इमरजेंसी के काले पन्ने से लोकतांत्रिक आदर्शों तक
२५ जून २०१५प्रधानमंत्री मोदी ने 25-26 जून को देश में आपातकाल लगाए जाने की 40वीं वर्षगांठ पर ट्विटर पर अपने विचार रखते हुए कहा, ''देश के सबसे काले दौर में से एक आपातकाल के 40 वर्ष पूरे हो गए हैं. उस समय के राजनीतिक नेतृत्व ने हमारे लोकतंत्र को कुचल दिया था.''
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अपना चुनाव रद्द किए जाने के बाद इमरजेंसी लगा दी थी और सारे विपक्षी नेताओं को गिरप्तार कर लिया था. 1975 में संपूर्ण क्रांति का नारा देने वाले जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में लाखों लोग समाज में बदलाव लाने के लिए प्रदर्शन कर रहे थे. आंदोलन को कुचलने के लिए न सिर्फ नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां की गईं, इस दौरान सेंसरशिप के जरिए अखबारों पर भी ताले लगा दिये गये और रेडियो वही बोलता था जो सरकार चाहती थी.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी ट्वीट में लिखा है, "हमें उन लाखों लोगों पर गर्व है, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया और जिनके प्रयासों ने यह सुनिश्चित किया कि हमारा लोकतांत्रिक तानाबाना सुरक्षित रहे...उदारवादी लोकतंत्र प्रगति की कुंजी है इसलिए इसके आदर्शों और मूल्यों को और मजबूत करने के लिए जो भी संभव हो हमें करना चाहिए.''
आपातकाल की 40वीं वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर केंद्र सरकार ने "लोकनायक" जेपी की स्मृति में बिहार में उनके जन्मस्थान पर एक राष्ट्रीय स्मारक स्थापित करने की घोषणा की. इसी साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. इमरजेंसी की वर्षगांठ पर केंद्र में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने मोदी सरकार पर एक "अघोषित इमरजेंसी" लगाने का आरोप लगाया है. कांग्रेस की प्रवक्ता शोभा ओझा ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, "केन्द्र में कार्यरत सूट बूट की सरकार ने एक तरह की अघोषित इमरजेंसी लगा रखी है. उन्हीं की पार्टी के लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता भी ऐसी ही राय और आशंकाएं जता चुके हैं. उन्हें भी नेतृत्व पर भरोसा नहीं कि देश में आपातकाल घोषित नहीं किया जाएगा." प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 की रात को भारत में आंतरिक इमरजेंसी लगाकर संविधान को निलंबित कर दिया था और आडवाणी समेत अनेक चोटी के नेताओं ने जेलों में 19 माह गुजारे थे.
आरआर/एमजे (वार्ता, पीटीआई)