क्या फिल्मी सितारे बदल पाएंगे तृणमूल के सितारे?
१५ मार्च २०१९क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राजनीतिक करियर के सबसे कठिन लोकसभा चुनावों का सामना कर रही हैं? क्या ममता अपनी तृणमूल कांग्रेस को बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभार कर चुनावों के बाद किंगमेकर की भूमिका निभाना चाहती हैं?
बंगाल में बीजेपी के साथ लगातार तेज होती जुबानी जंग को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक हलकों में यही सवाल पूछे जा रहे हैं. बीजेपी ने चुनाव आयोग से पूरे बंगाल को अति संवेदनशील राज्यों की श्रेणी में रखने और हर मतदान केंद्र पर केंद्रीय बल तैनात करने की मांग उठाई है.
बीजेपी की इस रणनीति का सामना करने के लिए ममता ने पिछली बार की तरह इस बार भी फिल्मी सितारों का सहारा लिया है. उन्होंने अपने आठ पुराने सांसदों का पत्ता साफ कर बांग्ला फिल्मों की दो टॉप अभिनेत्रियों समेत पांच फिल्मी हस्तियों को मैदान में उतारा है.
जिन दो अभिनेत्रियों को ममता ने टिकट दिया है उनमें से एक मिमी चक्रवर्ती तो कोलकाता की प्रतिष्ठित जादवपुर सीट से लड़ेगी. यह वही सीट है जहां से कभी पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और खुद ममता भी चुनाव लड़ चुकी हैं. दोनों अभिनेत्रियों को राजनीति का कोई अनुभव नहीं है. इसके अलावा ममता ने इस बार 42 में 17 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिए हैं.
बंगाल के पल-पल बदलते राजनीतिक हालात ने इस बार लोकसभा चुनावों को सबसे दिलचस्प बना दिया है. साल 2004 के बाद ममता को कभी लोकसभा चुनावों में इतनी कड़ी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा है. यह तो शीशे की तरह साफ है कि यहां अबकी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है और एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए दोनों पार्टियां कोई भी कसर नहीं छोड़ रही हैं. ममता भी मानती हैं, "2019 के लोकसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती हैं और बीजेपी उनकी मुख्य चुनौती है.”
बंगाल में राजनीतिक हाशिए पर पहुंची कांग्रेस और सीपीएम अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रही हैं. ऐसे में मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरी बीजेपी से निपटने के लिए ममता ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए कई जगह उम्मीदवार बदले हैं तो कई जगह उनकी सीटों में बदलाव किया है. खासकर उन बांकुड़ा, झाड़ग्राम, मेदिनीपुर और बोलपुर इलाकों में यह बदलाव साफ नजर आता है जहां पिछले पंचायत चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहा था.
सितारों का सहारा
दक्षिणी राज्य तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में तो फिल्मी सितारों के चुनाव मैदान में उतरने का लंबा इतिहास रहा है. लेकिन पश्चिम बंगाल में अब तक लोकसभा चुनावों में ऐसे फिल्मी सितारों को टिकट देने का चलन नहीं था. लेफ्टफ्रंट के जमाने में मंझे हुए राजनीतिज्ञ ही चुनाव मैदान में उतरते थे. लेकिन ममता ने एक नई परंपरा शुरू करते हुए वर्ष 2009 के चुनावों में शताब्दी राय और तापस पाल जैसे उस समय के दो सबसे व्यस्त सितारों को मैदान में उतारा और वह दोनों अपने ग्लैमर और तृणमूल की लहर की वजह से आसानी से जीत गए.
उसके बाद वर्ष 2014 में उन्होंने पांच सितारों को टिकट दिए. इनमें शताब्दी व पाल भी शामिल थे. वह पांचों जीत गए. अबकी भी ममता ने पांच सितारों को ही मैदान में उतारा है. फर्क यह है कि पिछली बार जीती संध्या राय और तापस पाल की जगह अबकी बांग्ला फिल्मों की दो शीर्ष अभिनेत्रियों-—मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहां को चुनाव मैदान में उतारा गया है.
खासकर मिमी चक्रवर्ती को कोलकाता की प्रतिष्ठित जादवपुर सीट से मैदान में उतारने का फैसला हैरत भरा रहा है. यह वही सीट है जहां वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में सीपीएम के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को पटखनी देकर ममता बनर्जी राजनीति के राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरी थीं.
इसी तरह बांग्लादेश की सीमा से लगी बशीरहाट सीट पर अभिनेत्री नुसरत जहां को उम्मीदवार बनाया गया है. उस इलाके में बीजेपी का असर हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ा है. ममता ने ग्लैमर के सहारे उसे बेअसर करने की रणनीति बनाई है. इन दोनों के अलावा बांग्ला फिल्मों के हीरो दीपक अधिकारी उर्फ देब, शताब्दी राय और मुनमुन सेन को भी टिकट दिया गया है. इनमें से मुनमुन सेन को बांकुड़ा की बजाय आसनसोल में बीजेपी के संभावित उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो के खिलाफ मैदान में उतारा गया है.
तेज होती जुबानी जंग
लोकसभा सीटों के लिए चुनावी समर शुरू होने से पहले ही पश्चिम बंगाल में दो प्रमुख दावेदारों यानी सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग और आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला तेज होने लगा है. हाल में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में बीजेपी के एक शिष्टमंडल ने बुधवार को चुनाव आयोग से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश को ‘अति संवेदनशील राज्य' घोषित करने की मांग की. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "बंगाल में मुक्त और निष्पक्ष चुनावों का आयोजन ही सबसे बड़ी चुनौती है. यही वजह है कि पार्टी ने तमाम मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बल के जवानों को तैनात करने की मांग उठाई है. राज्य पुलिस की मौजूदगी में चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकते.”
वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी की इस मांग को राज्य के लोगों का अपमान करार दिया है. वह कहती हैं, "राज्य में एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार है. इसके अलावा कानून व्यवस्था राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है. तमाम केंद्रीय एजंसियों के हाथ में होने के बावजूद आखिर बंगाल को लेकर बीजेपी नेतृत्व इतना डरा हुआ क्यों है?” ममता ने बीजेपी पर मानसिक रोगियों की तरह व्यवहार करने का भी आरोप लगाया है. ममता ने बीजेपी को चेतावनी दी है कि वह बंगाल के लोगों को कमतर आंकने की गलती ना करे. लोग उसका सूपड़ा साफ कर देंगे.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अबकी राज्य की तमाम सीटों पर जोरदार मुकाबले की संभावना है. राजनीतिक विश्लेषक सोमेन हालदार कहते हैं, "चुनाव से पहले ही लगातार तेज होने वाली जुबानी जंग की वजह से बीते साल के पंचायत चुनावों की तरह अबकी लोकसभा चुनावों पर भी हिंसा का साया मंडराने लगा है.”