आडवाणी के "इमरजेंसी" बयान को विपक्ष ने लपका
१८ जून २०१५25 जून 1975 को भारत के इतिहास में पहली बार आपातकाल लागू हुआ था. उस घटना के 40 साल पूरे होने के मौके पर बीजेपी के संस्थापकों में से एक और फिलहाल मार्गदर्शक मंडल के सदस्य आडवाणी ने ऐसा फिर होने की आशंका से इंकार नहीं किया. पूर्व उप-प्रधानमंत्री आडवाणी ने भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस से खास बातचीत में बताया कि संवैधानिक और कानूनी रक्षा व्यवस्था के होते हुए भी देश में लोकतंत्र को तबाह कर सकने वाली शक्तियां पहले से मजबूत हैं. आडवाणी ने कहा, "मैं यह नहीं कहता कि राजनैतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है. लेकिन मुझे यह भरोसा नहीं है कि ऐसा (आपातकाल) फिर नहीं हो सकता."
तमाम विपक्षी दलों ने आडवाणी के इस बयान को केंद्र में मोदी की एनडीए सरकार और बीजेपी पर हमला करने का मौका माना है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सत्ता चला रहे आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा, "आडवाणी जी की आशंका सही है. भविष्य में इमरजेंसी की आशंका से इंकार नहीं कर सकते. क्या दिल्ली इसका पहला प्रयोग है?" हालांकि बीजेपी प्रवक्ता एमजे अकबर ने कहा कि उनके विचार से आडवाणी की आशंका किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं बल्कि संस्थाओं की ओर लक्षित थीं. आरएसएस के विचारक एमजी वैद्या ने भी इस इंटरव्यू में मोदी की ओर इशारा नहीं होने की बात कही है.
आडवाणी ने भारत में 40 साल पहले की परिस्थितियों को आज के ही जैसा बताया. उनके इस बयान को विपक्षी दल मोदी सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण मान रहे हैं. इस समय विपक्ष मोदी सरकार में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग कर रहा है क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा है. वहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी 2011 में ललित मोदी की मदद करने के कारण इस ताजा प्रकरण में खींची जा चुकी हैं.
आडवाणी ने भारत में 1975 आपातकाल की तुलना जर्मनी में हिटलर की तानाशाही के समय से की. उन्होंने कहा कि जिस तरह हिटलर काल से सबक लेते हुए जर्मनी के पूरे तंत्र ने ऐसे लोकतांत्रिक मानदंड बनाए ताकि उसे दोहराया ना जा सके. इसमें "स्वतंत्र मीडिया की अहम भूमिका” पर जोर देते हुए आडवाणी ने कहा कि मीडिया को “लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता के मूल्यों के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता" दिखाने की भी जरूरत है.
आरआर/एमजे (पीटीआई)