अहमदीनेजाद के नाकामयाब आठ साल
७ जून २०१३महमूद अहमदीनेजाद ने 2005 में बड़े वादों के साथ राष्ट्रपति पद संभाला था. उन्होंने वादा किया था कि तेल से कमाए गए पैसे देश में "हर परिवार के खाने की मेज पर" दिखाई देंगे. साथ ही नए राष्ट्रपति 20 लाख नई नौकरियां पैदा करना चाहते थे, बेरोजगारी दर को शून्य तक लाना चाहते थे और महंगाई दरों को दस प्रतिशत से नीचे लाना चाहते थे. आठ साल बाद राष्ट्रपति के तौर पर उनके दूसरे शासनकाल के अंत में सच्चाई उनके चुनावी वादों से परे है. औपचारिक आंकड़ों के मुताबिक महंगाई दर 30 फीसदी को छू रही है, बेरोजगारी 12 प्रतिशत है और आर्थिक विकास शून्य से नीचे. वास्तव में ये आंकड़ें और भी खराब हैं.
ईरान के आर्थिक विश्लेषक फरीदून खवंद के मुताबिक अपना पद संभालते वक्त अहमदीनेजाद के पास कोई ठोस आर्थिक कार्यक्रम नहीं था. "वह एक ही योजना चला रहे थे, अगर आप इसे योजना कह सकते हैं, और वह था अपनी लोकप्रियता बढ़ाना." अपने कुछ चुनावी वादों को उन्होंने लागू भी किया, जैसे गांव में रह रहे लोगों के लिए सबसिडी और युवा दंपतियों के लिए "शादी भत्ता."
मुद्रा में गिरावट और ठहराव
जिन वादों को अहमदीनेजाद पूरा नहीं कर पाए उनमें ईरानी मुद्रा रियाल की स्थिर विनिमय दर भी थी. 2011 के बाद से रियाल ने डॉलर के मुकाबले अपना दो तिहाई मूल्य खो दिया है. महंगाई दर के बढ़ने से और परेशानी हुई है. राष्ट्रपति के पद संभालते वक्त महंगाई दर 12 प्रतिशत थी लेकिन विश्लेषकों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों का मानना है कि अब यह बढ़ कर 40 से 60 प्रतिशत तक हो गई है. घरों का किराया, रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाला सामान और यातायात, सब महंगे हो गए हैं.
ईरान की अर्थव्यवस्था पश्चिमी देशों से पाबंदियों का शिकार बन गई है. अहमदीनेजाद के आने से पहले आर्थिक विकास दर सात प्रतिशत थी. इस वक्त यह शून्य से भी कम हो गई है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का मानना है कि यह आंकड़ा 2014 में थोड़ा सा बढ़ेगा. लेकिन खवंद का कहना है कि बिना आर्थिक विकास के नौकरियां भी नहीं पैदा की जा सकेंगी. अहमदीनेजाद ने 20 लाख नौकरियां पैदा करने का वादा किया था, अब तक केवल 14,000 नई नौकरियां पैदा हो सकी हैं.
अतंरराष्ट्रीय प्राथमिकताएं
2012 में अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों की वजह से ईरानी तेल निर्यात में भारी गिरावट आने से पहले तेल से पैसा कमाया जा सकता है. आर्थिक विश्लेषक खवंद का कहना है कि यह पैसे गलत जगहों पर लगाए गए. इनका ज्यादातर हिस्सा आयात पर खर्च किया गया. अहमदीनेजाद ने सरकारी दफ्तरों में भी पैसे लगाए. अंतरराष्ट्रीय और सुरक्षा एजेंडा में पैसे लगे. "विदेश में ऐसे संगठनों और गुटों में पैसे लगाए गए और उन्हें सहारा दिया गया जो इस्लामी गणतंत्र के करीब थे, जैसे लेबनान में हिज्बोल्लाह या फलीस्तीन में हमास."
आर्थिक हालात को देखा जाए तो अहमदीनेजाद के शासन के आठ साल फरीदून खवंद के लिए आपदा से कम नहीं थे. अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों ने देश के भीतर अक्षमता और कुशासन को और बढ़ा दिया है.
ईरानी संविधान की नजाकत
राजनीतिक स्तर पर अहमदीनेजाद के शासन के दौरान अंदरूनी झगड़े भी खूब हुए. निर्वासन में रहने वाले ईरानी विपक्षी नेता महरन बराती ने डॉयचे वेले से कहा कि अहमदीनेजाद के आठ साल के शासन में ईरानी संविधान और शासन प्रणाली की नजाकत सामने आई है. बराती का कहना है कि भले ही ईरान के राष्ट्रपति का चुनाव देश का सर्वोच्च नेता करता है, लेकिन राष्ट्रपति स्वायत्त तरीके से सरकार नहीं चला सकता.
बराती मानते हैं कि सत्ता संभाल रहे लोगों के मकसद अलग अलग हैं और इनमें एक साझा लक्ष्य देख पाना मुश्किल है. लेकिन अहमदीनेजाद के बाद भी बदलाव का होना संभव नहीं लगता. बराती के मुताबिक परमाणु विवाद को देखा जाए तो ईरान में भावनाएं इतनी ज्यादा हैं कि भले ही अहमदीनेजाद के बदले कोई भी चुना जाए, अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इस मुद्दे पर विवाद चलता रहेगा.