कम बुरे नेतृत्व की तलाश में मिस्र
१६ जून २०१२यदि शफीक जीतते हैं तो देश में एक बार फिर पहले जैसे हालात लौटने का खतरा बन जाता है और अगर जीत मोरसी के नाम होती है तो कट्टरपंथ की जीत होती दिखती है. मिस्र की जनता का कहना है कि उन्हें दो बुराइयों में से कम को चुनना है.
राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को सत्ता से हटाने के बाद मिस्र के लोग कई बार चुनाव में हिस्सा ले चुके हैं. पिछले साल मार्च में जब पहली बार वे चुनाव के लिए निकले तो उत्साह अलग था. लेकिन इस बार यह उत्साह काफी ठंडा होता दिखा. हालांकि कई पोलिंग बूथ पर लोग निर्धारित समय आठ बजे से एक घंटा पहले ही कतारों में खड़े हो गए, लेकिन कुछ रिपोर्टों के अनुसार देश में पचास फीसदी वोट ही डल पाए.
कई लोगों का यह भी मानना रहा कि इस बार सेना मतदान केन्द्रों में छेड़ छाड़ कर सकती है. अधिकतर मतदाताओं का कहना है कि उन्होंने किसी एक के पक्ष में नहीं बल्कि किसी एक के खिलाफ वोट दिया है. कई मतदाताओं ने यह भी कहा कि वे उसे चुन रहे हैं जिसे बाद में विरोध कर के आसानी से हटाया जा सके.
मिस्र के चुनावों पर कई अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय पर्यवेक्षकों की नजरें हैं. इसके बावजूद लोगों को इस बात का यकीन नहीं है कि सेना किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होने देगी. सेना ने कहा है कि वह किसी भी उम्मीदवार के साथ पक्षपात नहीं करेगी.
शफीक होस्नी मुबारक की सरकार में प्रधानमंत्री रह चुके हैं और मुबारक के करीबी भी. वह पुरानी सरकार की सभी रणनीतियों से वाकिफ हैं. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वह देश में शांति और स्थिरता लाने की कोशिश करेंगे और सरकार की नीतियों में सुधार लाएंगे. शफीक को चुनना लोगों के लिए मुबारक सरकार को एक और मौका देने जैसा होगा. वहीं दूसरी ओर मोरसी के दावे सरकार से बिलकुल अलग हैं. वह खुद को एक क्रांतिकारी के रूप में पेश कर रहे हैं जो सरकार के खिलाफ लड़ रहा है. उन्होंने स्वतंत्र विचारधारा और आर्थिक बदलावों की बात की है. हालांकि लोगों को उनकी कट्टरपंथी विचारधारा से दिक्कत है.
मिस्र में साठ साल पहले राजशाही का अंत हुआ. लेकिन तब से अब तक केवल चार ही राष्ट्रपति रहे. मुबारक पिछले 29 साल से सत्ता में रहे. मुबारक को हाल ही में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. देश में 18 दिन तक चले विद्रोह में नौ सौ लोगों की जान गई. मुबारक को इसे ना रोक पाने का दोषी पाया गया.
मिस्र में चुनाव दो दिन तक चलेंगे. सेना द्वारा तैयार की गई योजना के अनुसार नए राष्ट्रपति को एक जुलाई से पदभार संभालना है. लेकिन विश्लेषकों को संदेह है कि ऐसा हो पाएगा.
आईबी/एएम (एपी,एएफपी)