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कश्मीरियों की आंखें ही क्यों फूटती हैं?

विवेक कुमार (डीपीए)१३ जुलाई २०१६

कश्मीर में जारी हिंसा में घायल ज्यादातर लोगों की आंखों में चोट लगी है. लेकिन क्यों? क्योंकि पुलिस ऐसी रबर की गोलियां चला रही है जो आंखें फोड़ देती हैं.

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Indien Srinagar Zusammenstöße mit der Polizei Kashmir verletzer Mann
तस्वीर: Reuters/D.Ismail

भारत के कश्मीर में जारी हिंसा में अब तक 35 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. इन घायलों में 120 की हालत गंभीर है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इन 120 घायलों में से 100 की आंखों में चोट लगी है. श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल के डॉक्टरों ने इस बात की पुष्टि की है कि 100 लोगों की आंखों में चोट लगी है. श्रीनगर में जब भी सुरक्षाबलों और लोगों की हिंसक झड़पें होती हैं तो ज्यादातर लोगों की आंखों में चोट लगती है. इसकी वजह हैं वे रबर की गोलियां जो पुलिस भीड़ पर चलाती है.

एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हमारे पास 70 मामले ऐसे हैं जिनमें आंखों पर गंभीर चोट लगी है. उनकी आंखों की रोशनी भी जा सकती है." इस नेत्र रोग विशेषज्ञ ने बताया कि श्रीनगर में ऐसे विशेषज्ञों की बहुत कमी है जो इन लोगों की आंखों पर लगीं चोटों का इलाज कर सकें.

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि कश्मीर में डॉक्टर भेजें. उन्होंने प्रधानमंत्री के नाम एक ट्वीट किया, "कृपया कुछ नेत्र रोग विशेषज्ञों को कश्मीर भेजिए. अब लोगों के जख्मों को सहलाने का वक्त है."

घायल हुए ज्यादातर लोगों में या तो युवा हैं या फिर कमउम्र लड़के. हालांकि डॉ़क्टरों का कहना है कि ज्यादातर घायल खतरे से बाहर हैं. राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि उन पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी जिन्होंने जनता के खिलाफ अतिश्य बल प्रयोग किया है.

एसएमएचएस अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में 72 बिस्तर हैं और सभी पर इस वक्त ऐसे मरीज हैं जिन्हें हाल की हिंसा में चोट लगी है. कई बिस्तरों पर तो दो-दो लोग हैं. इनमें बहुत सारे अवयस्क भी हैं. 12 साल की एक बच्ची भी है. इन सभी को समय पर सही इलाज मुहैया कराने के लिए अस्पाल प्रशासन को पहले से भर्ती मरीजों को जल्दी छुट्टी देनी पड़ी. कुछ मरीजों को दूसरे विभागों में भेजा गया.

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एक डॉक्टर सज्जाद खांडे ने भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "लगातार ऐसे मरीज आ रहे हैं जिनकी आंखें रबर की गोलियों से घायल हुई हैं." डॉक्टर बताते हैं कि रबर की गोलियों से लगने वाली आंखों की इस चोट का नुकसान स्थायी होता है. पुलिस 2010 से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ये गोलियां इस्तेमाल कर रही है. पुलिस जनता के खिलाफ घातक हथियारों का इस्तेमाल नहीं कर सकती. लेकिन इन हथियारों को घातक न मानकर ही प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन इस हफ्ते हुई हिंसा में जिस स्तर पर रबर की गोलियां इस्तेमाल हुई हैं, ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया. डॉक्टर कहते हैं कि पहले कभी इतने मरीज एक साथ आंखों पर चोट खाकर नहीं आए थे.

रबर की गोलियां 5 से 12 तक की रेंज में आती हैं. 5 की रेंज वाली गोली सबसे ज्यादा खतरनाक होती है और उसका नुकसान सबसे ज्यादा होता है. आमतौर पर भीड़ को काबू करने के लिए 9 नंबर को प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन कई बार पुलिस ज्यादा मुश्किल स्थिति में 6 या 7 नंबर भी प्रयोग करती है.

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खांडे ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "रबर की ये गोलियां जान नहीं लेतीं. यानी मरेगा कोई नहीं. इसलिए पुलिस को कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन एक बार किसी नौजवान की एक या दोनों आंखों की रोशनी चली गई तो उसकी जिंदगी मौत से बदतर हो जाएगी."