क्राउड डाटा से भीड़ पर नजर
१४ मार्च २०१४"सिर्फ एनएसए की ही आप पर नजर नहीं है". इस नाम से इस साल सेबिट में चर्चा की गयी और लोगों को लाइव हैकिंग कर के दिखाया गया. इसका मकसद लोगों को यह बताना था कि हैकिंग करने के लिए हमेशा बड़े संगठनों या बहुत पेचीदा तकनीक की ही जरूरत नहीं है, बल्कि उनका डाटा कहीं भी सुरक्षित नहीं है. स्मार्टफोन और वाई फाई की दुनिया में हर व्यक्ति हर समय इंटरनेट से जुड़ा हुआ है और उसकी हर गतिविधि का वहां डाटा जमा हो रहा है.
क्राउड डाटा से मदद
लेकिन जरूरी नहीं कि डाटा को जमा करना हमेशा नुकसान ही दे. कई तरह से यह मददगार भी साबित हो सकता है. जर्मनी का संस्थान रिसर्च सेंटर फॉर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (डीएफकेआई) सेबिट में क्राउड डाटा की जानकारी ले कर पहुंचा. डीएफकेआई के येंस वेपनर ने क्राउड डाटा के सिद्धांत को समझाते हुए एक प्रोजेक्ट का प्रदर्शन किया. इस प्रोजेक्ट के तहत लंदन में कई लोगों को सर्वर से जोड़ा गया.
क्योंकि उनके स्मार्टफोन पर इंटरनेट था, इसलिए सर्वर पर देखा जा सकता था कि वे किस वक्त कहां हैं. सर्वर ने लोगों की जानकारी के साथ साथ सार्वजानिक परिवहन की जानकारी भी जमा की. जब सर्वर ने देखा कि किसी रास्ते पर ट्राम खराब हो गयी है, तो उस रास्ते पर जाने वाले व्यक्ति को संदेश भेज कर सूचित कर दिया और यह भी बता दिया कि अब उसे कौन सा रास्ता या कौन सी ट्राम लेनी चाहिए. इस तरह से पूरे लंदन में सैकड़ों लोगों को सर्वर से जोड़ा गया.
अफरा तफरी से बचाव
जब येंस वेपनर से पूछा गया कि क्या इस तरह की तकनीक से लोगों की जासूसी नहीं हो रही है, तो उन्होंने बताया, "हम सिर्फ भीड़ पर नजर रखते हैं. सर्वर में बस इतनी ही जानकारी जमा होती है कि किसी रास्ते पर कोई व्यक्ति है. वह कौन है इसमें हमारी कोई रुचि नहीं. लोगों की पहचान को सर्वर से पूरी तरह हटा दिया जाता है."
प्रोजेक्ट ठीक तरह से काम कर रहा है यह दिखाने के लिए डीएफकेआई ने सेबिट में भी कई लोगों को सर्वर से जोड़ा. खास तौर से सेबिट के आयोजकों को. लेकिन उनकी निजी जानकारी और उनके नाम को सेव नहीं किया गया. येंस वेपनर ने बताया कि वे उम्मीद करते हैं कि इस तरह की तकनीक से भीड़ भाड़ वाली जगहों पर अफरा तफरी मचने से रोका जा सकेगा. जर्मनी में लव परेड के दौरान हुए हादसे का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं, "अगर वक्त रहते लोगों के मोबाइल पर संदेश पहुंच जाए कि उस रास्ते पर मत जाओ, वहां भीड़ जमा है, तो अफरा तफरी का माहौल ही नहीं बनेगा."
इसके अलावा सेबिट में ऐसी तकनीक भी दिखाई गई जो लोगों के उंगलियों के निशान या आंखों की पुतलियों से उनकी पहचान करती है. कैमरा के सामने खड़ी भीड़ को कंप्यूटर कुछ इस तरह पहचानता है कि हर व्यक्ति का लिंग और उसकी उम्र बता देता है. इस तरह की तकनीक का सीसीटीवी कैमरों में इस्तेमाल किया जा सकता है. खास तौर से रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों जैसे संवेदनशील इलाकों में.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया, हनोवर
संपादन: महेश झा