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एक बार फिर गुस्से और निराशा के दौर में कश्मीर

२४ अगस्त २०१८

बर्फ ढंकी ऊंची चोटियों वाले हिमालय और जन्नत के नजारों वाला कश्मीर गुस्से और उग्रवाद में डूबा है. एक बार फिर यह इलाका पूरी तरह से ऐसे संकट की स्थिति में है जहां से आने वाले दिनों से कोई उम्मीद नहीं बंधती.

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Jammu und Kashmir India Tourismus
तस्वीर: picture-alliance/Arcaid

नसीमा बाना अपने बेटे तौसीफ शेख से फोन पर कहती हैं, "अल्लाह तुम्हारे साथ है, मैं तुम्हारी कामयाबी के लिए दुआ मांगती हूं, तुम अपने रास्ते पर डटे रहना." यह बातचीत मई महीने में एक सुबह तड़के तब हुई जब भारत के सुरक्षा बल शेख के करीब पहुंच गए थे. इससे कुछ ही देर पहले 23 साल के उग्रवादी तौसीफ ने अपनी मां से कहा था, "दुआ करना कि मेरी शहादत कबूल हो, उसके बाद हम मिलेंगे."

सुरक्षा बलों की कार्रवाई खत्म हुई तो गोलियों से छलनी उसका शरीर बरामद हुआ. वह दक्षिण कुलगाम जिले में रहने वाले शेख परिवार के उन 12 सदस्यों में से एक था जिन लोगों ने अपनी जिंदगी कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों से लड़ते हुए गंवाई है. उसके चाचा 42 साल के मोहम्मद अब्बास शेख अब अकेले बच गए हैं, उन्होंने भी बंदूक उठा रखी है. 

Indien Proteste in der Kaschmir-Region
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/F. Khan

गुस्से में दिख रही बानो कहती हैं, "इस लड़ाई का कोई आधा अधूरा उपाय नहीं है. लोग अपनी जिंदगी कुर्बान करते रहेंगे जब तक कि कश्मीर आजाद नहीं होता." अलगाववादी उग्रवाद काफी बढ़ गया है और पाकिस्तानी या विदेशी आतंकवादियों के बजाय स्थानीय उग्रवादी भारत के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं.

आरोप है कि पाकिस्तान उन्हें हर तरह की मदद देता है. भारत का कहना है कि पाकिस्तान ताकत से जब कश्मीर हल नहीं कर पाया, तो उसने इलाके में उग्रवाद को बढ़ावा दिया. स्थानीय उग्रवादियों को ट्रेनिंग दे कर उसने भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ दिया. 1980 के दशक में शुरू हुए इस छद्म युद्ध ने अब तक 45,000 लोगों की जान ली है.

युवा पुरुष और पढ़े लिखे लोग भी हथियार उठा रहे हैं. शेख 18 साल की उम्र में ही उग्रवादी बन गया. उसके साथ मारे गए विद्रोहियों में यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर महोम्मद बट भी थे जिन्हें उग्रवादी बनने के 40 घंटे के भीतर ही मार दिया गया. अहम बात ये है कि उग्रवादियों को स्थानीय लोगों से जो समर्थन मिलता है, वह बीते कुछ सालों में चरम पर है.

इसकी वजह है सुरक्षा बलों की सख्ती और ज्यादतियां. इनमें क्रूर कानूनों को सहारा ले कर लोगों को हिरासत में रखना भी शामिल है. स्थानीय लोग अकसर गोलीबारी की जगहों पर जमा हो जाते हैं और पत्थरबाजी कर उग्रवादियों को भागने में मदद करते हैं. मारे गए उग्रवादियों के शव के साथ वो लंबी लंबी रैलियां निकलाते हैं.

सरकार ने पिछले साल ऑपरेशन "ऑल आउट" शुरू किया. इसमें अब तक 350 उग्रवादी मारे जा चुके हैं, जबकि बड़ी संख्या में अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया है. तौसीफ शेख के मामा राशिद कहते हैं, "लोग दमन से उकता गए हैं. इस्लाम कहता है कि अगर आपका उद्देश्य पवित्र है तो जन्नत मिलेगी, हमारा मकसद कश्मीर में शरिया कानून को लागू करना है."

साल 2000 के बाद जब भारत और पाकिस्तान के बीच शांतिवार्ता शुरू हुई, तो उग्रवाद में काफी कमी आई लेकिन 2008 में विरोध प्रदर्शनों के साथ यह एक बार फिर बढ़ गया. इसी दौरान सरकार ने जब एक हिंदू तीर्थ के लिए जगह आवंटित करनी चाही तो उसका भी बड़ा भारी विरोध हुआ. 2016 में बुरहान वानी की सुरक्षा बलों की कार्रवाई में हुई मौत के बाद बहुत से युवाओं ने उग्रवाद का रास्ता पकड़ लिया.

जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नात यासिन मलिक ने 1990 के दौर में उग्रवादी आंदोलन का नेतृत्व किया था. वो इन सब के लिए भारत सरकार को दोषी मानते हैं. उनका कहना है कि एक और पीढ़ी को हथियारों के रास्ते पर डाला जा रहा है. समाचार एजेंसी डीपीए से बातचीत में उन्होंने कहा, "20 साल पहले जितना मेरे मन में गुस्सा था, उसकी तुलना में आज के युवाओं में और ज्यादा अन्याय और गुस्से की भावना है."

यासिन मलिक के गुट ने अब शांतिपूर्ण आंदोलना का रास्ता पकड़ लिया है. वे कश्मीर को भारत और पाकिस्तान से अलग करने की मांग करते हैं. यासिन मलिक ने कहा, "अगर आप राजनीतिक विरोध पर रोक लगा देंगे, विरोधी आंदोलनों का गला घोंट देंगे और पैलेट गन से युवाओं को अंधा बना देंगे तो और क्या होगा?"

कश्मीर मामले के विशेषज्ञ डेविड देवदास का कहना है कि जब एक दशक पहले उग्रवाद घट गया था, तब उग्रवाद को रोकने के लिए बनाए गए तंत्र की वजह से जो मुश्किलें पैदा हुई थीं, उन्हें खत्म करना चाहिए था. उनका कहना है कि यह नहीं हुआ. इसके पीछे प्रमुख कारण "संकट की अर्थव्यवस्था" थी. बहुत से पक्षों के लिए यह हित साधने का जरिया बन गया. ऐसे में वो इसे और इसकी वजह से पैदा हुई गैरजिम्मेदारी को बनाए रखना चाहते थे.

Indien | Ramadan in Kaschmir
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS

देवदास का मानना है कि कट्टरता और सुरक्षा बलों की अधिकता के कारण संकट ज्यादा बुरे दौर में पहुंच गया है. उन्होंने कहा, "इन दोनों ने अलगाव की भावना को प्रबल कर दिया है, कोई यह भी सोच सकता है कि दोनों एक दूसरे को बढ़ावा देते हैं." एक गैर सरकारी संगठन रूट्स ऑफ कश्मीर के मुताबिक 1990 के दशक में कम से कम 500 कश्मीरी पंडित मारे गए. इसके नतीजे में 3 लाख से ज्यादा लोग कश्मीर छोड़ कर चले गए.

2016 में हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने क्षेत्रीय पार्टी पीडीपी के साथ सरकार बनाई. बहुत से लोगों ने माना कि पी़डीपी ने खुद को बेच दिया क्योंकि बीजेपी को बहुत से लोग मुस्लिम विरोधी मानते हैं. पार्टी राज्य में फौज की तादाद घटाने और उसे स्वायत्त राज्य का दर्जा देने का भी विरोध करती है. अब वह सरकार भी गिर गई है और सत्ता पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ में है.

कश्मीर के लोग अलगाववादियों से भी त्रस्त हैं. आए दिन की हड़ताल ने उनके बच्चों की पढ़ाई रौर रोजमर्रा के कामकाज को बहुत प्रभावित किया है. कश्मीरियों को उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय ताकतें उनके साथ आएंगी लेकिन फिलहाल इसके आसार नहीं दिखते. अमेरिका और दूसरे देश लगातार मदद देने के इंकार करते हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच कोई बात नहीं हो रही है. चीन अपनी वन बेल्ट वन रोड के साथ कश्मीर तक जरूर जा पहुंचा है लेकिन दोनों देशों के विवाद में दखल देने की उसकी भी कोई मंशा नहीं दिखती. दुनिया के स्वर्ग को अभी कुछ और इंतजार करना होगा.

एनआर/आईबी (डीपीए)