कश्मीर में पंडितों के लौटने का वक्त आ गया है!
१३ अगस्त २०१९भारत सरकार के जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद 67 साल के कौल को लगता है कि अब यह सपना पूरा हो जाएगा. नई दिल्ली में उत्पल कौल समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते वक्त फूट फूट कर रो पड़े. उन्होंने कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि अपने जीवन में मैं यह दिन देख सकूंगा. भले ही मैं वहां नहीं था लेकिन मेरा दिल कश्मीर में है." उत्पल कौल इतिहासकार हैं वो उन दो लाख लोगों में शामिल हैं जो 1989 में कश्मीर घाटी में भारत के शासन के खिलाफ हिंसा का तांडव शुरू होने के बाद वहां से भाग आए. कश्मीरी पंडितों के नाम से जाने जाने वाले ये लोग राज्य के हिंदू बहुल दक्षिणी हिस्से जम्मू और भारत के दूसरे हिस्सों में बस गए. ज्यादातर ने यही सोचा कि वो कभी वापस नहीं लौट सकेंगे.
बीते सात दशक से लागू धारा 370 में बदलाव का एक मतलब यह है कि पूरे भारत के लोग अब इस हिमालयी राज्य में संपत्ति खरीद सकते हैं. कौल जैसे कश्मीरी पंडितों के लिए यह एक मौका है अपनी यादों में बसी जमीन पर लौट जाने का. कौल के पांच मंजिला घर को 1990 में लूट कर उसमें आग लगा दी गई. उस वक्त आतंकवादी खासतौर से हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे थे जो यहां सदियों से रहते आए हैं.
उत्पल कौल कहते हैं, "मैं वहां पैदा हुआ, मेरा परिवार वहां कई पीढ़ियों से रहता आया लेकिन फिर भी मुझसे कश्मीरी पहचान साबित करने को कहा गया." कौल और उनके परिवार को जो कुछ उनके पास बचा था वह बटोर कर भागने पर मजबूर होना पड़ा. कौल ने पुरानी किताबें आज भी सहेज कर रखी हैं. भारत के फैसलों को वह अपनी "प्यारी मातृभूमि" के लिए "नया सवेरा" मानते हैं. उनका कहना है, "अब कश्मीर में सब बराबर होंगे."
कश्मीर भारत, चीन, पाकिस्तान और तिब्बत की सीमा पर है जो अपने खूबसूरत नजारों और बर्फ से ढंकी चोटियों के साथ ही विशाल घाटियों और निर्जन पठारों के लिए विख्यात है. भारत पाकिस्तान में बंटे कश्मीर की खूबसूरती को यहां जारी हिंसा की नजर लग गई है.
वितेक रैना को भी कश्मीर छोड़ कर भागना पड़ा था. वो दिल्ली में रहते हैं और आज भी उस हिंसा को याद कर सिहर उठते हैं जो उनके परिवार को वहां झेलनी पड़ी थी. 37 साल के रैना बताते हैं कि उनके चाचा को आतंकवादियों ने गोली मार दी थी जब उन्होंने अलगाववादियों के कश्मीर को बंद रखने की मांग का विरोध किया. रैना उस वक्त बच्चे थे जब एक नाई से पाकिस्तान के बजाय भारतीय क्रिकेटर जैसा बाल बनाने के लिए कहने पर उन्हें थप्पड़ मारा था. कई सारी दुखद अनुभूतियों के बावजूद कश्मीर उन्हें खींचता है. पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर वितेक रैना कहते हैं, "मैं वहां जाने के लिए बहुत उत्सुक हूं और किसी तरह से योगदान देना चाहता हूं. मैं वहां मधुमक्खी पालन करना चाहता हूं और अब मुझे लगता है कि यह संभव हो सकता है."
हालांकि घाटी में अब भी अशांति की आशंका मंडरा रही है. कश्मीर का मुख्य शहर श्रीनगर कंटीले तारों, सुरक्षा चौकियों और हथियारबंद सैनिकों से भरा पड़ा है. भारत सरकार ने वहां संचार को पूरी तरह से बंद कर रखा है. हिंसा की घटनाएं रोकने के लिए मोबाइल, लैंडलाइन और इंटरनेट पर पूरी तरह से पाबंदी है. विशेषज्ञ मान रहे हैं कि स्थानीय लोग इसके विरोध में हिंसा पर उतारू हो सकते हैं क्योंकि भारत सरकार का यह कदम उन्हें इलाके में मुस्लिम बाहुल्य को कम करने की कोशिश लगती है. उन्हें लगता है कि सरकार हिंदुओं को वहां ले जा कर बसाना चाहती है.
2015 में भारत सरकार ने कहा कि वह कश्मीर में चारदीवारी से घिरे इलाके विकसित करेंगी जहां वापस लौट कर आने वाले हिंदू रहेंगे. इन चारदीवारियों के भीतर ही घर, स्कूल, अस्पताल और शॉपिंग मॉल होंगे. हालांकि लोगों की राय इसे लेकर बंटी हुई है. रैना कहते हैं, "अगर हम सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं तो हमें पहले की तरह ही मुस्लिम पड़ोसियों के साथ ही रहना होगा. कश्मीर में हिंसा के कई दशक बीत चुके हैं और यह इतनी जल्दी यहां से खत्म हो जाएगी यह मुश्किल बात लगती है. कई दशक सपने देखते देखते बीत गए हैं और बहुत से लोगों का कहना है कि वो थोड़ा इंतजार करेंगे. कौल कहते हैं, "लेकिन निश्चित रूप से हम वहां जाएंगे और कश्मीर को अपना हिस्सा बनाएंगे."
एनआर/ओएसजे (एएफपी)
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