अब तक क्या मिला है बंगाल वैश्विक व्यापार सम्मेलन से
७ फ़रवरी २०१९पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में आयोजित वैश्विक बंगाल व्यापार सम्मेलन को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दावा है कि पहले हुए ऐसे चार सम्मेलनों के दौरान दस लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव मिले और उनमें से आधी परियोजनाओं पर काम चल रहा है. लेकिन विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ ही अर्थशास्त्रियों ने भी ममता के इस दावे पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अगर यह सही होता तो अब तक राज्य की औद्योगिक तस्वीर बदल गई होती.
क्या होता है दो-दिवसीय सम्मेलन में
तृणमूल कांग्रेस सरकार ने बीते चार वर्षों की तरह इस वर्ष भी सात व आठ फरवरी को दो-दिवसीय बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट (बीजीबीएस) यानी बंगाल वैश्विक व्यापार सम्मेलन का आयोजन किया है. सरकार का दावा है कि बीते साल 32 देशों के प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया था और 2.20 लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव दिए थे.
इस साल जर्मनी के अलावा आस्ट्रेलिया, चेक रिपब्लिक, कोरिया, सऊदी अरब, इंग्लैंड, इटली, जापान और पोलैंड समेत कई देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं. यूरोपीय देश लक्ज्मबर्ग पहली बार इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहा है. भारत में लक्ज्मबर्ग के राजदूत ज्यां क्लॉद कूगेनर कहते हैं, "हमारी दो कंपनियां—सेराटिजिट t) और आमेर-सील केटेक्स पहले से ही यहां काम कर रही हैं. इसलिए हमने बंगाल के माहौल को भांपने के मकसद से सम्मेलन में आने का फैसला किया.”
बंगाल सरकार ने सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले प्रतिनिधियों की सहूलियत के लिए 17 क्षेत्रों में निवेश के लायक 150 परियोजनाओं की सूची तैयार की है. वित्त मंत्री अमित मित्र कहते हैं, "इन परियोजनाओं में 17.8 अरब अमेरिकी डालर यानी सवा लाख करोड़ रुपए तक के निवेश की संभावनाएं हैं.” वह बताते हैं कि सरकार ने इस सम्मेलन में सूक्ष्म, लघु व मझौले उपक्रमों, वस्त्र, औद्योगिक पार्कों, बिजली, खनन, केमिकल्स, आयरन एंड स्टील, बंदरगाह और लाजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में निवेश प्रस्ताव आकर्षित करने की योजना बनाई है.
केंद्र के साथ ममता के टकराव का असर
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, "तृणमूल कांग्रेस सरकार सत्ता में आने के बाद से ही हर साल इस सम्मेलन का आयोजन करती रही है. अब तक राज्य में 10 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक के निवेश का प्रस्ताव मिला है. इसमें से लगभग 50 प्रतिशत यानी पांच लाख करोड़ रुपए के निवेश की प्रक्रिया शुरू भी हो गयी है.” मुख्यमंत्री का दावा है कि सम्मेलन के चलते बंगाल में निवेशकों की तादाद बढ़ी है. इस साल के सम्मेलन के दौरान और भी निवेश के प्रस्ताव मिलने की उम्मीद है.
केंद्र सरकार के साथ राज्य के बढ़ते टकराव और चिटफंड घोटाले के चलते पुलिस बनाम सीबीआई विवाद के बाद ममता बनर्जी के धरने पर बैठने की वजह से अबकी इस सम्मेलन में केंद्र का कोई मंत्री शामिल नहीं होगा. केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने शुभकामना का संदेश जरूर भेजा है. लेकिन इसमें हिस्सा लेने में असमर्थता जताई है. ऐसे टकराव के चलते ही बीते साल भी किसी केंद्रीय मंत्री ने इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया था.
ममता कहती हैं, "हमने केंद्रीय मंत्रियों को भी न्योता भेजा था. सरकार से मेरी कोई दुश्मनी नहीं है. लेकिन किसी के नहीं आने से भी कोई समस्या नहीं होगी.”
कामयाबी पर सवाल
विपक्षी राजनीतिक दल और अर्थशास्त्री सरकार के दावों और सम्मेलन की कामयाबी पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि इन सम्मेलनों में अब तक महज सहमति पत्रों पर ही हस्ताक्षर होते रहे हैं. उनकी कोई कानूनी अहमियत नहीं है. असल बात यह है कि उनमें से कितनी परियोजनाओं को अमली जामा पहनाया जा सका है.
सीपीएम, कांग्रेस और बीजेपी हर सम्मेलन के मौके पर सरकार से इस मुद्दे पर श्वेतपत्र जारी करने की मांग करती रही हैं कि अब तक कितने सहमति पत्रों को अमली जामा पहनाया जा सका है. सीपीएम के प्रदेश महासचिव सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "पांच बार के आयोजन में जितनी भारी-भरकम रकम खर्च हो चुकी है उसमें राज्य में कई उद्योग लग सकते थे. अब तक के तमाम सम्मेलनों ने खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत को ही चरितार्थ किया है.”
क्या दावों के उलट है हकीकत
बीजेपी व कांग्रेस के नेताओं ने भी इसे पिकनिक करार देते हुए कहा है कि तृणमूल कांग्रेस सरकार की छवि की वजह से निवेशकों का राज्य में आना मुश्किल है. उनका कहना है कि मुख्यमंत्री व सरकार इन सम्मेलनों की कामयाबी के चाहे जितने दावे करे, हकीकत ठीक उलट है.
सम्मेलन में शिरकत करने वाले एक उद्योगपति ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, "बंगाल में सिंडीकेट राज और केंद्र के साथ राज्य के रिश्तों में कड़वाहट की वजह से भी निवेशक यहां निवेश करने से हिचक रहे हैं.”
अर्थाशास्त्रियों का कहना है कि ऐसे सम्मेलनों से निवेश प्रस्ताव आकर्षित करना मुश्किल है. अर्थशास्त्री और प्रोफेसर सुमन कुमार घोष कहते हैं, "सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर होने और परियोजनाओं के अमली जामा पहनने के बीच की दूरी काफी लंबी होती है. इसलिए ऐसे सम्मेलनों से भारी उम्मीद नहीं बांधनी चाहिए.” एक अन्य अर्थशास्त्री सोमेन दास कहते हैं, ‘ऐसे सम्मेलनों में घोषित होने वाली ज्यादातर परियोजनाएं नई बोतल में पुरानी शराब की तरह होती हैं. पहले से जारी या घोषित कई परियोजनाओं को भी नए निवेश प्रस्ताव का नाम दे दिया जाता है.
करोड़ों की लागत से आयोजित इस भव्य सम्मेलन पर उठते सवालों से साफ है कि यह सम्मेलन अब तक अपने मकसद में खास कामयाब नहीं रहा है.