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क्या यूनिक हेल्थ आईडी से बेहतर होगी भारत की स्वास्थ्य सेवा

१४ जुलाई २०२१

भारत में अब तक करीब 30 करोड़ से ज्यादा लोग कोविड-19 वैक्सीन की कम से कम एक डोज लगवा चुके हैं. जिन लोगों ने कोरोना टीके के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल किया, बिना अनुमति के उनकी यूनिक हेल्थ आईडी बना दी गई.

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तस्वीर: Sumit Saraswat/Pacific Press/picture alliance

भारत में अब तक जिन 30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने कोरोना टीका लगवाया है, उनमें से ज्यादातर ने टीका लगवाने के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल किया है. उनकी अनुमति लिए बिना ही सरकार ने उनकी यूनिक हेल्थ आईडी (UHID) भी बना दी. जिन लोगों ने आधार कार्ड के जरिए वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था, वे अपना UHID नंबर अपने वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट में देख सकते हैं.

भारत में पब्लिक हेल्थ को डिजिटल बनाने का काम राष्ट्रीय डिजिटल हेल्थ मिशन (NDHM) के तहत किया जा रहा है. UHID इसका सबसे अहम हिस्सा है. इसकी मदद से पूरे भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को डिजिटल बनाने का प्रयास चल रहा है. जानकार मानते हैं कि UHID जैसी प्रक्रिया के फायदे हो सकते हैं लेकिन बिना कोई कानून बनाए और बिना लोगों से अनुमति लिए यह प्रक्रिया शुरु कर दी गई है. भारत के डेटा सुरक्षा कानून भी बहुत कमजोर हैं, जिसके चलते लोगों की स्वास्थ्य जानकारियों का गलत इस्तेमाल होने का डर है.

बिना अनुमति कैसे बनी यूनिक आईडी

भारत में केंद्र सरकार ने UHID को उन लोगों के आंकड़े जुटाने के उद्देश्य से लॉन्च किया है, जो स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले रहे हैं. UHID के इस्तेमाल के जरिए स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी सारी जानकारियां, जैसे इलाज के पुराने रिकॉर्ड, डॉक्टर की अप्वाइंटमेंट्स, फीस, दी गई दवाओं की जानकारी और तमाम टेस्ट रिपोर्ट एक ही जगह पर स्टोर की जा सकती हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जनवरी में ही वैक्सीनेशन के साथ UHID बनाए जाने की प्रक्रिया शुरु करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया था. डिजिटल अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संस्था एक्सेस नाउ के रमनजीत सिंह चीमा कहते हैं, "भारत में स्वास्थ्य पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है. ऐसे में बिल्कुल साफ नहीं है कि इस योजना को कैसे काम में लाया जाएगा. सबसे बुरी बात यह है कि करोड़ों लोगों की UHID बन गई है लेकिन अभी तक इसे लेकर कोई कानून नहीं है."

टीके के लिए अनिवार्य था आधार कार्ड

सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा था कि इसके लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा. यह भी कहा गया था कि आधार कार्ड के बिना किसी इंसान को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ पाने से नहीं रोका जाएगा लेकिन फिर भी ज्यादातर स्वास्थ्य केंद्रों पर वैक्सीनेशन के लिए आधार कार्ड ले जाना अनिवार्य था.

Indien | Coronavirus | Impfungen
कोरोना टीके के लिए आधार कार्ड रजिस्ट्रेशन तस्वीर: Mahesh Kumar A./AP Photo/picture alliance

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के डिस्ट्रिक्ट इम्यूनाइजेशन ऑफिसर फखरेयार हुसैन ने UHID बनाने की प्रक्रिया के बारे में बताया, "जब कोई अपने आधार कार्ड के साथ कोविन पोर्टल या ऐप पर रजिस्टर करता है, तभी यह आईडी क्रिएट हो जाती है." रमनजीत सिंह चीमा इसे असंवैधानिक और अधिकारों का उल्लंघन बताते हैं. उनका मानना है कि अगर यह बात भी मान लें तो भी सरकार को आईडी क्रिएट करने से पहले एक स्क्रीन पॉप अप या एक टिक बॉक्स के जरिए सहमति लेनी चाहिए.

UHID से भारत को खास लाभ नहीं

किसी इंसान के स्वास्थ्य से जुड़ी सभी जानकारियां एक जगह पर होने से हेल्थकेयर सिस्टम के बहुत मजबूत होने की बात कही जा रही है. इससे डॉक्टरों को मरीजों की पूरी मेडिकल हिस्ट्री एक ही जगह मिल जाएगी, जिससे उसके हालिया रोग के बारे में काफी जानकारी मिल सकेगी और डॉक्टर को रोगी के इलाज में आसानी होगी. पहले भी दुनिया के कई देशों में इस तरह की नीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया गया है.

यूरोपीय देश एस्टोनिया इस मामले में सबसे आगे है, जहां दुनिया का सबसे अच्छा डिजिटल हेल्थकेयर सिस्टम है. यहां 95 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या का स्वास्थ्य डेटा डिजिटलाइज किया जा चुका है. लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का इस्तेमाल प्रशासनिक सुविधाओं का लाभ देने और मेडिकल रिसर्च के दौरान कई जटिल मॉडल को समझने में भी किया जा सकता है.

डिजिटल सिस्टम से बीमारी से बचाव

ई-हेल्थ सिस्टम के जरिए कई बीमारियों के इलाज और उनसे बचाव के लिए रिसर्च में भी लाभ हो सकता है. हालांकि जानकारों के मुताबिक यह बहुत दूर की कौड़ी है. पब्लिक हेल्थ पर सरकार के साथ मिलकर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था वात्सल्य की डॉ नीलम सिंह बताती हैं, "अभी बिजली, मेडिकल उपकरण और साफ सुथरे स्वास्थ्य केंद्र की उपलब्धता भी नहीं हो सकी है तो सभी मरीजों के डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करना बहुत दूर की बात है."

जिला स्तर के अस्पतालों में मरीजों के डिजिटल रिकॉर्ड रखने के लिए जरूरी इंतजाम कर भी दिया जाए तो डेटा मेंटेन करने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की भारी कमी है. अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर डॉ. ऊषा राम भी कहती हैं, "इस योजना को जमीन पर प्रभावी रूप में शुरू करने से पहले आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की जरूरत होगी."

फायदे नहीं पर समस्याएं कई

जानकार बताते हैं कि मजबूत डेटा सुरक्षा कानून के बिना लोगों के स्वास्थ्य संबंधी डेटा का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है इसलिए केंद्र सरकार को इसे लागू करने से पहले स्वास्थ्य डेटा की सुरक्षा से जुड़े नियम बनाने चाहिए थे. फिलहाल मौजूद डेटा सुरक्षा कानून काफी कमजोर हैं. इसके अलावा डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 की केंद्र सरकार को बहुत ज्यादा अधिकार देने के लिए आलोचना भी हो चुकी है. ऐसे में बिना मजबूत कानून, नियमों और नीतियों के यह कारगर नहीं हो सकेगा. एक समस्या यह भी है कि UHID के तहत लोगों की धार्मिक मान्यताओं, सेक्सुअल ओरिएंटेशन और राजनीतिक रुचियों की जानकारी हासिल करने की छूट भी दी गई है. ऐसा डेटा नागरिकों की प्रोफाइलिंग करने और उन पर नजर रखने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

Indien Corona-Pandemie in Uttar Pradesh
कोरोना टीके का रजिस्ट्रेशन का मतलब यूनिक हेल्थ आईडीतस्वीर: Prabhat K. Verma/Zuma/imago images

रमनजीत सिंह चीमा कहते हैं, "सरकारें खास तरह या समुदाय के लोगों को नौकरियों या अन्य सुविधाओं से बाहर करने के लिए इसे इस्तेमाल कर सकती हैं. पुलिस जैसी संस्थाएं स्वास्थ्य से जुड़े डेटा का इस्तेमाल विरोधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को ब्लैकमेल करने तक के लिए कर सकती हैं." जब इतनी संवेदनशील जानकारियां जुटाई जा रही हों तो हमें प्राइवेट कंपनियों से भी सावधान रहने की जरूरत होगी. अगर ऐसे डेटा के प्रबंधन का जिम्मा किसी प्राइवेट कंपनी को मिल जाए तो वह इसका अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकती है. इतना ही नहीं इंश्योरेंस कंपनियां इसके जरिए गलत दावे कर क्लेम न देने की कोशिशें भी कर सकती हैं.

बड़ी जनसंख्या के लिए खतरे

जब आधार कार्ड की शुरुआत हुई थी तब कहा गया था कि यह स्वैच्छिक होगा. लेकिन धीरे-धीरे इसे हर प्रक्रिया में जरूरी बनाया जाने लगा. चाहे वह मिड-डे मील हो या ईपीएफ पेंशन हर जगह इसकी जरूरत होती है. हालांकि केंद्र सरकार ने UHID को स्वैच्छिक बताया था लेकिन इसे बिना अनुमति करोड़ों लोगों पर थोप दिया गया है. वर्तमान बीजेपी सरकार की मुस्लिम समुदाय विरोधी नीतियों से भी जानकार डरे हुए हैं कि इसका इस्तेमाल भेदभाव को और बढ़ा सकता है. डॉ. ऊषा राम कहती हैं, "UHID को लागू करने से पहले लोगों को इसके बारे में जागरुक करना और इस पर भरोसा दिलाना जरूरी है."

अब ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में मरीजों के पास आधार कार्ड होना अनिवार्य हो गया है. लोगों (खासकर कामगार वर्ग और हाशिए पर खड़े लोगों) के पास इसे न बनवाने का कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा गया है. UHID के साथ भी ऐसा ही होने की उम्मीद है. रमनजीत सिंह चीमा याद दिलाते हैं कि आधार को अनिवार्य करने के पीछे जिस सरकारी अधिकारी की भूमिका थी, UHID के पीछे भी वही अधिकारी है. यूं तो स्वास्थ्य जानकारियों के डिजिटलीकरण के कई फायदे हैं लेकिन ई-हेल्थ सिस्टम स्थापित करने से पहले डेटा या प्राइवेसी के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनों का होना भी बहुत जरूरी है.

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