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समाज

जू के जानवर बनेंगे दूसरे जानवरों का चारा

१६ अप्रैल २०२०

लॉकडाउन के बीच जर्मनी में जू भी बंद हैं. कमाई ना होने के कारण जू मालिकों के पास जानवरों का चारा खरीदने का पैसा नहीं बचा है. एक जू ने तो उन जानवरों की लिस्ट भी तैयार कर ली है जिन्हें दूसरे जानवरों को खिलाया जाना है.

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Eisbär mit Spielzeug im Zoo von Neumünster
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Rehder

जर्मनी में ईस्टर वीकेंड चार दिन का होता है. गुड फ्राइडे वाले शुक्रवार से लेकर सोमवार तक. इस दौरान बड़ी संख्या में लोग परिवार समेत जू जाना पसंद करते हैं. आम तौर पर इन चार दिनों में जू की इतनी कमाई हो जाती है कि सर्दियों में जानवरों को खिलाए चारे का सारा पैसा वसूल हो जाता है. लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो सका. लॉकडाउन के चलते जू बंद रहे. ऐसे में नॉयमुंस्टर शहर के जू ने कहा है कि उसे इतना नुकसान हो गया है कि वह और चारा खरीदने की हालत में नहीं है. नतीजतन जू के ही कुछ जानवरों को मार कर दूसरे जानवरों को खिलाया जाएगा.

इस जू की निदेशक वेरेना कास्पारी ने बताया, "हां, हमने एक लिस्ट बनाई है कि किन जानवरों को पहले मारना है." इन जानवरों को वन बिलाव, चील और जर्मनी के सबसे बड़े ध्रुवीय भालू को खिलाया जाएगा. सूची में ज्यादातर बकरियां और हिरण हैं. कास्पारी ने साफ किया कि इसमें ऐसे किसी जानवर को शामिल नहीं किया गया है जो विलुप्ति के कगार पर हो. उन्होंने कहा, "यह वर्स्ट-केस-सिनारियो है. हम उम्मीद करते हैं कि इसकी जरूरत ना पड़े लेकिन हमें इसके बारे में पहले से ही सोचना तो होगा ही." इस पर अमल तब किया जाएगा जब धन की कमी के चलते जू के जानवरों के लिए मांस-मछली की डिलीवरी मुमकिन नहीं रह जाएगी.

Deutschland | Coronavirus -  Zoos in Not
वेरेना कास्पारीतस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Rehder

जर्मनी के बाकी जू की तरह यह जू भी 15 मार्च से बंद पड़ा है. हालांकि बाकियों की तुलना में यह एक छोटा जू है जहां करीब 700 जानवर रहते हैं. कास्पारी के अनुसार अगर 3 मई के बाद भी जू को खोलने की अनुमति मिलती है तो तब तक उसे 1,75,000 यूरो का नुकसान हो चुका होगा. इससे अलग बर्लिन के जू में करीब 20,000 जानवर रहते हैं और यहां सालाना 50 लाख टिकट बिकते हैं. आम जनता के लिए जू बंद होने पर भी जानवरों के रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन का खर्च जारी है. कास्पारी कहती हैं, "हमारी आय शून्य है और खर्चा वही सारा है."

उन्होंने बताया कि जर्मनी में कुछ जू ऐसे हैं जिन्हें सरकार से आर्थिक मदद मिलती है. सरकार उनका 10 फीसदी खर्च उठाती है. लेकिन कास्पारी का जू केवल चंदे पर चलता है. सरकार से उन्हें कोई मदद नहीं मिलती है और टिकटों की बिक्री कमाई का मुख्य जरिया है. ऐसे में नॉयमुंस्टर जू का मॉडल बाकी जगह भी अपनाया जा सकता है. डीडब्ल्यू ने डुइसबुर्ग जू से जब इस बारे में जानना चाहा तो वहां के प्रवक्ता ने कहा, "डुइसबुर्ग जू ने जानवरों की ऐसी कोई सूची नहीं बनाई है जिन्हें कोरोना महामारी के कारण दूसरे जानवरों को खिलाने के लिए मारना है."

लेकिन इस जू ने कर्मचारियों की लिस्ट जरूर तैयार कर ली है. जू के रखरखाव के लिए जो लोग बेहद जरूरी हैं, उनके अलावा बाकियों की निकट भविष्य में छुट्टी की जा सकती है. वहीं जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पीटा) का कहना है कि दुनिया भर में जू जानवरों को मारते हैं और इसमें कोई नई बात नहीं है. पीटा के अनुसार कुछ जू इसके बारे में जानकारी देते हैं तो कुछ इसे छिपाते हैं. यूरोपियन एसोसिएशन ऑफ जू एंड एक्वेरिया के अनुसार यूरोप के विभिन्न जू में हर साल तीन से पांच हजार तक जानवरों को मारा जाता है.

रिपोर्ट: केट मार्टियर/आईबी

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