एक 'खूनी हाईवे' के जाल में फंसे कश्मीरी
५ मई २०२०रात के बीचों-बीच हलचल शुरू हुई. हलचल धीरे-धीरे तेज आवाजों में बदल गई. ये आवाजें चिल्लाने की थीं क्योंकि ऊपर से एक चट्टान खिसककर नीचे सड़क पर जा रहे ट्रक की तरफ आ रही थी. इस सबके बीच इशिआक वानी ने अपना पहचान पत्र सुरक्षित तरीके से अपनी जेब पर टांग लिया. वो कहते हैं," अगर मैं मर गया तो इससे कम से कम मेरे परिवार वाले तो मेरे शव को पहचान सकेंगे." वानी और दो यात्री चट्टान के सामने आए इस ट्रक से कूदकर अपनी जान बचाकर दौड़े और सुरक्षित ठिकाना तलाशने लगे. कुछ सौ मीटर नीचे चलने पर उन्हें अंधेरे में छिपने का एक ठिकाना मिल गया. वानी कहते हैं कि दूर से देखने पर पता करना मुश्किल था कि ये कोई जीर्ण-शीर्ण बस स्टैंड है या कोई जानवरों का बाड़ा है. कुछ देर बाद उन्हीं के जैसे दर्जनों लोग पहाड़ से गिर रहीं चट्टानों और पत्थरों से अपनी जान बचाते हुए वहां पर इकट्ठा हो गए.
कुछ देर बाद एक चट्टान के किसी धातु से टकराने की जोर की आवाज आई. इसके बाद किसी आदमी के दर्द से चिल्लाने की आवाज घाटियों में गूंज उठी. वानी कहते हैं,"ये एक डरावनी आवाज थी जो मेरे कानों में आज तक गूंजती है. वहां पर फंसे हम सब लोग जानते थे कि कोई उन पत्थरों का शिकार होकर मारा जा चुका है. हमको लगा कि अब हमारी बारी है. हम सब रोने लगे." आधे घंटे बाद किसी ने जानकारी दी कि सड़क पर अपने ट्रक को एक तरफ खड़ा कर उसमें सो रहा एक ड्राइवर पहाड़ से गिर रहे पत्थरों की चपेट में आकर मारा गया. ये इस हाइवे पर पिछले 12 घंटे में इस तरह हुई दूसरी मौत थी. कश्मीर घाटी को दुनिया से जोड़ने वाले जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर इस तरह की दर्दनाक मौतें बहुत सामान्य सी बात होने लगी हैं.
सड़क पर मौत का तांडव
इस 270 किलोमीटर लंबे हाईवे पर मौत का आंकड़ा हर साल सैकड़ों में होता है. जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर होने वाली मौतों की संख्या कश्मीर में हिंसा से होने वाली मौतों की संख्या से भी ज्यादा है. 2019 में कश्मीर में हुई हिंसा में 366 लोगों की जान गई. वहीं इसी साल इस हाईवे पर 447 लोगों की जान चली गई. कश्मीर में तैनात ट्रैफिक अधिकारी लियाकत अहमद बताते हैं,"यहां उत्तरी इलाके में उधमपुर के आसपास कम से कम 252 लोगों की मौत हुई है और दक्षिण में रामभन के इलाके में कम से कम 195 लोग हाईवे पर मारे गए हैं." अधिकारियों का मानना है कि पहाड़ों से गिरने वाली चट्टानों और पहाड़ी रास्तों की वजह से यहां पर होने वाली मौतों की संख्या ज्यादा है. हालांकि कश्मीर के स्थानीय निवासी इसको एक और समस्या से जोड़ते हैं.
जिस जगह पर वानी और उनके सहयात्रियों ने छिपकर अपनी जान बचाई थी, उसके पास ही इम्तियाज अहमद नाम के एक कश्मीरी ड्राइवर और उसके ट्रक को स्थानीय सैन्य अधिकारियों ने आगे बढ़ने से रोक दिया. अधिकारियों ने सभी ट्रक ड्राइवरों को अपने ट्रक एक तरफ कर लेने का आदेश दिया जिसपर सब ड्राइवरों ने नाखुशी जताई. इससे ड्राइवरों और सुरक्षाबलों के बीच बहस शुरू हो गई. एक ड्राइवर ने खींझ कर चिल्लाते हुए कहा, "आप हमारे साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार करते हैं. हम यहां 24 घंटे से फंसे हैं पर आप हमको एक तरफ कर पहले खुद निकलना चाहते हैं. जबकि हम आपसे ज्यादा समय से इंतजार कर रहे हैं."
पहाड़ों की वजह से यह सड़क तंग है. इस तंग सड़क पर क्षमता से ज्यादा वाहन सफर करते हैं. इससे यहां रोज जाम की स्थिति पैदा हो जाती है. यहां पर सैन्य वाहनों को सामान्य वाहनों से पहले प्राथमिकता दी जाती है. इसके चलते कई बार सैन्य वाहनों को निकालने के लिए सड़क को सामान्य ट्रैफिक के लिए बंद किया जाता है. इससे जाम की समस्या बढ़ जाती है. जब ये ड्राइवर चिल्लाकर शांत हुआ तब भी सामान्य ट्रैफिक सेना के काफिले के गुजर जाने तक बंद रहा.
पुलवामा हमले के बाद बढ़ी परेशानी
फरवरी 2019 में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए पुलवामा हमले के बाद अप्रैल 2019 में सरकार ने फैसला किया कि हर सप्ताह सेना के वाहनों को सुरक्षित रास्ता देने के लिए इस हाईवे को दो दिन बंद रखा जाएगा और इस पर सिर्फ सैन्य वाहनों की आवाजाही होगी. इससे उन सब जरूरी चीजों की आपूर्ति भी प्रभावित होने लगी जो इस सड़क मार्ग पर ही निर्भर हैं.
कश्मीर में सिविल इंजीनियर नवीद पीरजादा कहते हैं,"ये हाईवे कई ऐसी जगहों से गुजरता है जहां पहाड़ की मिट्टी पक्की नहीं है. इन पहाड़ों को सड़क चौड़ी करने के उद्देश्य से तोड़ा भी जाता रहता है. हजारों की संख्या में आम और सैन्य वाहन रोज यहां से गुजरते हैं. इस सड़क का इस्तेमाल इसकी क्षमता से ज्यादा किया जा रहा है. इससे यह अधिक दुर्घटना संभावित इलाका बन गया है. इस सड़क की वजह से इस इलाके की इकोलॉजी पर भी गंभीर असर हुए हैं. अब इस पूरे इलाके में वसंत सूखा ही निकलता है."
जानकारों का मानना है कि केवल इसी मार्ग पर कश्मीरियों की निर्भरता उनके भौगोलिक रूप से अलग-थलग पड़ने की वजह है. ये सड़क सर्दियों में खराब मौसम और बर्फबारी की वजह से अक्सर बंद हो जाती है. एजेके मास कम्यूनिकेशन और रिसर्च सेंटर, दिल्ली में काम करने वाले गौहर बट कहते हैं,"ये सड़क कश्मीर के लिए एक दीवार की तरह भी है. इस सड़क के जरिए आवागमन को नियंत्रित किया जा सकता है. भारत सरकार ने कश्मीर से बाहरी दुनिया को जोड़ने वाले दूसरे रास्तों को पहले ही बंद कर दिया था. ये सड़क भी सरकार के हाथ में है. वो तय करती है कि कौन इस पर चल सकता है और कौन नहीं."
रिपोर्ट: हनान जाफर
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