कोलकाता में यौनकर्मियों का मुक्ति उत्सव
२३ जुलाई २०१२इस सम्मेलन को मुक्ति उत्सव नाम दिया गया है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 24 लाख लोग एचआईवी की चपेट में हैं. वैसे, एड्सपीड़ितों की तादाद पर हमेशा विवाद रहा है. लेकिन एड्सरोधक उपायों के जरिए पिछले दस सालों में भारत को इस बीमारी की चपेट में आने वालों की तादाद पर अंकुश लगाने में कुछ हद तक कामयाबी मिली है.
सम्मेलन की आयोजक दुर्बार महिला समन्वय समिति के अध्यक्ष डा. समरजीत जाना बताते हैं, "अमेरिका का वीजा नहीं मिलने के बाद दुनिया भर के यौनकर्मियों ने सोचा कि उनका एक अलग सम्मेलन होना चाहिए. वह भी ऐसे देश में जहां कोई पाबंदी नहीं हो. इसलिए हमने कोलकाता में इसके आयोजन का फैसला किया. भारत सरकार ने तमाम यौनकर्मियों को वीजा देकर इस बीमारी से लड़ने की अपनी इच्छा का सबूत दिया है."
समेमलन में यौनकर्मियों के बीच एड्स को नियंत्रित करने के तरीकों पर विस्तार से विचार किया जाएगा. इसके अलावा रेड लाइट इलाके में रहने वाली इन यौनकर्मियों की हालत, अधिकारों और उनके साथ होने वाले भेदभाव को दूर करने के उपायों पर भी चर्चा की जाएगी. एशिया में देह व्यापार की सबसे बड़ी मंडी, कोलकाता के रेडलाइट इलाके सोनागाछी में रहने वाली सुमित्रा कहती है, "हम बीते दो दशकों से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. लेकिन इस सम्मेलन के बाद अब हम एक संगठित अभियान शुरू करेंगे."
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया भर में 3.4 करोड़ लोग एड्स की चपेट में हैं. साल 2005 में इस बीमारी से 25 लाख लोगों की मौत हुई थी. वर्ष 2010 में 18 लाख लोग मारे गए थे जबकि वर्ष 2011 में 17 लाख लोग इसकी वजह से मौत के मुंह में समा चुके हैं. सम्मेलन में आए ग्लोबल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्क प्रोजेक्ट्स के अध्यक्ष एंड्र्यू हंटर कहते हैं कि चिकित्सा सुविधाओं में बेहतरी की वजह से मौत के आंकड़े में गिरावट आई है. वह कहते हैं, कि एड्स की रोकथाम और उसके इलाज में अमेरिका सबसे ज्यादा सहायता देता है. लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दूसरे देशों के यौनकर्मियों की भागीदारी की बात आती है उसका असली चेहरा सामने आ जाता है. हंटर कहते हैं, "समाज में यह आम धारणा बन गई है कि यौनकर्मी ही एड्स फैलाते हैं. लेकिन हकीकत यह है कि महिला यौनकर्मियों के पास आने वाले पुरुष एड्स फैलाते हैं. यौनकर्मियों को एड्स के बारे में और जागरुक करके ही एड्स पर काबू पाया जा सकता है. लेकिन अफसोस की बात यह है कि इन यौनकर्मियों को वाशिंगटन के एड्स सम्मेलन में नहीं जाने दिया गया." अब वीडियो कांफ्रेंसिंग और वेबकास्टिंग के जरिए कोलकाता और वाशिंगटन सम्मेलन एक-दूसरे से जुड़ कर विचारों और जानकारियों को बांटेंगे.
डॉ. जाना कहते हैं, "इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तीन तरह के लोगों के ज्ञान और विशेषता का लाभ मिलेगा. इनमें शोधकर्ता, कार्यक्रम तैयार करने वाले, अधिकारी और नीति निर्धारक होंगे. इनके अलावा एचआईवी से संक्रमित और प्रभावित हुए लोग हैं. सम्मेलन से उनको भी फायदा होगा जिनके एचआईवी की चपेट में आने की आशंका रहती है. इनमें यौनकर्मी, इंजेक्शन से नशा लेने वाले और समलैंगिक शामिल हैं." जाना को उम्मीद है कि इस सम्मेलन के बाद यौनकर्मियों की आवाज और मजबूत होकर नीति निर्धारकों तक पहुंचेगी.
हंटर कहते हैं कि हमारे पास एचआईवी पर अंकुश लगाने के ठोस उपाय हैं. एंटी-रेट्रोवायरल (एआरवी) इलाज एड्स को फैलने से रोकता है. लेकिन इसके लिए हमें पैसा और एक व्यापक कार्यक्रम चाहिए. इस मुद्दे पर अमेरिका की दोहरी नीति ही राह की सबसे बड़ी बाधा है.
रिपोर्टः प्रभाकर,कोलकाता
संपादनः एन रंजन