इतिहास में आज: 17 जून
१६ जून २०१४
1950, शिकागो- 49 साल की रूथ टकर के गुर्दे खराब हो चुके थे. टकर अस्पताल के बिस्तर पर मौत का इंतजार नहीं करना चाहती थीं. डॉक्टर रिचर्ड लॉलर की टीम ने फिर तय किया कि वे एक मृत महिला के शरीर से एक किडनी लेंगे और उसे टकर के शरीर में ट्रांसप्लांट करेंगे. टकर के पास एक ही गुर्दा बचा था और उसकी हालत भी काफी खराब थी.
उस समय डॉक्टरों के पास भी इन्फेकशन रोकने के लिए अच्छी दवाइयां नहीं थीं, लेकिन गुर्दा उन्होंने फिर भी ट्रांसप्लांट किया. टकर का शरीर गुर्दे को सही तरह अपना नहीं पाया लेकिन डॉक्टरों ने किसी तरह गुर्दे को टकर के शरीर में नौ महीनों तक रखा. उनका दूसरा गुर्दा तब तक ठीक हो गया और वह पांच और साल जी चुकी. उनकी मौत उनके गुर्दे की वजह से नहीं, बल्कि दिल की बीमारी से हुई.
चार साल बाद 1954 में पहली बार दो जिंदा लोगों के बीच किडनी ट्रांसप्लांट हुआ. बॉस्टन के डॉक्टरों ने रिचर्ड हेरिक को बचाने के लिए उसके जुड़वां भाई रोनाल्ड से एक गुर्दा लिया. क्योंकि वे जुड़वां थे, तो उनके शरीर भी एक जैसे थे और गुर्दे को शरीर ने स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं की. इस काम के लिए डॉक्टर जोसेफ मरे को 1990 में नोबल चिकित्सा पुरस्कार से नवाजा गया.