कचरे की थैलियों से डिजाइनर ट्रैशी बैग्स
४ मई २०१२उपभोक्ता संस्कृति से पैदा हुए इन उत्पादों ने धीरे धीरे करते घरेलू कपड़े की थैलियों और स्थानीय उत्पादों का नुकसान तो किया ही है. साथ ही पर्यावरण के लिए एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. भारत में प्लास्टिक की समस्या, सड़कों पर पड़ी थैलियां और उन्हें बीनते बच्चे. यह इतना सामान्य चित्र है कि लोगों का ध्यान भी इस पर नहीं जाता. प्लास्टिक से रंग बिरंगी बैग्स, हाई फैशन पर्स, फोल्डर, फाइलें बनाने का काम भारत में दो दशक से चल रहा है. लेकिन अधिकतर यह भी बिकते फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका मे ही हैं.
अफ्रीकी देश घाना में भी यही स्थिति पैदा हुई. साफ पीने के पानी के नाम पर यह थैलियां बाजार में आई. हालांकि एकदम सस्ती इन थैलियों का एक बार इस्तेमाल होने के बाद कोई और उपयोग नहीं हो सकता. छह साल घाना की राजधानी आक्रा में रहने के बाद स्टुअर्ट गोल्ड ने सोचा कि इन थैलियों का क्या किया जा सकता है. तो उन्होंने शुरू किया पानी की इन थैलियों से बैग्स बनाना. 2006 में उन्होंने ट्रैशी बैग्स नाम का एक संगठन शुरू किया.
थैलियों से थैले
उनके वर्कशॉप में हर दिन फेंकी हुई थैलियों के गट्ठर आते हैं. यहां कुल 60 लोग काम करते हैं. पानी की थैलियों को पहले तीन बार धोया जाता है, उन्हें अच्छे से साफ किया जाता है और धूप में सुखा दिया जाता है. यह सब करने के बाद इन्हें रंगों के हिसाब से छांटा जाता है. फिर इन्हें सिल दिया जाता है. इसके बाद इसके लैपटॉप बैग, सामान्य शॉपिंग बैग, स्पोर्ट्स बैग, कागजात रखने के लिए फाइलें, छोटी पर्स बनाई जाती हैं. इसे सिर्फ रिसाइकलिंग नहीं अपसाइकलिंग कहा जाता है. कचरे में फेंकी गई इन थैलियों से जो उत्पाद बनता है वह बड़ी बड़ी डिजाइनर दुकानों में बेचा जाता है.
घाना में लोगों को यह बैग्स अच्छे तो लगते हैं लेकिन कई लोग इन्हें खरीदना पसंद नहीं करते क्योंकि यह कचरे से बनी हैं. इसलिए इन बैग्स को बाहर भेज दिया जाता है. स्टुअर्ट गोल्ड बताते हैं, "यहां आक्रा में इन्हें खरीदने वाले अधिकतर लोग या तो पर्यटक होते हैं या विदेशी. हम दूसरे देशों में इनका निर्यात करते हैं, जैसे नीदरलैंड्स, ब्रिटेन, जापान या अमेरिका. हमारी एक वर्कशॉप जर्मनी में भी है."
बेर्नाहार्ड एरकेलेन्ज जर्मनी में एक ऑनलाइन दुकान चलाते हैं: अफ्रीका रिसाइकल्ड. इसमें वह घाना में बनी थैलियों के अलावा घाना में बनी रिसाइकल्ड वस्तुएं बेचते हैं. उनके स्टोररूम में रंग बिरंगे मोतियों और पैचवर्क की चादरें हैं और साथ ही नीली सफेद ट्रैशी बैग्स भी. लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है. एरकेलेन्ज ट्रैशी बैग का भविष्य निर्यात में नहीं देखते. उनका मानना है कि इन्हें देश में बिकना चाहिए. प्लास्टिक जैसी आवाज करने वाले रुकसैक को उठाते हुए वह कहते हैं, "ट्रैशी बैग्स अलग से रंग, और आवाज वाले बैग्स हैं, ये सबकी पसंद के नहीं हो सकते. घाना से बाहर इन्हें बेचने के लिए ग्राहकों को बहुत सारी चीजें बतानी पड़ती हैं. जर्मनी में पानी की थैलियां प्रचलित नहीं. इसलिए मेरा मानना है कि ट्रैशी बैग्स के लिए सबसे अच्छा मार्केट घाना ही है."
हालात में बेहतरी
यह पोलीएथेलीन से बनी हैं. और इन पर एसिड, केमिकल का असर नहीं होता. इसलिए पानी की थैलियों को खत्म होने में भी कई सौ साल लग जाते हैं. इस समस्या के बारे में लोगों को जागरूक बनाने की जरूरत है. इसलिए ट्रैशी बैग्स दूसरे संगठनों के साथ कई प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है.
2007 में संगठन ने करीब दो करोड़ पानी की थैलियों की अपसाइकलिंग की है. इसका परिणाम साल में एक बार अफ्रीका जाने वाला कोई भी व्यक्ति देख सकता है. बेर्नहार्ड एरकेलेन्ज ने भी इस बदलाव को महसूस किया है. अगर आज घाना की सड़कों की पांच साल पहले की स्थिति से तुलना की जाए तो हमें बहुत बड़ा फर्क दिखाई देता है. सड़कों गलियों में बहुत कम प्लास्टिक की थैलियां दिखाई देती हैं. स्टुअर्ट गोल्ड कोशिश कर रहे हैं कि उनके उत्पाद को सब्सिडी मिल जाए, और बैग्स की कीमत कम हो ताकि इन्हें स्थानीय लोग भी खरीद सकें.
रिपोर्टः वानेसा हेरमान, हेर्वे गोगुआ (आभा मोंढे)
संपादनः ईशा भाटिया