कैसे सत्ता तक पहुंचा हिटलर
न तो सेना की ट्रेनिंग थी, न ही राजनीति का अनुभव, इसके बावजूद 18 महीने में एक राजनीतिज्ञ ने जर्मन लोकतंत्र को तानाशाही में बदल दिया.
हिटलर का आना
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1920 के दशक में जर्मनी की हालत बेहद खराब थी. दो वक्त का खाना जुटाना तक बड़ी चुनौती थी. देश को राजनीतिक स्थिरता की जरूरत थी. 1926 के चुनाव में हिटलर की पार्टी को सिर्फ 2.6 फीसदी वोट मिले. लेकिन सितंबर 1930 में हुए अगले चुनावों में उसकी पार्टी (NSDAP) को 18.3 फीसदी वोट मिले. लेकिन कैसे?
लोगों को रिझाना
लोगों को रिझाने के लिए हिटलर ने अपनी आत्मकथा माइन काम्फ (मेरा संघर्ष) का इस्तेमाल किया. सरल ढंग से लिखी गई किताब के अंश लोगों को याद रहे. किताब के जरिये पाठकों की भावनाओं को हिटलर की तरफ केंद्रित किया गया.
नफरत का फैलाव
यहूदी जर्मन बुद्धिजीवी हाना आरेन्ट के मुताबिक नाजियों ने यहूदियों और विदेशियों के प्रति जनमानस में घृणा फैलाई. इस दौरान वामपंथियों और उदारवादियों को दबा दिया गया. आरेन्ट के मुताबिक घृणा और राजनीतिक संकट को हथियार बनाकर हिटलर ने जमीन तैयार की.
किसानों और कारोबारियों की मदद
एक नए शोध के मुताबिक NSDAP को वोट देने वालों में ज्यादातर किसान, पेंशनभोगी और कारोबारी थे. उन्हें लगता था कि हिटलर की पार्टी ही आर्थिक तरक्की लाएगी. लेकिन हाइवे बनाने जैसे कार्यक्रमों के जरिये रोजगार पैदाकर हिटलर ने आम लोगों का भी समर्थन जीता.
बर्लिन की झड़प
1932 के चुनावों से पहले बर्लिन में गृह युद्ध जैसी नौबत आई. हिटलर समर्थक गुंडों ने जुलाई 1932 में हड़ताल या प्रदर्शन करने वाले कामगारों को मार डाला. हिटलर का विरोध करने वाली पार्टियों को उम्मीद थी कि इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलेगा. लेकिन नतीजे बिल्कुल सोच से उलट निकले. हिटलर की पार्टी को 37.4 फीसदी वोट मिले.
सत्ता की भूख
1932 के पहले चुनाव के बाद कोई भी राजनीतिक दल सरकार बनाने में नाकाम रहा. लिहाजा नवंबर 1932 में फिर चुनाव हुए. इस बार हिटलर की पार्टी को नुकसान हुआ और सिर्फ 33 प्रतिशत सीटें मिली. वामपंथियों और कम्युनिस्टों को 37 फीसदी सीटें मिलीं. लेकिन वे विभाजित थे. सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण हिटलर को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला. इस तरह हिटलर सत्ता में आया.
ताकत की छटपटाहट
30 जनवरी 1933 को हिटलर ने चांसलर पद की शपथ ली. इसके बाद राजनीतिक गतिरोध का हवाला देकर उसने राष्ट्रपति से संसद को भंग करने को कहा. 1 फरवरी को संसद भंग कर दी गयी लेकिन हिटलर चांसलर बना रहा. उसके बाद एक महीने के भीतर अध्यादेशों की मदद से राजनीतिक और लोकतांत्रिक अधिकार छीने गए और लोकतंत्र को नाजी अधिनायकवाद में बदल दिया गया.
लोकतंत्र का अंत
1936 के चुनावों में बहुमत मिलने के बाद नाजियों ने यहूदियों को कुचलना शुरू किया. सरकारी एजेंसियों और विज्ञापनों का सहारा लेकर हिटलर ने अपनी छवि को और मजबूत बनाया. वह जर्मनी को श्रेष्ठ आर्य नस्ल का देश कहता था और खुद को उसका महान नेता. आत्ममुग्धता के इस मायाजाल में लोग फंस गए.