कोविड पैकेज से अभी भी गरीबों को विशेष लाभ नहीं
१५ मई २०२०कोविड-19 के आर्थिक दुष्प्रभाव से उभरने के लिए केंद्र सरकार के आर्थिक पैकेज की दूसरी किस्त किसानों, प्रवासी श्रमिकों और रेहड़ी-पटरी वालों के नाम रही. दूसरी किस्त की घोषणाओं का कुल आर्थिक मूल्य लगभग तीन लाख करोड़ रुपए बताया जा रहा है, लेकिन ये कदम महामारी की वजह से इन तबकों की लड़खड़ाती हुई जिंदगी को कितना संभाल पाएंगे ये कहना अभी मुश्किल है.
प्रवासी श्रमिकों के लिए जिन कदमों की घोषणा की गई उनमें तुरंत लाभ सिर्फ एक कदम से मिलेगा और वो है किसी भी तरह के राशन कार्ड के बिना भी दो महीनों तक अन्न की मुफ्त आपूर्ति. बाकी के सभी कदम ऐसे हैं जिनसे लाभ बाद में मिलेगा, जैसे तकनीक के द्वारा यह सुनिश्चित करना कि प्रवासी श्रमिक देश के किसी भी कोने में जन वितरण प्रणाली या पीडीएस के तहत मुफ्त या कम दामों पर राशन ले सकें. पूरे देश में यह अभियान मार्च 2021 तक ही पूरा हो पाएगा.
इसके अलावा प्रवासी श्रमिकों को कम किराए पर मकान मिलने में सुविधा हो इसके लिए एक विशेष योजना लाई जाएगी. इसके लिए तो कोई समय-सीमा भी नहीं दी गई. रेहड़ी-पटरी वालों को अपना काम फिर से शुरू करने में सहायता मिल सके इसके लिए उन्हें आसानी से लोन उपलब्ध कराने की एक योजना शुरू की जाएगी. इसका मतलब अभी तक हुए नुक्सान की कोई भरपाई नहीं और लोन की ये नई योजनाए भी शुरू होने में कम से कम महीने भर का वक्त लगेगा.
मुद्रा-शिशु लोन योजना का इस्तेमाल करने वाले छोटे व्यापारियों को लोन के ब्याज पर 12 महीनों तक दो प्रतिशत की छूट मिलेगी. इसके अलावा छोटे और मझौले किसानों के लिए भी लोन लेने में मदद करने की घोषणा की गई. जानकारों के बीच दूसरी किस्त की इन घोषणाओं को भी कोई विशेष सराहना नहीं मिली है. एक बार फिर विशेषज्ञों ने इस बात पर निराशा जाहिर की है कि तालाबंदी की वजह से जिनकी आय छिन गई उन्हें कोई भी फौरी मदद नहीं दी जा रही है.
वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान तिवारी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि प्रवासी श्रमिकों, स्ट्रीट वेंडर और छोटे व्यापारियों के लिए सरकार के पास ऐसा कुछ नहीं था जो सीधे तौर पर उनका जीवन आसान बना सके या या जिस से उन्हें अब जीवन फिर से शुरू करने में कोई सहारा मिलेगा. किसानों के संबंध में उन्होंने कहा कि किसानों से सरकारी खरीद वैसे ही पीछे चल रही है, उनके खातों में किसान सम्मान निधि का पैसा पहले ही चला गया था और लोन दिलाना कोई राहत तो होती है नहीं.
किसानों के हितों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट रमनदीप सिंह मान ने ट्विट्टर पर लिखा कि किसानों के संबंध में की गई सभी घोषणाएं या तो पुरानी हैं या हर साल की जाने वाली घोषणाओं जैसी ही हैं या किसानों को लोन के बोझ के तले और भी दबाने के प्रावधान वाली हैं.
वरिष्ठ पत्रकार एम के वेणु ने एक ट्वीट के जरिये सवाल उठाया कि चाहे प्रवासी श्रमिक हों या किसान या रेहड़ी वाले, जब वो इतने बुरे हालात में हैं कि उनके पास कुछ भी नहीं बचा है तो ऐसे में आप उन्हें अधिकतर राष्ट्रों की तरह तुरंत पैसे देंगे या आसान शर्तों पर लोन?
जानकारों ने यह अनुमान भी लगाया है कि पैकेज की पहली किस्त की तरह ही दूसरी किस्त की घोषणाओं में भी सरकारी खर्च की भूमिका बहुत कम है. एक अनुमान के अनुसार लगभग तीन लाख करोड़ के मूल्य के इन कदमों में सरकारी खर्च सिर्फ 5,000 करोड़ रुपए होगा.
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