आखिर क्यों हो रहा है सरोगेसी से जुड़े विधेयक का विरोध
२२ नवम्बर २०१९भारत की संसद में इन दिनों एक महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा चल रही है. सरोगेसी (विनियमन) विधेयक लोक सभा से पारित भी हो चुका है लेकिन फिलहाल राज्य सभा की एक समिति उसका अध्ययन कर रही है. विधेयक का मूल उद्देश्य है व्यावसायिक सरोगेसी यानी पैसों के लिए कोख को किराए पर देने से रोकना.
स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने 15 जुलाई, 2019 को यह बिल लोक सभा में पेश किया था. इसमें परोपकारी कारणों से की गई सरोगेसी की इजाजत है, जिसमें किसी किस्म के पैसों की लेन देन शामिल ना हो, चिकित्सा और बीमा के खर्च के अलावा. ऐसे मामलों में सरोगेट मां जिन्हें बच्चा देगी वो उसके करीबी रिश्तेदार होने चाहियें.
क्या परिभाषा है सरोगेसी की?
विधेयक के अनुसार सरोगसी एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत एक महिला माता पिता बनने के इक्छुक किसी दंपति के लिए एक बच्चे को जन्म देगी और जन्म के बाद बच्चे को उन्हें ही सौंप देगी.
सरोगेट मां और बच्चे के होने वाले माता पिता के लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं. दंपति के पास अनिवार्यता का प्रमाण पत्र होना चाहिए, जिसके लिए कुछ जरूरी शर्तें हैं. जिला स्तर पर गठित बोर्ड से माता या पिता या दोनों की इनफर्टिलिटी का प्रमाण पत्र, बच्चे की कस्टडी और माता पिता के बारे में जानकारी देता मजिस्ट्रेट की अदालत से जारी किया हुआ निर्देश, सरोगेट मां के लिए 16 महीनों का बीमा जिससे कि प्रसव के बाद की परेशानी के इलाज का भी खर्च निकल सके.
इसके लिए पात्रता का प्रमाण पत्र भी अनिवार्य होगा और जिसके लिए कुछ दूसरी शर्तों को पूरा करना जरूरी है. पहला तो ह कि दंपति भारतीय नागरिक होना चाहिए और पांच साल से विवाहित. महिला 23 से 50 वर्ष की आयु की और पुरुष 26 से 55 वर्ष की आयु का हो और उनका कोई भी अपना, गोद लिया हुआ या सरोगेट बच्चा ना हो. अगर बच्चा है और अगर वो मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से विकलांग है, या किसी प्राण-घातक बीमारी से पीड़ित है, तो वो इस प्रतिबंध के दायरे में नहीं आता और ऐसे बच्चे के माता पिता को सरोगेसी की अनुमति मिल सकती है.
सरोगेट मां के लिए भी पात्रता की शर्तें हैं . वह दंपति की करीबी रिश्तेदार, विवाहित और उनका अपना एक बच्चा भी होना चाहिए. इसके अलावा 25 से 35 वर्ष की उम्र और अपने जीवनकाल में सिर्फ एक बार सरोगेट मां बनने की शर्त भी है. उनके पास सरोगसी के लिए उनके मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र भी होना चाहिए. सरोगेट मां पर ये प्रतिबंध भी होगा कि वो सरोगसी के लिए अपना गैमीट नहीं दे सकतीं हैं.
विधेयक में सरोगसी के लिए विशेष चिकित्सालयों का प्रावधान है जिन्हे सरोगसी के विनियमन के लिए नियुक्त किये गए अधिकारी या प्राधिकरण के साथ अपना पंजीकरण कराना होगा.
केंद्र सरकार और राज्य सरकारें राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और राज्य सरोगेसी बोर्ड बनाएंगी. राष्टीय बोर्ड केंद्र सरकार को सरोगेसी से संबंधित नीतिगत मामलों पर सलाह देगा, सरोगेसी चिकित्सालयों के लिए आचार संहिता बनाएगा और राज्य बोर्डों की कार्य पद्धति का निरीक्षण करेगा.
सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को दंपति की जैविक संतान माना जाएगा. उसके गर्भपात के लिए सरोगेट मां की लिखित अनुमति और अधिकारी से अधिकार-पत्र अनिवार्य होगा. कोख में भ्रूण के डाले जाने से पहले तक सरोगेट मां के पास ना कहने का विकल्प रहेगा.
सरोगेट मां का किसी भी तरह का शोषण जुर्म होगा. सरोगेट बच्चे को छोड़ देना या उसका शोषण करना भी जुर्म होगा. भ्रूण या गैमीट को सरोगेसी के लिए बेचना भी जुर्म होगा. ऐसे अपराधों के लिए 10 साल तक की जेल और 10 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है.
क्यों हो रहा है विधेयक का विरोध
बिल के कई प्रावधानों पर विवाद है जिसकी वजह से इसका विरोध हो रहा है. दम्पति के विवाहित होने की अनिवार्यता का मतलब है विधवाएं, तलाकशुदा लोग, सिंगल मां-बाप, लिव इन में रहने वाले लोग और समलैंगिक दंपति सरोगेसी का रास्ता नहीं अपना सकेंगे. इसके साथ ही करीबी रिश्तेदार होने की अनिवार्यता का गलत इस्तेमाल हो सकता है. घर की किसी महिला को जबरन इसके लिए राजी कराया जा सकता है. कुछ लोगों का कहना है कि इस से भविष्य में परिवार के अंदर संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर विवाद भी हो सकते हैं. इतना ही नहीं इनफर्टिलिटी के अलावा भी सरोगेसी के और कारण हो सकते हैं, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया है.
फिलहाल यह विधेयक राज्य सभा की एक समिति को दे दिया गया है. समिति को अगले सत्र में अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है.
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