इतिहास में आज: 7 जनवरी
६ जनवरी २०१५भारत की जनता ने तीन साल तक सत्ता से दूर रखने के बाद कांग्रेस पार्टी की सबसे शक्तिशाली नेता इंदिरा गांधी को वापस चुना. गांधी ने देश में इमरजेंसी लागू करने की भारी कीमत 1977 में अपनी चुनावी हार से चुकाई थी. 1980 के चुनावों में उन्होंने संसद के निचले सदन लोकसभा में कुल 525 सीटों में से 351 जीतीं. इसी के साथ उनकी दो विरोधी पार्टियों जनता दल और लोक दल को करारी हार का मुंह देखना पड़ा. ये दोनों ही पार्टियां संसद में आधिकारिक विपक्षी दल बनने के लिए जरूरी न्यूनतम 54 सीटें भी नहीं जीत सकीं. इन चुनावों में इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी भी विजयी रहे. संजय को ही देश में इमरजेंसी के दौरान कई तरह की ज्यादतियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
इंदिरा गांधी 1977 तक भारत की प्रधानमंत्री के रूप में 11 सालों कर शासन कर चुकी थीं. 1980 के चुनाव में इंदिरा ने अपने "गरीबी हटाओ" के नारे और देश में कानून-व्यवस्था बहाल करने के वादे के साथ सत्ता में फिर वापसी की. 62 साल की उम्र में लड़े इन चुनावों में उन्होंने खुद 384 लोकसभा क्षेत्रों का दौरा किया और भारी जन समर्थन हासिल किया. भारी बहुमत से चुन कर आने के बावजूद भारत में 19 महीनों तक लागू किए आपातकाल के साये ने पूरी तरह उनका पीछा नहीं छोड़ा. इस दौरान देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थगित कर दिया गया था और ज्यादातर राजनीतिक विरोधियों को उन्होंने जेल में डाल दिया था. इसके अलावा इस दौरान चलाए गए अनिवार्य नसबंदी कार्यक्रम के लिए भी उनकी खूब आलोचना हुई.
इससे पहले 1978 में जब वे एक उपचुनाव में अपनी सीट जीत कर संसद में आईं तो उन्हें आपातकाल के दौरान ज्यादतियों के आरोप में संसद से निष्कासित कर दिया गया. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह अपनी तरह की एकमात्र घटना है जब किसी पूर्व प्रधानमंत्री को संसद से निकाला गया हो. 1984 में उन्होंने पंजाब के स्वर्ण मंदिर में छिपे सिख उग्रवादियों को निकालने के लिए सैनिक कार्यवाई के आदेश दे दिए. इसके दो ही महीने बाद इंदिरा गांधी के इस कदम से नाखुश एक सिख बॉडीगार्ड ने उनकी हत्या कर दी.