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क्या है सतलज-यमुना नहर विवाद

१९ अगस्त २०२०

पंजाब और हरियाणा के बीच सतलज और यमुना नदियों के पानी को बांटने के लिए नहर बनाने का फैसला 45 साल पहले हो चुका था. नहर तो आज तक नहीं बानी, उल्टा जब भी उसे बनाने की बात आगे बढ़ती है दोनों राज्यों के बीच तनाव पैदा हो जाता है.

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Amarinder Singh
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

मामला इस कदर विवादग्रस्त है कि दो दशक से भी ज्यादा से तो खुद सुप्रीम कोर्ट इसे देख रहा है, फिर भी स्थिति जस की तस है. 28 जुलाई को अदालत ने एक बार फिर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आपस में बातचीत कर नहर के काम को आगे बढ़ाने के लिए कहा था.

कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए मंगलवार को पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के बीच वर्चुअल बैठक हुई. बैठक एक बार फिर बेनतीजा रही और बैठक के बाद सभी नेताओं के अलग अलग बयान आए, जिनसे संकेत मिलता है कि मुद्दे को लेकर अभी भी तनाव बना हुआ है.

केंद्रीय मंत्री शेखावत ने ट्वीट कर बस इतना कहा कि चर्चा सकारात्मक रही, जबकि खट्टर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार नहर का ना बनना हरियाणा की जनता के साथ अन्याय है.

वहीं, अमरिंदर सिंह ने चेतावनी दी कि अगर मुद्दे को भड़काया गया तो उसके ऐसे नतीजे हो सकते हैं जिनसे देश की सुरक्षा को नुकसान पहुंच सकता है. उन्होंने अपनी मांग दोहराई कि एक ट्रिब्यूनल बनाया जाए जो नए सिरे से पानी की उपलब्धता का मूल्यांकन करेगा. 

क्या है झगड़ा

दरअसल, 1966 में जब पंजाब और हरियाणा राज्यों का गठन हुआ, तब हरियाणा ने पंजाब की नदियों में से अपने लिए भी हिस्सेदारी मांगी, जिसे पंजाब ने देने से इंकार कर दिया. 1975 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए दोनों राज्यों के बीच नदियों के पानी को बांट दिया और पानी साझा करने के लिए सतलज और यमुना को जोड़ने के लिए एक 214 किलोमीटर लंबी नहर बनाने का आदेश दे दिया.

हरियाणा ने 1980 तक अपने इलाके में पड़ने वाले नहर के हिस्सा का निर्माण पूरा भी कर लिया और 1982 में पंजाब में भी नहर का निर्माण शुरू हो गया. लेकिन विपक्षी पार्टी अकाली दल ने उसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिए. 1985 में अकाली दल के सत्ता में आने से नहर का भविष्य अधर में लटक गया, लेकिन केंद्र सरकार की कोशिशों और एक ट्रिब्यूनल के फैसले की वजह से 1990 में अकाली सरकार ने निर्माण कार्य फिर से शुरू कर दिया.

उन दिनों पंजाब में उग्रवाद चरम पर था और उसी साल उग्रवादियों ने नहर का काम देख रहे एक चीफ इंजीनियर की गोली मार कर हत्या कर दी. नहर का काम फिर रुक गया. 1996 में हरियाणा ने नहर को पूरा करवाने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाए और 2002 में कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि पंजाब एक साल के अंदर नहर को पूरा करे.

Indien Oberster Gerichtshof in Neu Dehli
सतलज-यमुना नहर विवाद दो दशक पुराने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद अभी तक सुलझ नहीं सका है.तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

नहर पर राजनीति

उसके बाद पंजाब ने अदालत के आदेश को बदलवाने की कई कोशिशें की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2017 में एक बार फिर कहा कि पंजाब को उसके आदेश का पालन करना ही होगा और नहर को बनाना ही होगा. लेकिन पंजाब अभी तक नहर बनाने को लेकर राजी नहीं हुआ है. बीते वर्षों में पंजाब की सभी पार्टियां नहर के विरोध में उतर चुकी हैं. अमरिंदर सिंह नहर के विरोध में लोकसभा से इस्तीफा तक दे चुके हैं और उसके खिलाफ प्रदर्शनों में यहां तक कह चुके हैं कि पंजाब की नदियों के पानी की एक बूंद तक किसी और राज्य को नहीं दी जाएगी.

हरियाणा में जनवरी 2017 में इंडियन नेशनल लोक दल ने घोषणा कर दी थी कि वो खुद ही नहर का काम पूरा कर लेगी और उसके कार्यकर्ताओं ने पंजाब में घुस कर खुदाई भी शुरू कर दी थी. पंजाब पुलिस को उन्हें रोकना पड़ा और लोक दल के करीब 70 नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. तब से सारा मामला लंबित है और तनाव दोबारा भड़कने की आशंका हमेशा बनी रहती है.

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