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एनजीओ से परेशान सरकारें

२४ मार्च २०१७

एनजीओ ऐसे संगठन हैं जो समूहों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और मुनाफे के लिए काम नहीं करते. कभी लोकतांत्रिक विकास में अहम समझे जाने वाले गैर सरकारी संगठन हाल के सालों में सरकारों की ओर से भी आलोचना झेल रहे हैं.

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Frankreich CETA Protest in Straßburg
तस्वीर: DW/B. Wesel

बहुत से लोकतांत्रिक देशों ने गैर सरकारी संगठनों को सामाजिक राजनीतिक जीवन का हिस्सा मान लिया है और फैसले की प्रक्रिया में आम लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित कर रहे हैं. लेकिन दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ऐसे भी देश हैं जो गैर सरकारी संगठनों को सरकार के कामकाज में बाधा देने वाला और अल्पसंख्यक समूहों के हित में काम करने वाला संगठन मानते हैं और उनके कामों में बाधा डालने की कोशिश करते हैं.

जर्मनी सहित ज्यादातर यूरोपीय देशों में गैर सरकारी संगठनों में ट्रेड यूनियन, चर्च, नियोक्ता संघ, खेल संगठन और नागरिक पहलकदमियों के अलावा ऐसे संगठन भी शामिल हैं जो सामाजिक मुद्दों को लेकर सक्रिय हैं. ये संगठन आम तौर पर विकास नीति, पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

गैर सरकारी संगठन कभी सरकारों के कामों में मददगार होते हैं तो कभी समाज के दूरगामी हितों के नाम पर बाधा भी डालते हैं. यूरोप के गैरसरकारी संगठन राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने में सरकारों के साझेदार रहे हैं और सरकार की निर्णय करने की प्रक्रिया में उन्हें जगह दी जाती रही है. लेकिन कुछ महत्वपूर्ण अपवाद भी हैं. मसलन अमेरिका के साथ ट्रांस अटलांटिक मुक्त व्यापार संबंधी वार्ता का गैर सरकारी संगठनों द्वारा हुआ पुरजोर विरोध. यूरोपीय संघ के आयोग प्रमुख जाँ क्लोद युंकर को वह दृश्य शायद ही भूला हो जब पर्यावरण संरक्षण संगठन फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ ने ट्रोजन घोड़े के साथ टीटिप वार्ता का विरोध किया था. मुक्त व्यापार का प्रतीक घोड़ा जो लोगों को बड़े उद्यमों के हितों की बलि बना देगा.

Frankreich CETA Protest in Straßburg
तस्वीर: DW/B. Wesel

लोकतंत्र में विरोध कोई अजीब बात नहीं है, लेकिन मजे की बात यह है कि अमेरिका और कनाडा के साथ मुक्त व्यापार संधि का विरोध करने वाले बहुत से संगठन ऐसे हैं जिन्हें खुद यूरोपीय आयोग या जर्मनी की सरकार से बजट मिलता है. मतलब यह हुआ का करदाताओं का पैसा ऐसे संगठनों को दिया जा रहा है जो मुक्त व्यापार के सरकारी प्रयासों के खिलाफ विरोध का आयोजन कर रहे हैं. फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ को 2015 में यूरोपीय संघ के पर्यावरण कार्यक्रम से दफ्तर का खर्च चलाने के लिए 8 लाख यूरो से ज्यादा मिले. संस्था की प्रमुख माग्दा स्टॉत्सकीवित्स का कहना है कि यह राशि उन्हें इसलिए मिल रही है कि वे यूरोपीय संघ के पर्यावरण कार्यक्रम के अहम लक्ष्यों का समर्थन करते हैं. सरकारों की नीतियां बनाने वालों को यह भा नहीं रहा है कि यूरोपीय संघ का एक विभाग किसी संगठन को मदद करे और इसका इस्तेमाल दूसरे विभाग के कामों को कमजोर करने के लिए हो. यूरोपीय संसद में बजट आयोग की प्रमुख इंगेबोर्ग ग्रेसले का कहना है कि सबको यह बात समझ में आ गई है कि ऐसा नहीं चल सकता.

Greenpeace Protesten zu G20
तस्वीर: Ruben Neugebauer/Greenpeace

जर्मनी में गैर सरकारी संगठनों को सरकारी मदद के ऐसे मामले मिलेंगे जिनका इस्तेमाल सरकार को समर्थन देने के लिए नहीं बल्कि सरकारी नीतियों के विरोध के लिए किया जा रहा है. लोकतांत्रिक अधिकारों में विस्तार के लिए संघर्ष कर रहे संगठन अधिक लोकतंत्र के रोमन हूबर का मानना है कि बहुमत की राय से इत्तेफाक नहीं रखने वाले विचारों का भी समर्थन किया जाना चाहिए. खासकर पर्यावरण रक्षा के क्षेत्र अगुआ जर्मनी में बहुत से संगठन हैं जो सरकारी फैसलों से सहमत नहीं हैं. सरकारी फैसले विभिन्न हितों के बीच संतुलन स्थापित करते हुए लिये जाते हैं, इसलिए सरकार के अंदर भी यही राय है कि विरोध विचारों का भी समर्थन किया जाना चाहिए. जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि सरकार ऐसे संगठनों की भी मदद करती है जो मुद्दों पर सरकार की आलोचना करती है.

सरकारी मदद में इस उदारता की एक वजह यह भी है कि जर्मनी में पिछले कई दशकों से गठबंधन सरकारें चल रही हैं और गैर सरकारी संगठन विचारों के स्तर पर किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं. ऐसे में उन पर लगाम कसकर कोई राजनैतिक संकट नहीं पैदा करना चाहता. दूसरे और इस प्रक्रिया से बहुलवादी संरचना भी बनी है जिसमें सरकार की भूमिका अकेले जानकार के रूप में फैसला लेने के बदले मुद्दों से जुड़े अलग अलग हितों के बीच संतुलन स्थापित करने वाले की हो गई है. इससे राजनीतिक मामलों में लोगों की भागीदारी निश्चित तौर पर बढ़ी है.

DW Mitarbeiterportrait | Mahesh Jha
महेश झा सीनियर एडिटर