कैसे बचें भगदड़ से
१४ अक्टूबर २०१३भारत में कई बार धार्मिक स्थलों पर भगदड़ मचने के कारण कई लोग घायल हो जाते हैं, जबकि कई अपनी जान खो बैठते हैं. दुनिया भर में भगदड़ कैसे रोकी जा सकती है ताकि ये हालात ही पैदा नहीं हों. इसके लिए जर्मनी के युलिष में शोध किया गया.
करीब 1,000 वॉलेंटियर, छात्र, मजदूर और महिलाएं एक कमरे में इकट्ठे किए गए. हर भागीदार को एक सफेद टोपी पहनाई गई जिस पर क्यूआर कोड लगा हुआ था. ग्रुप के ऊपर रिकॉर्ड करने के लिए कैमरा लगे हुए थे, ताकि हर व्यक्ति की हलचल रिकॉर्ड की जा सके.
युलिष रिसर्च सेंटर के रिसर्चर भीड़ के व्यवहार को जानना चाहते थे और इसे मैथेमैटिकली जांचना चाहते थे. उनका उद्देश्य है बड़े कार्यक्रमों में सुरक्षा बेहतर बनाना. फिर चाहे वह फुटबॉल का मैदान हो, कंसर्ट हो या फिर धार्मिक यात्रा. ऐसी जगहें जहां भगदड़ के कारण लोग घायल हो जाते हैं, या फिर पैनिक लोगों की जान ले लेता है.
कितने लोग
तीन दिन तक इस शोध में हिस्सा ले रहे लोगों को संकरे कॉरिडोर से भेजा गया और फिर इन्हें डुसेलडॉर्फ ट्रेड फेयर के सबसे छोटे कमरों में धकेला गया. भीड़ से फोबिया होने वाले लोगों का इस रिसर्च में कोई काम नहीं. क्यूआर कोड वाली टोपी के अलावा लोगों को लाल या पीला रिस्ट बैंड भी पहनाया गया.
प्रोजेक्ट लीडर आर्मिन सेफ्रीड ने भागीदारों को चार दरवाजों से होते हुए एक कमरे में भेजा. फिर उनके सहयोगी श्टेफान होल ने लाल रिस्टबैंड वाले लोगों को रेड लाइट वाले दरवाजे से बाहर निकलने को कहा और पीले वाले को पीली लाइट वाले दरवाजे से.
भागीदार हर दिशा में दौड़ रहे थे. ऊपर से देखने पर पता लगता है कि कमरा खाली होने में सिर्फ कुछ ही मिनट लगे. कंप्यूटर विज्ञानी माइक बोल्टेस 30 कैमरे से अफरा तफरी देख रहे थे. यह बहुत अहम है क्योंकि भीड़ बहुत घनी है.
रंगीन स्पॉट
टोपियों में लगाए गए कोड के कारण बोल्टेस हर भागीदार को पहचान सकते थे. प्रयोग शुरू करने से पहले हर भागीदार ने कुछ सवालों के जवाब दिए. अपने लिंग और वजन के अलावा उन्हें वह जानकारी भी देनी थी जो उनके व्यवहार को प्रभावित कर सकती है, "आप उससे देख सकते हैं कि ठिगने लोग कैसा व्यवहार करते हैं. क्या औरतें पुरुषों से अलग व्यवहार करती हैं. ये ग्रुप कैसे भीड़ में व्यवहार करते हैं. क्या वे एक दूसरे के आगे पीछे चलते हैं या फिर अटक जाते हैं."
कंप्यूटर स्क्रीन पर सफेद टोपियां रंगीन डॉट्स में बदल जाती हैं. भौतिकविद आर्मिन सेफ्रीड कहते हैं, "लाल पैच दिखाता है कि कोई खड़ा है. ग्रीन का मतलब है कि वे चल रहे हैं. आप देख सकते हैं कि कहां जाम हो गया है और कितनी देर यह रहेगा और कितना यह बड़ा है."
जो लोग चल रहे हैं उन्हें खड़े लोगों से ज्यादा जगह चाहिए. इसलिए कंप्यूटर उन्हें एलिप्स में दिखाता है. चूंकि ज्यादा लोगों को चलना तब आसान होता है जब वह एक साथ चलें, बजाए कि एक के पीछे एक.
मॉडल बनाना
उद्देश्य यह पता करना है कि कैसे भीड़ में जाम होता है और कैसे इसे रोका जा सकता है. उदाहरण के लिए इमारतें बनाते समय ध्यान रखना कि साइन अच्छे से बनाएं. श्टेफान होल्स पूछते हैं, "बाहर निकलने का रास्ता और गली कितनी बड़ी हो. जाम से बचने के लिए कितनी जगह चाहिए."
इस सूचना का जवाब मिलने से ट्रेन स्टेशन या फिर बड़े कार्यक्रमों की योजना अच्छे से बनाई जा सकती है. सेफ्रीड का कहना है कि प्रोजेक्ट के आखिर में वह आर्किटेक्ट, आयोजकों, पुलिस और अन्य विभागों के लिए ठोस सलाह देना चाहेंगे.
सेफ्रीज कहते हैं कि एक कंप्यूटर गेम बनाया जा सकता है जो इमारत में लोगों को मैप कर सके.
इससे आयोजक पता कर सकेंगे कि अगर 10,000 लोग एक ही दिशा में जा रहे हों तो क्या हो सकता है, "ऐसा कोई बिंदू आ सकता है जहां स्थिति एकदम गंभीर हो जाए. तो आप वैकल्पिक योजना के बारे में सोच सकते हैं. अगर आप चेतावनी को संजीदगी से ना लें और अचानक बहुत सारे लोग आ जाएं तो फिर स्थिति को नियंत्रण में लेना मुश्किल हो जाता है."
आप लाउडस्पीकर से लोगों को आपात दरवाजे तक जाने की सूचना दे सकते हैं, "लेकिन भीड़ जब एक घनत्व तक पहुंच जाती है, फिर आप लोगों को सूचना नहीं दे सकते. वे उन तक पहुंचती ही नहीं. उस स्थिति में सब खो जाता है. क्रश की स्थिति में आप नहीं बता सकते कि आपके एक दो मीटर आगे क्या होने वाला है."
हालांकि डुसेलडॉर्फ का प्रयोग शांति से हो गया. भागीदार अच्छे मूड में हैं. हालांकि अभी प्रयोग का एक ही हिस्सा पूरा हुआ है. उन्हें फिर से इस प्रयोग में शामिल होना है. ताकि बड़े आयोजनों में भगदड़ से बचा जा सके.
रिपोर्टः फाबियान श्मिट/एएम
संपादनः ईशा भाटिया