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समाज

कब खत्म होगा भूख और कुपोषण से मौतों का सिलसिला?

समीरात्मज मिश्र
१९ सितम्बर २०१८

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक हफ्ते के भीतर एक मां और उसके दो बच्चों की भूख और कुपोषण से मौत हो गई. ये परिवार आदिवासी और बेहद गरीब मुसहर समुदाय से था. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है लेकिन सिलसिला कब खत्म होगा.

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Indien  Uttar Pradesh Menschen leiden unter Hunger und Unterernährung
तस्वीर: DW/Samir Mishra

इसी इलाके के एक दूसरे गांव में मुसहर समुदाय के दो सगे भाइयों की मौत हो गई. पिछले दस दिन के भीतर मुसहर समुदाय के छह लोगों की मौत हो चुकी है. गांव वालों का कहना है कि ये सभी मौतें भूख, गरीबी और कुपोषण के चलते हुई हैं लेकिन प्रशासन और सरकार का कहना है कि मौतें बीमारी के चलते हुई हैं. खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि जिन दो सगे भाइयों के मरने की बात हो रही है, उन्हें टीबी की बीमारी हुई थी, इसलिए वो मर गए. मुख्यमंत्री के मुताबिक इन गांवों में और मुसहर समुदाय के परिवारों में खाद्य सामग्री की कोई कमी नहीं है.

उत्तर प्रदेश देश के सबसे ज्यादा कुपोषित राज्यों में से एक है और पहले भी यहां भूख से मौतों की खबरें आती रही हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के ये इलाका, और उसमें भी मुसहर समुदाय में इस तरह की खबरें अक्सर आती हैं, बावजूद इसके सरकारी लापरवाही और व्यवस्था जस की तस बनी हुई है. हैरान करने वाली बात यह भी है कि ये मौतें तब हुई हैं जब सरकार 'राष्‍ट्रीय पोषण माह' मना रही है.

कुशीनगर जिले की पड़रौना तहसील में पिछले हफ्ते दो सगे भाइयों, फेंकू और पप्पू की भूख, बीमारी और कुपोषण से मौत हो गई. फेंकू की उम्र 22 साल और पप्पू की उम्र 18 साल थी. गांव के एक समाजसेवी पप्पू पांडेय बताते हैं, "रोज दो वक्त की रोटी तक न मिल पाने के चलते दोनों भाइयों की मौत हो गई. बीमार भी थे लेकिन घर में खाने को भी कुछ नहीं था. अस्पताल से इलाज नहीं मिला और आखिरकार दोनों ने दो दिन के भीतर दम तोड़ दिया.”

वहीं कुशीनगर जिले के दुदही विकास खंड के गांव दुलमा पट्टी के एक घर में भी एक हफ्ते के भीतर तीन मौतें हो गईं. 30 साल की संगीता और उसका आठ साल का बेटा सूरज पिछले दिनों मर गए जबकि संगीता की दो महीने की बेटी दो दिन पहले चल बसी. इनकी मौत के पीछे भी भूख और कुपोषण की वही ‘बीमारी' है जिससे लगभग पूरा मुसहर समुदाय पीड़ित है लेकिन सरकार का कहना है कि मौत की वजह भूख नहीं बल्कि डायरिया और फूड प्वॉइजनिंग है.

ये अलग बात है कि इनके घर की आर्थिक स्थिति, सरकारी योजनाओं का इन्हें मिला लाभ और परिवार के दूसरे सदस्यों की परिस्थिति खुद ही बता देती है कि मरने के पीछे का कारण क्या था. तात्कालिक कारण जो भी रहा हो लेकिन भूख, कुपोषण और गरीबी की भूमिका उसमें नहीं थी, ऐसा संभव नहीं है.

संगीता के परिवार के पास राशन कार्ड तो है लेकिन घर में अनाज का एक दाना नहीं है. संगीता का 35 वर्षीय पति वीरेंद्र दिहाड़ी मजदूर है. ये लोग भी आदिवासी मुसहर समुदाय के हैं. वीरेंद्र का कहना है, "मेरे पास मनरेगा का जॉब कार्ड है लेकिन मुझे एक साल से कोई काम नहीं मिला है. घर में राशन भी नहीं है. मैंने खुद दो दिन से कुछ नहीं खाया है.” वहीं गांव के प्रधान दिनेश वर्मा कहते हैं कि पिछले महीने उन्‍हें राशन मिला था, लेकिन इस महीने राशन अभी नहीं बंटा है. प्रधान दिनेश वर्मा भी स्वीकार करते हैं कि परिवार बहुत गरीब है.

इस इलाके में भूख से मौत की खबरें कई बार आती हैं, खासकर मुसहर समुदाय में. हमेशा यह भी देखने में आया है कि विपक्ष उसे सही और सरकार गलत ठहराती है. सरकार कहती है कि उन्‍हें मामूली दर पर राशन मिलता है इसलिए मौत की वजह भूख नहीं हो सकती. वहीं, कुशीनगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी हरिनारायण सिंह का कहना है कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे गरीब हैं लेकिन उनकी मौत इसलिए हुई है क्‍योंकि उनका खान-पान सही नहीं था.

Indien  Uttar Pradesh Menschen leiden unter Hunger und Unterernährung
तस्वीर: DW/Samir Mishra

यह इलाका मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर से लगा हुआ है. खुद मुख्यमंत्री पिछली सरकारों के वक्त ऐसी मौतों को लेकर सवाल उठा चुके हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि मौतों का सिलसिला अब भी जारी है और अब वह खुद इसके लिए वही तर्क दे रहे हैं जो पिछली सरकारों के वक्त दिए जाते थे. यानी मौत की वजह भूख और गरीबी की बजाय बीमारी को बताना.

मुसहर समुदाय को लेकर मुख्यमंत्री अक्सर सहानुभूति जताते हैं और उनके जीवन में बदलाव के लिए प्रयास की बात करते हैं. पिछले साल सरकार बनने के बाद इसी इलाके में और इसी समुदाय के लोगों के बीच उन्होंने कुछ समय बिताया था और लोगों को तमाम तरह की सुविधाओं की घोषणा की थी लेकिन सच्चाई ये है कि घोषणाएं हकीकत में तब्दील नहीं हो पाईं. स्थानीय पत्रकार अजय शुक्ल कहते हैं, "यदि यह मान भी लिया जाए कि मौतें भूख से नहीं बल्कि बीमारी से हुई हैं तो आखिर जिम्मेदारी किसकी है. बीमार लोग अस्पताल जा रहे हैं, वहां उनको इलाज नहीं मिल रहा है, भगा दिया जा रहा है तो यह सब कौन सुनेगा और कौन इनकी जिम्मेदारी लेगा.”

स्थानीय विधायक और कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू ने पीड़ित परिवार वालों से मुलाकात के बाद कहा, "जंगल खिरकिया में सुनवा देवी के दो जवान बेटे सिर्फ इसलिए मौत के मुंह में चले गए क्योंकि इनके पास कोई रोजगार नहीं था, कोई खेती नहीं थी. पैसों के अभाव में पोषण आहार नहीं मिला और कुपोषण के चलते टीबी के शिकार हो गए. यह घटना सरकार के मुंह पर तमाचा है.”

जिस गांव में ये मौत हुई हैं वो जिला मुख्यालय और जिला अस्पताल से लगा हुआ है. बावजूद इसके इन लोगों को न तो समय पर इलाज मिल सका और न ही कई दिन से भूखे इन लोगों की कोई सुध लेने आया. गांव वालों के मुताबिक, ये स्थिति मुसहर इलाके के लगभग सभी घरों की है. गांव वालों का आरोप है कि यहां न तो ठीक से राशन मिलता है और न ही अस्पताल में इलाज. हालांकि इस घटना के बाद गांव में साफ-सफाई भी कराई जा रही है, लोगों के राशनकार्ड की जांच भी की जा रही है, जिनके राशन कार्ड नहीं हैं उन्हें राशन कार्ड देने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन सवाल यही है कि ऐसा कब तक? भूख से मरने का सिलसिला पिछले एक दशक से चला आ रहा है.

कुशीनगर के सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर दुबे कहते हैं, "जिला अस्पताल में इलाज और भर्ती होने की स्थिति में भोजन की चिंता ने इन लोगों को अस्पताल में भर्ती होने से रोका, गांव में आस-पड़ोस के लोगों से भीख व उधार मांग कर किसी तरह से महिला ने बच्चों की दवा कराई लेकिन आखिरकार हार गई. सरकार ने मुसहरों को भूमि का पट्टा दिया था, किंतु इस परिवार की जमीन खेती योग्य है ही नहीं. यह भी एक प्रकार का भ्रष्टाचार है जिसमें वंचित परिवारों को जमीन तो दी जाती है किंतु वह खेती लायक नहीं रहती.”

विधायक अजय कुमार लल्लू का आरोप है कि मृतक युवकों के यहां केवल उनकी मां के पास ही राशन कार्ड था. फेंकू और पप्पू के नाम बालिग होने के बावजूद राशन कार्ड में नहीं थे. उनके मुताबिक, जिले में गिनती के आदिवासी समुदाय के मुसहर परिवार हैं, जिनके जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है, लेकिन ये लोग सरकारी एजेंडे से गायब हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले करीब एक दशक में यहां भूख और कुपोषण से करीब पचास लोगों की मौत हो चुकी है.

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