कर्ज़ संकट से निपटने के लिए यूरोपीय शिखर भेंट
१७ जून २०१०जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और फ़्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी अर्थनीति के मामले में यूरोपीय संघ के स्तर पर निर्णय चाहते हैं, यूं कहा जाए कि आर्थिक मामलों के लिए एक यूरोपीय सरकार. सभी सदस्य देश इसके लिए तैयार नहीं हैं. लक्सेमबर्ग के प्रधान मंत्री ज़्यां क्लोद युंकर चाहते हैं कि इस मुद्दे को स्पष्ट करना ज़रूरी है. साथ ही बैंकों और वित्तीय बाज़ार पर कर या अधिभार का जर्मन प्रस्ताव भी सदस्यों के बीच विवादास्पद है. एक दिन की शिखर भेंट के विषयों के सिलसिले में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का कहना था -
हम यहां जी-20 और जी-8 बैठकों की तैयारियां करेंगे, ताकि जहां तक हो सके, यूरोप एक आवाज़ में बोल सके. यह बैंकों के लिए अधिभार और वित्त बाज़ार के लिए टैक्स के सवाल पर भी लागू होता है. यहां एक-दूसरे के दृष्टिकोण को जानना काफ़ी रोचक होगा. मिसाल के तौर पर, जर्मनी के साथ-साथ फ़्रांस भी चाहता है कि संकट जिनकी वजह से आया है, उन पर भी बोझ डाला जाए. - अंगेला मैर्केल
ख़ासकर ब्रिटेन इसके ख़िलाफ़ है कि वित्त बाज़ार पर अंकुश लगाते हुए इस बाज़ार के महत्वपूर्ण केंद्र लंदन पर कोई आंच आये. किसी सहमति की गुंजाइश काफ़ी कम है. एक दूसरे सवाल पर भी जर्मन चांसलर को काफ़ी परेशानी का सामन करना पड़ेगा. वे चाहती हैं कि सदस्य देशों के बजटों में और अधिक अनुशासन लाने के लिए यूरोपीय संघ की संधि में परिवर्तन करते हुए संघ को और अधिक अधिकार दिए जाएं. लेकिन इस मामले में जर्मनी अकेला पड़ गया है. मिसाल के तौर पर स्वीडन के प्रधान मंत्री फ़्रेडरिक, जो लिस्बन संधि के समय यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष थे, याद दिलाते हैं कि उसे संपन्न करने के लिए कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़े थे. उनकी राय में संधि में परिवर्तन संभव नहीं होगा.
संघ की संरचना में सुधार की बातें की जा रही है. लेकिन काफ़ी मुमकिन है कि इस शिखर भेंट की भूमिका केवल दमकल की ही रह जाये. ग्रीस के बाद स्पेन को भी संभवतः व्यापक मदद की ज़रूरत होगी. वैसे स्पेन की स्थिति को शिखर भेंट का विषय नहीं बनाया गया है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: राम यादव