क्या पश्चिमी मीडिया को इस्तेमाल करना चाहता है चीन?
२८ सितम्बर २०१८संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए अपने भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन पर कुछ आरोप लगाए. ट्रंप ने कहा कि चीन, अमेरिकी कांग्रेस के लिए होने वाले मध्यावधि चुनावों में हस्तक्षेप की कोशिश में लगा हुआ है. जवाब में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इन आरोपों को बेबुनियाद करार दिया था. ट्रंप भी अपने दावे से पीछे नहीं हटे. उन्होंने अमेरिका अखबार की एक तस्वीर पोस्ट की, और अपने ट्वीट में लिखा कि अमेरिकी अखबारों में चीन अपनी प्रचार सामग्री को खबरों की तरह छपवा रहा है.
जर्मनी का मामला
जर्मनी के मामले में भी बार-बार चीन पर आम राय को प्रभावित करने के आरोप लगते रहे हैं. देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी डीपीए ने कुछ महीनों पहले एक न्यूजलेटर जारी कर घोषणा की थी वह चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के साथ हाथ मिला रही है. इस न्यूजलेटर में कहा गया था कि इस करार का मकसद डीपीए के ग्राहकों को चीन के दृष्टिकोण से राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना "वन बेल्ट वन रोड" (बीआरआई) की पूरी जानकारी देना है.
जब चीन के मीडिया पॉलिसी एक्सपर्ट डेविड बांद्रस्की ने यह न्यूजलेटर पढ़ा उनके कानों में चिंता की घंटी बजने लगीं. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "डीपीए पत्रकारिता करने वाली एक संस्था है. अब यह शिन्हुआ जैसी संस्था के साथ हाथ मिला रही है जिसका मकसद ही चीन की विदेश नीति और वन बेल्ट और वन रोड योजना का प्रचार करना है."
डीपीए-शिन्हुआ की यह साझेदारी, विदेशों में अपना प्रभाव स्थापित करने की चीन सरकार की इच्छा को भी दिखाती है. मई 2018 में सिन्हुआ ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा था कि डीपीए के साथ साझेदारी उसके ग्राहकों को बीआरआई के तहत मिलने वाले अवसरों को भुनाने का मौका देगी. कुल मिलाकर, जर्मन भाषी देशों में चीन का प्रभाव भी स्थापित होगा.
चीन का मीडिया
यह पहला मौका नहीं है जब चीन पश्चिमी देशों में मीडिया के प्रभाव को कायम करने की कोशिश कर रहा हो. ये कोशिशें उन सामग्री के जरिए की जाती हैं जो पहली नजर में तो एकदम समाचार की तरह दिखती हैं, लेकिन असल में वह "एडविटोरियल" मतलाब प्रचार सामग्री होती हैं. यह तरीका अलग-थलग पड़ते अखबार, मैग्जीन और पूरे के पूरे प्रिंट मीडिया के लिए लाभ कमाने का एक तरीका बन गया है.
बर्लिन के मेरकेटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज (एमईआरआईसीएस) और ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट (जीपीपीआई) की एक संयुक्त स्टडी, "अथॉरिटियरन एडवांस" पश्चिमी मीडिया में चीन की प्रचार सामग्री के बढ़ते दखल पर चेतावनी देती है. स्टडी में कहा गया है, "चीन देश की राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को लेकर दुनिया का दृष्टिकोण अपने लिए बेहतर करना चाहता है. साथ ही खुद की तस्वीर एक उदारवादी लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में पेश करना चाहता है." इस रणनीतिक उद्देश्य का पूरा करने के लिए चीन, मीडिया के जरिए आम राय को प्रभावित कर रहा है.
फरवरी 2018 में छपी यह स्टडी इन सारी बातों की आलोचना करती है. आज पश्चिमी दुनिया की कई नामचीन मीडिया संस्थाएं नियमित रूप से चीन के सरकारी अखबार के सप्लीमेंट "चाइना वाच" छाप रही हैं. इन संस्थाओं में अमेरिका का द न्यूयॉर्क टाइम्स, फ्रांस का ली फिगारो और जर्मनी के अखबार हांडेल्सब्लाट समेत ज्युड डॉयचे त्साइटुंग अहम हैं.
हालांकि चाइना सप्लीमेंट को ये अखबार "पेड कंटेट" कहकर ही पेश करते हैं लेकिन तब भी स्टडी इसकी आलोचना करती है. लेखक मानते हैं कि चीन इन पश्चिमी मीडिया संस्थाओं का इस्तेमाल अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कर रहा है. क्योंकि पाठकों के बीच इन संस्थाओं की विश्वसनीयता, चीन के मीडिया के तुलना में कही अधिक है. जर्मनी के अखबार ज्युड डॉयचे त्साइटुंग ने इसके बाद से इस स्पेशल सप्लीमेंट को छापना बंद कर दिया है.
पत्रकारिता को खतरा
डीपीए ने इस मामले में डीडब्ल्यू को दिए जवाब में कहा कि शिन्हुआ की सिल्ड रोड इनफॉरमेशन सर्विस पूरी तरह से एक "कमर्शियल प्रोडक्ट" है. इसका डीपीए की चीन मामलों की रिपोर्टिंग और अन्य विषयों से कोई संबंध नहीं है. डीपीए के प्रवक्ता जेन पीटरसन ने जोर देते हुए कहा, "डीपीए यहां बतौर सर्विस प्रोवाइडर काम कर रहा है. शिन्हुआ से आने वाला कंटेट उसकी संपादकीय सामग्री का हिस्सा नहीं है."
पीटरसन ने कहा, "शिन्हुआ के कंटेट को अलग सर्विस की तरह पेश किया जाता है, जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है. उसका डीपीए की संपादकीय सेवाओं से कोई मतलब नहीं है." वह मानते हैं, "कंटेट को अलग-अलग ढंग से पेश करना डीपीए के उच्च संपादकीय मानकों को बताता है."
हालांकि डीपीए का यह तर्क कि वह बस एक सर्विस प्रोवाइडर है, चीन के मीडिया एक्सपर्ट डेविड बांद्रस्की को ठोस नहीं लगता. बांद्रस्की मानते हैं कि चीन हर संभव तरीके से पश्चिमी मीडिया में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा, "पश्चिमी मीडिया के साझेदारों इस पूरे मसले की खास परवाह नहीं है, वह इसके पीछे चल रहे खेल की बारीकी नहीं देख रहे हैं," बांद्रस्की कहते हैं कि आखिर में इस तरह के पेड कंटेट से इन मीडिया संस्थाओं को फायदा हो रहा है.
जीपीपीआई के डायरेक्टर और "अथॉरिटियरन एडवांस" स्टडी के लेखक थॉर्सटन बेनर इस पूरे मामले पर इतना सख्त नहीं दिखते. उनके विचार से जर्मनी में पत्रकारिता मानकों को फिलहाल चीन के साथ हुई इन साझेदारियों से कोई गंभीर खतरा नहीं है. उन्होंने कहा, "ये दुख पहुंचाने वाली बात है कि हांडेल्सब्लाट और अन्य संस्थाएं अपने ब्रांड का इस्तेमाल चीन की कम्युनियस्ट पार्टी के प्रचार के लिए होने देते हैं." लेकिन उन्हें इन बातों का मीडिया की स्वतंत्रता पर कोई खास असर नहीं दिखता. हालांकि वह यह भी मानते हैं, "यह मौका चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ खुद को तैयार करने का भी है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जर्मन कंपनियां चीन के हाथों में नहीं आएंगी."
कुई मु/एए