां उन्होंने जो देखा उसे देख सब दंग रह गए. उन्हें एक नया चीन देखने को मिला. बहुत ही आधुनिक और विकसित. खेल बहुत शानदार हुए और यह साबित हो गया कि चीन खेलों के आयोजन में भी किसी विकसित देश से कम नहीं है. जहां 1990 में भाषा एक बड़ी अड़चन थी, वहीं 2008 में लगभग हर चीनी युवा को अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था.

उसके बाद तो चीन ने 2010 में गुआन्चू में एशियन गेम्स आयोजित किए और एक साल बाद शेनजेंन में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स. बीच में कई खेलों की विश्व प्रतियोगिता या वर्ल्ड कप भी किए. सभी बहुत सफल हुए. अब किसी भी खिलाड़ी या अधिकारी को चीन जाने से परहेज नहीं है.

भारत में खेल बदहाल

दूसरी तरफ अगर हम भारत की बात करें तो स्थिति बिलकुल विपरीत हैं. भारत में खेल भी बाबुगिरी और सरकारी फाइलों के बीच घिर कर कर रह गए हैं. 1982 में दिल्ली में एशियन गेम्स किसी तरह से भारी जद्दोजेहद के बाद हुए और किसी हद तो सफल भी रहे. लेकिन उसके बाद तो खेलों में खेल कम राजनीति ज्यादा आ गई. रही सही कसर 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों ने पूरी कर दी. दिल्ली के खेलों को खेलों के लिए कम घोटाले के लिए ज्यादा याद किया जाता है.

Indien Commonwealth Games New Delhi Prinz Charles Flash-Galerie
विवादों में रहे भारत के कॉमनवेल्थ खेलतस्वीर: AP

दुनिया को 1971 में एशियन गेम्स देने वाला देश आज खेलों में बेईमानी के लिए जाना जा रहा है. यहां तक कि जब 2013 के राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के लिए श्री लंका के शहर हबनोता ने अपना प्रस्ताव रखा तो उनको ऑस्ट्रलिया के गोल्ड कोस्ट से मुंह की खानी पड़ी. वोट देने वाले कई देशों ने इसलिए ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में वोट दिया क्योंकि वो खेलों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप आना ही नहीं चाहते थे. अब हालत यह है की अगले 10-20 साल तक भारत को किसी भी बड़े खेल मेले की ज़िम्मेदारी मिलने वाली नहीं है.

उधर आने वाले सालों में चीन में होने वाले खेलो की झड़ी लगी है. 2012 में एशियन बीच गेम्स, 2013 में एशियन यूथ गेम्स और 2014 में ओलंपिक यूथ गेम्स चीन में ही होंगे. जाहिर है चीन को खेलों का देश कहना अब कतई गलत नहीं है.

रिपोर्ट: नौरिस प्रीतम, नई दिल्ली

संपादन: ओ सिंह

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